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कितने सालों के बाद हम सब साथ में थे लेकिन एक बार फिर से अलग अलग होने का समय नज़दीक था बस कुछ मिनट ही बाकी थे….. न जाने कहा से बचपन की बातें शुरू हो गयी….. पहले भैया की बात फिर मेरी और फिर छोटे भाई की शरारतें….. एक बार फिर से उस बचपन में पहुँच गए थे जहाँ कोई फिक्र नहीं होती थी….. बस जो काम कर रहे हैं उसी पर ध्यान होता था…कल क्या करेंगे कभी नहीं सोचते थे…. भैया का शैतानी करके भूल जाना…. मेरा गवाही देना…. भैया का साइड लेना… और छोटे भाई की पिटाई होना….. 🙂 (मैं हमेशा से भैया के लिए biased रहती थी….) !! कितने अच्छे थे वो बचपन के दिन…..
काश मैं बचपन दोबारा जी पाती
वही शैतानियाँ वही खेलकूद
फिर से कर पाती
वो सबका स्कूल जाना
वापस चेन बनाकर चलना
शहतूत और अमरुद तोडना..
भीगते हुए
रिक्शे को धक्का देकर आगे बढ़ाना..
काश एक बार फिर से कर पाती….
वो साथ साथ पढना…
एकदूसरे को जगाना
अरे भाई सो मत जाना….
बड़ा याद आता है….
काश मैं फिर से जी पाती….
वो सावन में झूला
अक्सर शुक्रवार को काले बादलों का आना…
चांदनी रात में बच्चो का खेलना
बड़ा याद आता है….
काश मैं फिर से जी पाती…
और एक आज का समय है….. जिसमे सिर्फ वर्तमान में नहीं रह पाते भूत और भविष्य में ही घूमते रहते हैं…. कल क्या हुआ था… कल क्या होगा…. इसी में ज़िन्दगी बीती जा रही है….
ज़िन्दगी गुजर रही है
कल की फिक्र में….
आज की नहीं परवाह
इतनी हलचल में…
रुकना चाहती हूँ दो पल
जी लूं इस पल को….
थम जाए वक़्त यही….
रोक दूं उस कल को….
कुछ पाने की ललक
कुछ खोने की तड़प
बस इसी में बीत रहा है जीवन…
कैसे गुजर रहा है ये सफ़र
एक एक पल में….
आने वाले कल में…
भूल रहे हैं हम रिश्ते…
औपचारिकता बन रहा है प्यार
इस दौड़भाग में…
थम जा यहीं
रुक जा यहीं…
ऐ पल…..
बहुत कुछ छूट रहा है पीछे!!
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