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दक्षिण भारत के केरल राज्य में गर्भवती हथिनी की अनानास में बम विस्फोटक देकर नृंशस हत्या की गई। इसे केवल शरारत भर कहकर नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। क्या हथिनी के साथ उसके अजन्में बच्चे का वध करने वाले को हत्यारा न माना जाये?…ऐसे दुष्कर्मो के लिए भी न्यायपालिका को कुछ ठोस कानून बनाने तथा ऐसे अमानवीय कृत्य करने वाले दोषियों को सख्त सजा देने का प्रावधान होना चाहिए।
निरीह बेजुबान प्राणियों के साथ इस प्रकार का कुकृत्य कर उन्हें मौत के घाट उतार देने पर भी केवल यह सफाई स्वीकार कर लेना कि यह सब फसलों को बचाने के लिए किया गया। …कहाँ तक उचित है? …क्या इसी प्रकार आगे भी वन्य जीवों का संहार होता रहेगा..इस पर विचार करना अनिवार्य है।… क्या सिर्फ मानव के प्रति होने वाले अपराधों को ही अपराध माना जाये?… क्या प्रकृति के सहचर इन निरीह प्राणियों से जीने का अधिकार हम मानव अपने स्वार्थ के लिए छीन लेंगे?… क्या यही मानवता की सीख है? ….हम मानवों ने वर्षो से बेजुबानों प्राणियों पर अनेक प्रकार से अत्याचार किये है।
कहीं हमने उन्हें अपने मनोरंजन के लिए चिडियाघरों में कैद किया है तो कही सर्कस में हंटरों के बल पर नचाया है। इन बेजुबानों के दर्द को कभी महसूस नहीं किया। अपने लाभ और स्वार्थ सिद्धी में लिप्त होकर, हमने भोलेभाले प्राणियों को शिकार बनाया। धनप्राप्ति की कभी न खत्म होने वाली लालसाओं की पूर्ति का साधन इन्हीें निरीह प्राणियों को बनाया तो रूढिवादी परम्पराओं ने अनेक निरीह प्राणियों के बलिदान से अपने कल्याण का रास्ता खोज निकाला!…पहले शिकारी परम्परा ने इन निरीह प्राणियों की हत्या करने में कोई गुरेज न किया साथ ही अनेक धार्मिक परम्पराओं में पशुबलि के नाम पर भी ये ही बुजुबान शिकार बनाये गये।
हाथियों, नीलगाय, बैल, जंगली सुअर आदि वन्य जीवों को सिर्फ फसल बचाने के लिए मार दिया जाता है- क्या यह न्यायसंगत है? हम सभी किसी न किसी रूप में बेजुबानों पर होते अत्याचारों के दोषी हैं। जीव हिंसा को कहीं तक भी सही नहीं माना जाना चाहिए। फसलों को बचानें के अन्य उपाय किये जा सकते है, लेकिन इस प्रकार बेजुबानों का शिकार ही होने लगे तो प्रकृति के ये अनमोल रत्न सिर्फ कहानी-किस्सों का ही हिस्सा रह जायेंगें। तब मानव को अपने अस्तित्व के बारे में भी विचार करना होगा। जब प्रकृति अपने भरे-पूरे रूप में हमारा साथ देने को न बचेगी, तब क्या मानव सभ्यता बच पायेगी?
हम ईश्वर की सबसे सशक्त बुद्धिमान प्रजातियों में से एक हैं। तब सिर्फ अपने हितों को ध्यान में रखकर, अन्य जीवों के जीने के अधिकार को भी छीन लेना- यह तो एकदम ज्यादती है! यह हमारा सबसे बडा अपराध है। सभ्य समाज की संरचना के साथ इन निरीह प्राणियों के बचाव में कोई ठोस कदम नहीं उठें। जंगलों में असंख्य वृक्षों को काटकर हमने अपने लिए सुविधाजनक रास्ते तैयार किये और इन वन्य जीवों का आवास छीन लिया। हम अपनी सुविधाओं के लालच में उपयोगी वनौषधि का कटान करते रहें और होटल आदि के निर्माण कार्यों में व्यस्त रहकर प्रकृति के साथ खिलवाड करते रहें।
प्रकृति प्रदत्त अपार सम्पदा का हम उपयोग करते हुए, उसी प्रकृति के विरुद्ध षडयंत्र रचने लगे…इसे मानवता के नाम पर कलंक न कहा जाये तो क्या कहा जाये? एक दिवस को पर्यावण दिवस मनाकर हमने साल के बाकी दिन किस प्रकार प्रकृति का दोहन किया- इस प्रश्न का उत्तर भी हमी को देना होगा! जब कोई वन्य जीव किसी मानव को मारता है तो उस जीव को हम जीवित भी नहीं छोड़ना चाहते और अक्सर ऐसे देखा गया है कि ऐसे आदमखोर जीवों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। लेकिन जब कोई इंसान किसी जीव को मारता है, उसका वध करता है तो समाज का बडा वर्ग चुप्पी साध लेता है?….
हमें समय रहते अपने मानव होने के संस्कारों को संभालना होगा और जीवों के प्रति बढ रहे इस प्रकार के अत्याचारों का खुलकर विरोध करना होगा! जो वास्तव में मानवता के पक्षधर है वे सभी निरीह बेजुबान प्राणियों पर हुए अत्याचारों की निंदा सदैव करते रहें हैं-बस अब आवश्यकता है व्यापक स्तर बढ़ रहें इस प्रकार के अमानवीय कृत्यों पर जल्द से जल्द अकुंश लगाने की तथा अपराधी तंत्र को सामने लाकर उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए एकजुट होने की। आइये, हम सभी अपने मानव धर्म को निभाते हुए इन बुजुबानों की आवाज बने। इन भोलेभाले जीवों की पीड़ा को किसी अपने की ही पीड़ा मानते हुए, अपने को प्रकृति पुत्र मानकर इस मुहीम का हिस्सा बने ताकि बेजुबानों पर हो रहे अत्याचारों पर लगाम लग सकें।
– *सत्येन्द्र कात्यायन
खतौली(मु.नगर)
मो.नं. 9897548002
ई-मेल-satyas138@gmail.com
डिक्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी तरह के आंकड़े या दावे का समर्थन नहीं करता है।
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