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शादी बनाम दहेज़

Meri udaan mera aasman
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Sonam\’s writer Page

शादी —– हमारे समाज में शादी को जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है ! जिस इंसान की शादी नही होती या जो अपनी मर्जी से शादी नही करता उसके बारे में हमारा समाज, समाज के लोग अच्छी सोच नही रखते ! शादी न होने या न करने के पीछे क्या कारण हो सकता है यह जाने बिना ही लोग अपने-अपने मनघड़त विचार उस इंसान के बारे में बना लेते हैं !

अगर भारतीय सविधान की बात की जाये तो भारत में यह कानून है कि 18 वर्ष के बाद हर इंसान को अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का अधिकार है ! जो जैसे चाहे अपने जीवन को जी सकता है लेकिन वास्तव ऐसा है नही ! बेशक हमारा कानून हमे अपना जीवन अपने हिसाब से जीने की आज़ादी देता हो लेकिन इसी देश में रहने वाला ये समाज किसी को भी ऐसी आज़ादी नही देता ! यहाँ शादी न करने वाले को बात-बात पर ताने मार दिए जाते हैं !

मेरा पहला प्रश्न यही है कि भारत कहने को तो आधुनिक हो गया है, समाज का हर एक वर्ग खुद को आधुनिक बना चुका है, मान चुका है फिर सोच का दायरा आज भी वही एक जगह आकर क्यों ठहरा हुआ है ?? सोच एक दायरे में क्यों सिमित हैं ?? क्यों समाज एक व्यक्ति को उसकी शादी का फैसला स्वयं लेने की आज़ादी नही देता ???

बात शादी की चली है तो दहेज़ की बात भी जरुर होगी ! बिना दहेज़ के शादी तो भूल ही जाइये ! मुझे लगता है कि व्याकरण को थोडा अमेंडमेंट करने की जरूरत है ! जब व्याकरण में पर्यायवाची शब्द लिखे जाये और उसमे शादी का पर्यायवाची लिखा जाये तो सबसे पहले दहेज़ शब्द आना चाहिए ! अगर देखा जाये तो शादी का मतलब दहेज़ ही तो होता है ! जब तक आपके पास कम से कम 5 -6 लाख रुपये न हो तब तक आप सामान्य रूप से शादी के बारे में नही सोच सकते !

मेरी उलटी खोपड़ी में ये बात बैठती नही है कि शादी के लिए पैसो की क्या जरूरत ? जहाँ तक मुझे समझ में आता है “शादी के लिए ‘एक लड़के और एक लड़की’ की, मंत्र पढ़ने के लिए एक पंडित जी की और आशीर्वाद देने के लिए माता-पिता व सगे सम्बन्धियो की जरूरत होती है ! अगर आज की महंगाई को देखते हुए भी ” पूजा, हवन इन सब के लिए आने वाले सामान पर होने वाले खर्च” की कैलकुलेशन करूँ तो भी ज्यादा से ज्यादा 50 हज़ार रुपये का खर्च हो जायेगा ! फिर उसके बाद 50-60 हज़ार में सब के लिए अच्छा खाना भी बन सकता है ! कुल मिलकर अगर मेरे हिसाब से चला जाये तो 1-1.5 लाख में एक अच्छी शादी हो सकती है ! और अगर इतने पैसे भी न हो तो खाने का प्रोग्राम कैंसिल कर दे तो सिर्फ पचास हज़ार में बढ़िया शादी हो जायेगी !

ये तो था मेरा कैलकुलेशन अब बात करते हैं हमारे समाज के कैलकुलेशन की ! हमारे समाज में शादी, शादी न रहकर एक व्यापार बन गया है ! शादी में सात फेरो, सात वचनो का महत्व कम होता जा रहा है और भव्यता और दिखावे का चलन ज्यादा बढ़ता जा रहा है ! हमारे समाज में लोगो की यह एक धारणा बन गयी है कि जो अपने बच्चो की शादी पर जितना ज्यादा खर्च करेंगे उनके बच्चो को उतना ही अच्छा ससुराल व जीवनसाथी मिलेगा, जो सच नही है ! कोई शादी आदर्श शादी होगी या नही यह “दो लोगो व उनके परिवार के व्यव्हार व किस्मत पर” निर्भर करता है न कि शादी पर किये गये खर्च पर !

आजकल लोग भेड़चाल वाला फार्मूला ज्यादा अपनाते हैं ! लोग एक-दूसरे की देखा-देखी काम करने लगे हैं ! पहले दुसरो की शादी में जाते हैं, वहाँ के आयोजन की व्यवस्था को देखते हैं, खर्च और भव्यता का अनुमान लगते हैं और फिर ये निश्चय करते हैं कि हमारे घर में होने वाली शादी इससे ज्यादा शानदार होगी ! न जाने कितने लाख रुपये तो लोग खाने पर खर्च कर देते हैं ! आजकल मैंने अधिकतर लोगो के मुह से ये बात सुनी है कि हमे तो ज्यादा मसाले वाला खाना सूट ही नही करता ! वास्तव में वो सच ही कहते हैं – आजकल अधिकतर लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त होते हैं ऐसे में वो कम तेल, मसाले वाला खाना, खाना ही पसंद करते हैं ! लेकिन जैसा हम सभी जानते हैं कि आजकल शादी में लगभग 15-20 आइटम तो बनते ही बनते हैं, ये जितना मुझे याद आया उसके हिसाब से बताया, जो एक एस्टीमेट वैल्यू है ! अगर आप किसी शादी में जाकर वहाँ बने खाने के आइटमस की गिनती करेंगे तो संख्या 20 के पार आराम से पहुँच जायेगी, विश्वाश न हो तो इस बार जब भी शादी में जाये गिनती जरुर करे !

शादियों में बनने वाले खाने का 25% खाना बेकार ही कूड़े कचरे में फेंका जाता है ! जिससे मुझे तो नही लगता कि किसी का कोई भला होता होगा ! हाँ नुकसान जरुर होता है जिसे शादी आयोजित करने वाला हँसते-हँसते सहन कर लेता है क्योंकि उसे भी तो अपने स्टेटस की चिंता होती है ! अगर कोई अपनी शादी में खाने के इतने आइटम्स न बनवाये तो लोग कहने लगते हैं कि अरे खाने में तो कुछ था ही नही ! यहाँ लोगो से मेरा तात्पर्य “हम सभी” से ही है ! मेरा दूसरा प्रश्न यही है कि क्या बिना “कम से कम 15-20 खाने के आइटम्स” के कोई शादी संपन्न नही हो सकती ?? क्या एक आदर्श शादी का सम्बन्ध शादी में बनने वाले खाने से भी होता है ??? या ये सिर्फ समाज में अपने स्टेटस को बनाये रखने के लिए किया जाता है ???

अभी लगभग एक महीने पहले हमारे पड़ोस में एक लड़की की शादी हुई है ! उसके पापा ने उसकी शादी में उसे लगभग 15 लाख की एक गाड़ी दी है ! न जाने कितने सोने-चांदी के गहने दिए हैं जिसके बारे में मुझे ठीक से नही पता कि कितने दिए हैं लेकिन घर में किसी के मुह से ये जरुर सुना था कि बहुत दिया है, बहुत ही आलिशान शादी की है ! अब 15 लाख की गाड़ी दी है तो 10-12 तो अलग से तैयारियो में भी लगा ही दिए होंगे ! कुल मिलकर 25-30 लाख तो उनकी शादी का खर्च हो ही गया होगा ! ये कहानी आज सिर्फ एक घर की नही है बल्कि आज कल तो अधिकतर ऐसा ही होता है ! लोग यूँ ही बढ़ चढ़ कर दहेज़ लेते-देते हैं और जब कभी कहीं किसी से ये खबर सुनते हैं कि किसी लड़की को दहेज़ के लिए ससुराल से निकाल दिया गया या मार दिया गया तो दहेज़ लेने व देने को पाप बताने लगते हैं और जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें पापी ! मेरा तीसरा सवाल ये है कि क्या सिर्फ “कोरी बाते” करने से, एक-दूसरे पर सवाल उठाने से दहेज़ के कारण होने वाली दुर्घटनाओ को रोका जा सकता है ?? क्या हमे थ्योरी को छोड़कर अब प्रक्टिकल नही हो जाना चाहिए ??? खुद से शुरुआत करने में क्या बाधा है ??? क्या इस बाधा का कारण शर्म है या फिर हमारा लालच या फिर हमारी छोटी सोच??? आखिर कब होगी शुरुआत ????

अभी आप में से बहुत से लोग शायद ये भी कहें कि दुनिया में सभी लोग एक जैसे नही है ! कुछ लोग अच्छे भी हैं ! हाँ मैं मानती हूँ कि दुनिया में सभी एक जैसे नही होते, कुछ लोग अच्छे भी होते हैं लेकिन लोग चाहे कितने भी अच्छे हो शादी के समय हर एक बेटी के माता-पिता के मन में सिर्फ चिंता ही होती है ! ” लड़के वाले बेशक ये कह दें कि उन्हें कुछ नही चाहिए” परन्तु फिर भी एक पिता को तो देना ही पड़ता है जिसे लोग अपने-अपने हिसाब से नाम दे देते हैं ! कोई ये कहता है कि जो भी दिया अपनी बेटी को ही तो दिया, कोई ये कहता है कि इतना तो आजकल सभी देते हैं इसमें क्या बड़ा काम कर दिया ! अगर शादी में ये लेने-देने के प्रचलन को ही खत्म कर कर दिया जाये तो ही शायद कोई बात बन सकती है ! अगर ये नियम बना दिया जाये कि शादी इस सादे तरीके से हो चाहे फिर वो अमीर हो या गरीब तो ही माता-पिता की चिंता दूर हो सकती है ! तब ही माता-पिता के लिए उनकी बेटियो की शादी एक चिंता का विषय नही बल्कि एक ख़ुशी का अवसर कहलायेगा वरना अधिकतर माता पिता के लिए तो बेटी की शादी ख़ुशी से ज्यादा चिंता लेकर आती हैं !

अंत में इतना ही कहना चाहूंगी कि नियम अपनी जगह है, वो जब बनेगे तब ही फॉलो किये जायेंगे लेकिन अगर बड़ो के साथ-साथ बच्चे भी थोड़ी समझदारी दिखाए तो दहेज़ से होने वाली हर समस्या का समाधान किया जा सकता है ! लड़को को दहेज़ न लेने के लिए खुद पहल करनी होगी, अगर माता-पिता दहेज़ लेना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए मना करना होगा, उन्हें समझाना होगा ! इसी तरह लड़कियो को भी हाथ पर हाथ रखकर नही बैठना है, अगर उनकी शादी से उनके माता-पिता के जीवन में दुःख आते हैं तो उन्हें ऐसी शादी से खुद ही पीछे हट जाना होगा ! अधिकतर ऐसा देखा गया है कि बेटी की शादी में लोग कर्ज ले लेते हैं और फिर जीवन भर उस कर्ज के भार तले तबे रहते हैं ! कर्ज का यही भार कई पिताओ की जिंदगी भी छीन चुका है ! ये फैसला आपको खुद करना होगा कि आपको सिर्फ शादी से मतलब है या फिर अपने माँ-पापा के सुख-दुःख का भी ख्याल है !

आप शुरुआत कब करना चाहेंगे बदलाव की ????????????


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