जल रही हैं चिताएं रोज ही नफरतो की आग से बुझ रहे हैं चिराग दुश्मनी बरसात से देखते हैं रोज हम कहता है कोई शान से हो रहा है भारत निर्माण देखते तो तुम भी हो तो बताओ तो जरा क्या यही है भारत निर्माण ??
खून के प्यासे हैं सब या जिस्म की लिए भूख हैं हैं मुखौटा इंसान का अंदर से पिशाच व भूत हैं नोचते हैं, मारते हैं काटते हैं, खाते हैं फिर भी कुछ बच जाये तो बाजारों में बेच आते हैं ….. देखते हैं रोज हम कहता है कोई शान से हो रहा है भारत निर्माण देखते तो तुम भी हो तो बताओ तो जरा क्या यही है भारत निर्माण ??
मर रही हैं ज़िंदगी सरहदो पर रात दिन है सवाल एक बस हो सुरक्षा कैसे देश की ? देश को कर के सुरक्षित क्या मगर हो जायेगा है सुरक्षित ही नही जब माहौल अपने देश का …… देशो को बांधा है जिन्होंने अलग-अलग सीमाओ में क्यों नही बांध पाये वो इंसान को सीमाओ में होती अगर सीमा कोई इंसान की इंसान से तब जरूरत ही न रहती सरहदो पर जवान की और न ही फिर रहती जरूरत किसी कानून की …… देखते हैं रोज हम कहता है कोई शान से हो रहा है भारत निर्माण देखते तो तुम भी हो तो बताओ तो जरा क्या यही है भारत निर्माण ??
न बचे संस्कार अब न चरित्र पवित्र रहा देश का अधिकांश युवा खुद को ही अब है छल रहा ….
नाम लेकर शिक्षा का सब लूटते हैं बस पैसे अब बन रहे हैं लोग ऊँचे और गिर रहे हैं आदर्श उनके रूपये लाओ, डिग्री ले जाओ खुल रहे हैं अब कॉलेज ऐसे ……
देश में सरकार है फिर भी गरीब लाचार है हैं बहुत से कानून लेकिन आँख-कानो से सब बेकार हैं न देखते हैं, न सुनते हैं महसूस की तो बात क्या है अगर कातिल कोई तो बस वही महफूज है और अब बस क्या कहूँ इतना सा ही ये सवाल है देखते हैं रोज हम कहता है कोई शान से हो रहा है भारत निर्माण देखते तो तुम भी हो तो बताओ तो जरा क्या यही है भारत निर्माण ??
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