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पानी के धंधेबाज! आर ओ प्लाण्ट

जनजागृति मंच
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कैसे बना पानी का बाजार?

पिछले 20 वर्षों में हमारे देश में पानी की गुणवत्ता में आयी व्यापक गिरावट से पानी का स्वास्थ्य खराब हुआ जिससे जन स्वास्थ बुरी तरह से प्रभावित हुआ। पानी के स्वास्थ में आयी गिरावट का प्रमुख कारण सबमरसिबल पम्प माना जा सकता है। पिछले चार दशकों में अधिक गहराई से तेजी से अधिक पानी निकालने की क्षमता का विकास होना जनसामान्य को पानी की आत्मनिर्भरता की ओर ले गया। लोगों में पानी की कमी का भय समाप्त होने से उनका पानी के प्रति आदर भाव समाप्त हो गया। जिसे वे मेहनत से प्राप्त करने के कारण व्यर्थ नहीं करने एवं जल से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं  से प्रदर्शित करते थे। अपने नदियों, तालाबों, कुंओं के प्रति सजग एवं चौकन्ने रहते थे। जब लोगों को बिजली का बटन दबाते ही बेतहाशा पानी भूगर्भ से मिलने लगा तो धीरे धीरे जल संचय की प्रवृत्ति भी समाप्त होने लगी। बढ़ते औद्योगीकरण ने नदियों को अपने अवजल ढ़ोने का माध्यम बना लिया। पोखरे सूखने लगे, पाटे जाने लगे। क्यों कि लोगों को लगा कि इनका भला क्या काम? पानी तो मिल ही रहा था। परम्परागत जल विज्ञान को भूलकर लोगों ने जल संचय एवं भूमिगत जल पुनर्भरण में नदियों, पोखरों की भूमिका पर पर ध्यान नहीं दिया क्यों कि उन्हे अभी भी सदियों से भूभर्ग में जमा स्वच्छ जल मिल रहा था। उनकी सिंचाई की जरूरते भी इससे पूरी हो रही थीं। उन्हे नदियों एवं नहरों एवं वर्षा पर आश्रित नहीं रहना पड़ता था। जब जी चाहा जमीन की गहराई से पानी निकाल लिया। इस प्रकार वे जल प्राप्ति के अन्य स्त्रोतों के प्रति उदासीन हो गये।

व्यापक भूजल दोहन से पाताल का पेट भी खाली होने लगा। रासायनिक कृषि एवं जल भराव कृषि को बढ़ावा मिलने से जल के साथ रिसकर हानिकारक रसायन भूजल में मिलने लगा। जिससे भूजल में प्रदूषण बढ़ना शुरू हुआ। भूजल के निरंतर दोहन से होने वाली कमी से रसायनों की सांद्रता बढ़ती गयी। सतही जल औद्योगीकरण के कारण से खराब हो गया। जिसके कारण भी भूजल प्रदूषित हुआ। क्योंकि जलविज्ञान के अनुसार सतही जल भूमिगत जल को भरता है एवं भूमिगत जल सतही जल को पोषित करता है। इस प्रकार दोनों एकदूसरे के पूरक हैं। आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि किस प्रकार हमारे पेयजल के दोनो प्रमुख स्त्रोत खराब हो गये। अब बचा वर्षा का जल ! उसे अभी कौन पूछता? पानी तो अभी भी जमीन की गहराई से मिल ही रहा था। भले ही उसकी गुणवत्ता गिर गई थी। जब लोगों में कैंसर जैसी बिमारियों में अत्यधिक वृद्धि होनी लगी तो चिंता जरूरी थी। व्यापक रिसर्च हुए, नतीजे आए तो दोषी निकला पेयजल! अधिकतर मामलों में पेयजल की खराब गुणवत्ता एवं हानिकारक रसायनों से उपजे अन्न कारण पाए गये। हरित क्रान्ति की रसायनयुक्त कृषि एवं औद्योगिक क्रान्ति ने देश के जलसंसाधन को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया।

उपरोक्त परिस्थितियों ने देश में पानी के लिए बाजार बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर के बाजार का 75 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा 3 बड़े ब्रांडो (बिसलरी, किनले एवं एक्वाफिना) का है.   देश की अधिकतर गरीब जनता के लिए साफ-सुरक्षित सस्ते पेयजल की मांग बढ़ी तो बाजार बढ़ा, अधिक वाटर प्यूरीफाई प्लाण्टों की आवश्यकता भी बढ़ी। सस्ते साफ पानी की अपेक्षाएं भी बढ़ी। परिणाम स्वरूप गली मोहल्लों में साफ पानी देने के नाम पर पानी का धंधा करने वाले आर ओ प्लाण्ट लगने लगे। जो पैकेज्ड पानी से सस्ता लेकिन सुरक्षित पानी 20 एवं 10 ली. के कण्टेनर में लोगों को देने का दावा करने लगे।

आर ओ का तात्पर्यः

आर ओ का तात्पर्य है रिवर्स आस्मोसिस। अर्थात आस्मोसिस के विपरीत क्रिया। आस्मोसिस क्रिया के अन्तर्गत कम लवणीय सांद्रता वाला जल अधिक लवणीय सांद्रता वाले जल की तरफ खिंचकर उसमें मिल जाता है। इसके विपरीत आर ओ तकनीकी में अधिक लवणीय सांद्रता वाले जल को बलपूर्वक ऐसे मेंम्ब्रेन से ढ़केला जाता है जिससे केवल जल के अणु या इससे छोटे अणु ही निकल सकें। इस प्रकार लवणीय सांद्रता से मुक्त अथवा मिनरल मुक्त जल प्राप्त किया जाता है। इस मेम्ब्रेन से सारे लवणों को छानकर दिया जाता है क्यों कि इनके अणु जल के अणु से बड़े होते हैं।

जनस्वास्थ एवं जलस्वास्थ की दृष्टि से कितने सुरक्षित हैं आर ओ प्लाण्ट

आइये! अब इन आर ओ प्लाण्टों से सम्बन्धित कुछ बिन्दुओं पर विचार करते हैं जिससे आपको यह अंदाजा हो जाएगा कि कितना सुरक्षित है आपके लिए आर ओ का पानी।

  • सेन्ट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइडलाइन के अनुसार आर ओ प्लाण्ट आबादी क्षेत्र से दूर लगने चाहिए। चूंकि आर ओ प्लाण्टों से जल की अत्यधिक बर्बादी होती है इसलिए यदि आर ओ प्लाण्ट से 1 लीटर पानी निकाला जाता है तो उन्हे फिल्टरयुक्त ग्राउण्ड वाटर रिचार्ज सिस्टम बनाकर अनुपात में 2लीटर पानी वापस एक्विफर अर्थात भूमिगत जल  रिचार्ज करने हेतु भेजना चाहिए। क्या कोई आर ओ प्लाण्ट इन गाइडलाइन के अनुसार कार्य करता है? गली-गली में आर ओ प्लाण्ट लगाये जा रहे हैं। इन प्लाण्टों से अवजल के रूप में निकलने वाला 70 प्रतिशत पानी जो कि अत्यधिक प्रदूषित होता है सीधे नालियों से बहकर किसी तालाब या नदी में जाता है एवं भूमि की ऊपरी सतह के जल को व्यापक रूप से प्रदूषित करता है। जिससे आसपास के कुओं, हैण्ड पम्पों का पानी भी प्रदूषित हो जाता है। ज्यादातर आर ओ प्लाण्ट बोरवेल के माध्यम से व्यापक भूजल का दोहन करते हैं परंतु शायद ही कहीं पर भूजल रिचार्ज सिस्टम के नाम पर कोई संरचना बनायी जाती है।
  • पिछले 15-20 वर्षों में जिस प्रकार से लोगों में सुरक्षित पेयजल के नाम पर आर ओ का पानी इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है, शोधों के अनुसार उनके रोगप्रतिरोधक क्षमता में व्यापक कमी आई है। इसका कारण है कि आर ओ से निकला पानी शुद्धतम होता है। इस शुद्धिकरण में शरीर के लिए आवश्यक मिनरल भी छन जाते हैं। जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं। अतः इन आर ओ प्लाण्टों में शुद्ध किये गये पानी को रिमिनिरलाइज्ड करना आवश्यक होना चाहिए। परंतु अलग से रिमिनिरलाइज्ड करने में मिनरल का अनुपात गहन शोध का भी विषय है।
  • अधिकतर आर ओ, पानी के हानिकारक बैक्टेरिया एवं वायरस को नहीं छान पाते हैं । अतः बैक्टेरिया एवं वायरस को समाप्त करने हेतु अल्ट्रावायलट उपकरण लगाया जाना भी जरूरी है।
  • आर ओ का पानी प्रकृति से अम्लीय होता है (pH 5-7 के बीच)। जो उचित मात्रा में पौष्टिक आहार लेने से संतुलित हो जाता है। परंतु यदि बिना पौष्टिक आहार लिये आर ओ का पानी स्वास्थ के लिए हानिप्रद हो सकता है। दांतों एवं हड्डियों में क्षरण का बड़ा कारण बन सकता है।
  • आमतौर पर यह देखा जाता है कि आर ओ का पानी इस्तेमाल करने वाले लोगों में कभी जरूरत पड़ने पर साधारण पानी पी लेने पर, उनकी साधारण पानी को पचाने की क्षमता समाप्त हो जाती है। उन्हे उल्टी एवं दस्त की समस्या शुरू हो जाती है।
  • वर्ष में कम से कम दो बार आर ओ प्लाण्टों का सम्पूर्ण मेन्टेनेंस किया जाना आवश्यक है, जिसमें मेम्ब्रेन की सफाई एवं बदलाव सबसे जरूरी है। इसकी कभी कोई निगरानी नहीं की जाती है।
  • आर ओ प्लाण्ट के आसपास समुचित साफ सफाई होना आवश्यक है। वाटर कण्टेनर की भी ब्लीचिंग पाउडर से नियमित सफाई जरूरी है।

कुछ मूलभूत सवाल

  • जन स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा होने के कारण क्या आर ओ प्लाण्ट लगाने हेतु लाइसेंस की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए?
  • क्या आर ओ प्लाण्ट लगाने हेतु मानकों का निर्धारण एवं उनका कड़ाई से पालन सुनिश्चित नहीं किया जाना चाहिए?
  • क्या आर ओ प्लाण्टों की नियमित प्रशासनिक जांच नहीं की जानी चाहिए?
  • क्या आर ओ के जल की गुणवत्ता की जांच रिपोर्ट नियमित रूप से सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए?
  • क्या आर ओ प्लाण्ट के वेस्टवाटर का पुर्नउपयोग उद्योगों में शीतलन हेतु नहीं किया जा सकता अथवा उसे ट्रीट करके एक्विफर को रिचार्ज नहीं किया जाना चाहिए?

निश्चित रूप से आपके जवाब हां में होगें। तो अब सजग नागरिक की भूमिका निभाने की बारी आपकी है।

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