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पिछले ३०वर्षों की सरकारी नीतियों का दुष्परिणाम भुगतने को बेबस प्रौढ़ बेरोजगार

जनजागृति मंच
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क्या ३५ वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने, जीविका कमाकर परिवार का पोषण करने का समान अवसर नहीं मिलना चाहिए? क्या उसे भी नौकरियों के लिए अवसर की समानता नहीं दिया जाना चाहिए? जबकि पूर्ववर्ती सरकारों की गलत नीतियों के कारण एवं किन्हीं अन्य परिस्थितियोंवश इस आयु वर्ग के लोग समय रहते नौकरी नहीं प्राप्त कर सके अथवा उन्हे किसी कारण से नौकरी छोड़नी पड़ी हो या निकाल दिया गया हो या आर्थिक मंदी के कारण छटनी कर दिया गया हो, व्यापार में असफल हो गये हों, कर्ज बढ़ गया हो तो क्या ऐसी परिस्थिति में योग्यतानुसार व्यक्तियों को फिर से समुचित आजीविका का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? आज जबकि हम २१वीं सदी में हैं धार्मिक व जातिगत आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर आर्थिक एवं लैंगिक आधार पर ही आरक्षण की उचित व्यवस्था देश में सामाजिक विषमता समाप्त करने की दिशा में बड़ा कदम होगा।

पिछले ३०वर्षों की सरकारी नीतियों का दुष्परिणाम भुगतने को बेबस हैं वर्तमान प्रौढ़ बेरोजगार। समुचित नौकरी नहीं मिल पाने के कारण विशेषतः उच्च शिक्षा प्राप्त ३५ से अधिक आयु के बेरोजगारों के समक्ष अपनी एवं अपने परिवार की आजीविका चलाने तथा सामाजिक प्रस्थिति एवं सम्मान को बचाये रखने का संकट उत्पन्न होता है इसलिए उन्हें मात्र १५००-२०००रुपये प्रति माह के पारिश्रमिक पर भी कार्य करना पड़ता है। साथ ही शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना भी सहने पर मजबूर होना पड़ता है। गाँवों में रोजगार की कमी के कारण शहरों की ओर लोगों का पलायन भी इस परिस्थिति में वृद्धि का जिम्मेदार है। कम पारिश्रमिक में कार्य करने के वाले लोगों की संख्या में वृद्धि के कारण बेरोजगारों का दोहन हो रहा है। इसके पीछे सम्भवत: उनकी मनोवृत्ति यह होती है कि कुछ नहीं करने से तो अच्छा है कि कुछ करते रहो एवं समाज में उन्हे नकारा, नालायक एवं आलसी न समझा जाए। अक्सर यह देखा जाता है कि कौशलयुक्त विशेषत: प्रौढ़ बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार हेतु संसाधनों के अभाव में उनकी बेबसी का पूरा दोहन प्राइवेट सेक्टर में किया जाता है। उन्हें कार्य की उचित दशाओं के अभाव में कार्य करने को विवश किया जाता है। अतः देश में प्राइवेट सेक्टर (छोटी दुकान/घरों आदि में भी) में कार्य करने वाले व्यक्तियों हेतु न्यूनतम वेतन निर्धारण के साथ ही कार्य की उचित दशा प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिए, सप्ताह में एक अवकाश मिलना चाहिए, कार्य के समय का निर्धारण होना चाहिए। दोहनात्मक प्रवृत्ति वाले कार्य संस्थानों पर लगाम लगाने हेतु ऑनलाईन शिकायत दर्ज करने की सुविधा होनी चाहिए एवं उक्त शिकायतों की जाँच कर उचित कार्यवाही भी होनी चाहिए।

पिछले तीस वर्षों में आरक्षित व अनारक्षित जाति व्यवस्था के आधार पर भारतीय समाज को दो भागों में विभक्त करके अपनी पीठ ठोँक रहीं सरकारों की नीतियों का दुष्परिणाम है बेरोजगारी की वर्तमान समस्या। गरीब घरों के अथवा सक्षम घरों के भी अनारक्षित जातियों के अनेक युवाओं के लिए पिछले तीस वर्षों की सरकारी नीति किसी भयंकर यातना से कम नहीं है। पिछले तीस वर्षों में अधिकतर सरकारी नौकरियाँ आरक्षित  जातियों के लिए ही निकलीं। ऐसा नहीं है कि आरक्षित जातियों में भी सभी युवा पिछले तीस वर्षों में नौकरी प्राप्त कर लिये हों। नौकरियों की उपलब्धता के आधार पर उनमें भी प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर रही। साथ ही पिछले तीस वर्षों में देश में राजनीतिक अस्थिरता के माहौल ने रोजगार सृजन की योजनाओं में कोई विशेष योगदान नहीं दिया। कम्प्यूटर द्वारा कार्य पद्धति को बढ़ावा देने की नीति ने भी बेरोजगारी बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा की। स्किल डेवलपमेंट के कार्यक्रम चलाए तो गए लेकिन वे कागजों पर ही ज्यादा रहे। लोगों ने भी येनकेन प्रकारेण मात्र प्रमाणपत्र प्राप्त करने में ही अपनी रुचि दिखाई। पिछले तीस वर्षों में उदारीकरण के कारण जो भी विदेशी कम्पनियाँ भारत आयीं उनमें रोजगार प्राप्त करने की प्रथम शर्त अंग्रेजी एवं कम्प्यूटर के ज्ञान की अनिवार्यता एवं कौशल तथा विशेषज्ञता पर आधारित तकनीकी ज्ञान थी। कम्प्यूटराइज्ड कारखानों ने बेरोजगारी में वृद्धि की। अंग्रेजी की बाध्यता के कारण बहुत से कुशल एवं कौशल युक्त लोग भी नौकरियों से वंचित हो गये। साथ ही आज भी कारपोरेट सेक्टर में कार्य करने के लिए युवाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है इस कारण से बहुत से योग्यताधारी प्रौढ़ व्यक्ति नौकरी नहीं प्राप्त कर पाते हैं।

रोजगार सृजन वाली योजनाओं में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा इसलिए वहाँ पर भी बेरोजगारों का दोहन ही होता रहा। बहुत से कार्यों के लिए रोजगारों का सृजन तो मात्र कागजों पर ही होता है। कमोवेश यही हाल रोजगार पंजीयन केन्द्रों का भी है। पंजीयन के लिए बेरोजगारों को अनेक प्रकार के अवरोधों एवं भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। इस कारण ही बहुत से बेरोजगार इन व्यवस्थाओं का समुचित लाभ नहीं ले पाते। रोजगार की सभी योजनाओं हेतु पंजीयन की व्यवस्था आन लाईन होनी चाहिए जिससे अभ्यर्थी स्वयं को कहीं से भी पंजीकृत कर सकता है।

३५वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए अधिकतर शिक्षा के क्षेत्र में ही नौकरी के अवसर हैं। वर्तमान में शिक्षा के स्तर में गिरावट का प्रमुख कारण है सिर्फ सरकारी नौकरी प्राप्त करने की प्रवृत्ति। जिसे देखिये मोटी तनख्वाह के लालच में किसी प्रकार शिक्षक बनना चाहता है। जबकि उनमें शिक्षक के गुणों एवं प्रवृत्ति का सर्वथा अभाव होता है।शिक्षा के क्षेत्र में सिर्फ उन्ही को अवसर मिलना चाहिए जिनका उद्देश्य ही अध्यापन हो। प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में पढ़े लिखे बेरोजगारों का दोहन सर्वाधिक होता है, जहाँ मात्र १५००रुपये प्रतिमाह तक में शिक्षक पढ़ाने को मजबूर होते हैं। इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों के दोहनात्मक प्रवृत्ति पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की आवश्यकता है। वित्तविहीन शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करना सबसे सार्थक कदम होगा। इस भेदभाव की शिक्षण प्रणाली में समान कक्षा में पढ़ाने के लिए जहाँ कुछ शिक्षकों को सरकारी वेतनमान के रुप में मोटी तनखाह मिलती है वहीं वित्तविहीन प्रणाली के तहत पढ़ाने वाले शिक्षक का उसी संस्था में दोहन किया जाता है एवं उसे अत्यंत ही कम वेतन पर कार्य करना पड़ता है। उत्त्तर प्रदेश में बहुत से शिक्षक २०-२५ वर्षों से वित्तविहीन शिक्षण व्यवस्था में इसलिए शिक्षण कर रहे हैं कि हो सकता है सरकार समान कार्य के लिए समान वेतन प्रणाली लागू कर उनके साथ न्याय करे। साथ ही इतने वर्षों तक विद्यालय प्रबन्धन द्वारा शोषित होकर भी शिक्षण कार्य करने के पश्चात यदि अब वे इसे छोड़ते हैं तो आगे उनका क्या भविष्य होगा, इस सम्बन्ध में वे भी नहीं जानते। इसलिए वित्तविहीन शिक्षण व्यवस्था में कार्यरत योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों को नियमित करने के साथ समान कार्य के लिए समान वेतन प्रणाली लागू करने की आवश्यकता है।

जब देश में सांसद विधायक एवं मंत्री बनने के लिए अधिकतम आयु की बाध्यता नहीं है तो प्रौढ़ बेरोजगारों के हित के लिए प्राइवेट सेक्टर में उन्हे नौकरियों के अवसर प्रदान किये जाने चाहिए एवं कुछ सरकारी नौकरियों में आयु सीमा ५० वर्ष कर दिये जाने की आवश्यकता है। कुछ क्षेत्रों में यथा – सामाजिक, गैर सरकारी स्वयंसेवी समूहों, कौशल पर आधारित क्षेत्रों आदि में सिर्फ ३५-५० वर्ष के व्यक्तियों को ही अवसर दिया जाना चाहिए। इस प्रकार के बेरोजगारों के लिए आन लाईन रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया जाना चाहिए। वर्तमान प्रधान मंत्री कीr नीति के अनुसार ही ७५ वर्ष की आयु तक के व्यक्ति के अनुभव का लाभ उठाया जा सकता है, तो ५० वर्ष का व्यक्ति भी यदि सरकारी नौकरी प्राप्त करता है तो रिटायरमेंट की उम्र तक कम से कम १० वर्ष तो वह कुछ कार्य में अपना योगदान दे ही सकता है एवं सम्मान से जीने का अवसर प्राप्त कर सकता है।

अपने परिवार विशेषतः बच्चों का उचित पालन पोषण न कर पाना किसी भी आत्मसम्मानित व्यक्ति के लिए सबसे कष्टकारी पल होता है। वह न तो जी सकता है और न ही मर सकता है सिर्फ और सिर्फ घुट के रहता है और ऐसी अवस्था में व्यक्ति विघटनात्मक कदम भी उठाने पर मजबूर हो जाता है। समाज में बढ़ते हुए अपराध में बेरोजगारी की भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। अत: रोजगार संवद्र्धन की दिशा में कार्य करने की विशेष आवश्यकता है। मेरे विचार से ३५ से अधिक आयु का व्यक्ति अधिक ध्यान पूर्वक अपना कार्य करेगा क्योकि, परिवार के पालन पोषण का दायित्व एवं कठिनाई से प्राप्त की हुई सम्पोषणीय आय वाली नौकरी खोना नहीं चाहेगा। अत: जो भी रोजगारप्रदायी नीतियाँ बनायी जाएँ उनमें युवाओं के साथ प्रौढ़ बेरोजगारों का भी ध्यान रखा जाए। इस दिशा में विचार करने की आवश्यकता है।

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