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वाराणसी में गंगा से सम्बन्धित प्रमुख तकनीकी समस्याएँ

जनजागृति मंच
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प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी मे गंगा से जुड़ी मुख्य रुप से पाँच समस्याएँ हैं, जिनका निदान तकनीकी के आधार पर ही किया जा सकता है। इनको नीचे क्रमानुसार वर्णित किया गया है-

१. प्रदूषण की विकट समस्या: वाराणसी में गंगा की विशेष महत्ता के प्रमुख कारणों में प्रकृति प्रदत्त उनका उत्तरवाहिनी प्रवाह एवं चन्द्राकार स्वरुप भी है, जिसके कारण वाराणसी के गंगा घाटों को एक विशेष भव्यता भी प्राप्त होती है। वाराणसी के गंगाघाट एवं गंगाघाटों पर संध्या काल भव्य गंगा आरती का आयोजन पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्रबिन्दु रहता है। जो भी पर्यटक एक बार शाम के समय गंगा जी की भव्य आरती देखते हैं, वे सुबहे बनारस की छटा देखने गंगाघाटों पर पुन: आना चाहते हैं, एवं आते भी हैं। परंतु जैसे ही भगवान भाष्कर अंधेरे को भेदते हुए प्रकट होते हैं एवं अपने दिव्य प्रकाश से धरा को रोशन करते हैं वाराणसी में माँ गंगा की दुर्दशा देख पर्यटकों चेहरे पर चिन्ता की स्पष्ट लकीरें दिखाई देने लगती हैं। प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट के बगल में स्थित राजेन्द्र प्रसाद घाट जहाँ से सुबहे बनारस का भव्य नजारा पर्यटक देखते हैं, उसके नीचे से आता हुआ बड़ा नाला, सीवर का बदबूदार मलजलयुक्त अवजल बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे ही गंगा में प्रवाहित करता है, एवं बगल के घाट पर श्रद्धालु गंगा में पवित्र डुबकी लगाते रहते हैं। विदेशी पर्यटकों ने गंगा की इस दुर्दशा पर इस प्रकार की टिप्पणी की है- ‘‘हम भले ही अपनी नदियों को माँ नहीं मानते, उनकी पूजा नहीं करते, परंतु हम उन्हे साफ अवश्य रखते हैं।’’ वाराणसी में इस प्रकार के लगभग २१ बड़े नाले गंगा घाटों के किनारे से अपना अवजल बिना किसी सीवेज ट्रीटमेंट के सीधे गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं। वाराणसी में औद्योगिक क्षेत्र द्वारा निस्तारित अवजल की समस्या कम है। परंतु रामनगर स्थित कुछ रसायन एवं पेपर उद्योगों का अवजल गंगा में निस्तारित किया जाता है। अत: स्पष्ट है वाराणसी में गंगाजल के प्रदूषित होने के लिए नालों द्वारा गंगा में बहाया जा रहा अवजल ही प्रमुख कारण है।

२. वाराणसी में गंगा घाटों के कटाव की समस्या:
गंगा, वाराणसी में गंगाघाटों को भीतर से काट कर पोला कर रही हैं। घाटों के कटाव की समस्या बालू क्षेत्र को कछुआ सेंचुरी की घोषणा के बाद हुई है। बालू क्षेत्र की लम्बाई २ से ३किमी बढ़ चुकी है। वर्तमान में बालू के क्षेत्र का विस्तार ७कि.मी. लम्बाई में (अस्सीघाट से मालवीय पुल, राजघाट तक) एवं १.५कि.मी. चौड़ाई में हो चुका है। यहाँ ६मी. से ज्यादा ऊँचाई में बालू जमा हो गया है जिससे नगरीय क्षेत्र की ऊँचाई एवं गंगा के दूसरे किनारे स्थित बालू के क्षेत्र की ऊँचाई में मात्र ७-८मीटर का ही अन्तर रह गया है। इस बालू के जमाव से वाराणसी में गंगा के चन्द्राकार स्वरुप का स्थायित्व खतरे में है। प्रो. यू.के. चौधरी, (नदी वैज्ञानिक, संस्थापक एवं निदेशक, महामना मालवीय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर दी गंगा मैनेजमेंट, वाराणसी) के अनुसार- ‘‘यदि कछुआ सेंचुरी मौजूद रहा तो वाराणसी में बालू क्षेत्र के विस्तार के कारण दशाश्वमेध घाट के डाऊनस्ट्रीम में मणिकर्णिका, पंचगंगा, रामघाट आदि क्षेत्र का भयावह कटाव हो सकता है एवं देश को अपूर्ण क्षति सन २०२५-३० के बीच हो सकती है।’’

३. मिट्टी के जमाव की समस्या: वाराणसी में अस्सी घाट के आसपास के क्षेत्र में घाटों पर मिट्टी जमाव की व्यापक समस्या दिखती है जिसके कारण गंगा घाटों को छोड़कर बहती हैं (विशेषत: लीन पीरिएड, अप्रैल-जून माह के दौरान)। नदी वैज्ञानिक प्रो.यू.के.चौधरी के अनुसार इसका मुख्य कारण वाराणसी में अस्सी नदी के संगम के क्षेत्र एवं कोण में कृत्रिम बदलाव है। जब तक अस्सी नदी, गंगा से अस्सीघाट पर संगम करती थी मिट्टी के जमाव की समस्या नहीं थी। क्यों कि अस्सी नदी का गंगा से प्राकृतिक संगम कोण ऐसा था कि अस्सी नदी अपने वेग से मिट्टी को जमने नहीं देती थी। परंतु अब कृत्रिम रुप से संगम कोण को ९० डिग्री पर रखने से इस समस्या में वृद्धि हुई है।

बाढ़ के समय गंगा द्वारा लाई गयी मिट्टी घाटों पर जम जाती है। इसके निस्तारण की उचित व्यवस्था के अभाव से भी यह समस्या विकट हो रही है। प्रति वर्ष नगर निगम द्वारा लगभग ८०लाख रुपये के अनुबन्ध गंगाघाटों पर जमी हुई मिट्टी को वाटर पम्प द्वारा गंगा में बहाकर निस्तारित करने के लिए दिये जाते हैं। जो कि सर्वथा अनुचित है। इस मिट्टी को कटाव के क्षेत्र में निस्तारित करने से कटाव की समस्या का भी समाधान होगा साथ ही गंगा में गाद भरने की समस्या में भी कमी आएगी।

वर्ष २०१२ में स्वामी श्रीअविमुक्तेश्वरानंद जी ने बाढ़ के समय गंगा द्वारा लाई गयी मिट्टी के सम्बन्ध में कदम उठाते हुए श्री विद्या मठ के नीचे केदार घाट की सीढ़ियों पर जमी हुई मिट्टी को मजदूर लगा कर साफ करवाया एवं उठवाकर एक किनारे रखवा दिया था. इस कार्य में उन्होंने स्वयं अपना धन खर्च किया था. उनकी यह सोच थी की कम से कम वे अपने मठ के सामने गंगा द्वारा त्याग दी गयी मिट्टी को पुनः गंगा में नहीं बहाने देना चाहते हैं. प्रशासन इस एकत्रित की गयी मिट्टी को कही अन्यत्र निस्तारित कर दे, परन्तु स्थानीय पार्षद एवं लोगो ने मालूम नहीं किस स्वार्थ से वशीभूत होकर उनके इस सराहनीय प्रयास का विरोध किया और बाद में नगर निगम ने पम्प द्वारा एकत्रित की गयी मिट्टी गंगा में वापस बहवा दिया।

४. गंगा में प्रवाह की समस्या: वाराणसी में बढ़ते हुए प्रदूषण के स्तर को देख कर यह स्पष्ट रुप से परिलक्षित होता है कि गंगा में जल का प्रवाह अत्यंत कम है जिसके कारण प्रदूषकों का बहाव द्वारा तीव्र निस्तारण सम्भव नहीं हो पाता। नदी विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी (लीन पीरियड) के दिनों में गंगा में प्रवाह ५००० क्यूबिक फीट/से. मात्र रहता है। साथ ही वाराणसी में गंगा जल की गुणवत्ता (किटाणु नाशक मौलिक गुण) बिल्कुल भी नहीं प्राप्त हो पा रही है। अत: यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं होगा कि वाराणसी में गंगा की एक भी बूँद अपने प्राकृतिक स्वरुप में नहीं आ रही है। यहाँ गंगा में जो जल दिखाई देता है वह अन्य नदियों द्वारा प्राप्त जल, सीवर का अवजल एवं भूमिगत जल मात्र है।

५. पेयजल की गुणवत्ता की समस्या: वाराणसी में भदैनी घाट स्थित इन्टेक स्ट्रक्चर द्वारा गंगा से जल लेकर पेयजल हेतु नगर क्षेत्र में सप्लाई किया जाता है। वर्ष १८९२ में बना यह इन्टेक स्ट्रक्चर अत्यंत पुराना होने के कारण एवं समुचित रखरखाव की कमी के कारण, नगर मे सप्लाई के लिए गंगा से अशुद्ध पेयजल निकालता है। यह इन्टेक स्ट्रक्चर जहाँ पर स्थित है वहाँ से मात्र ५००मीटर की दूरी पर अपस्ट्रीम में गंगा से नगवा मे संगम कर रही प्राचीन अस्सी नदी मे हो रहे नगरीय अवजल का प्रवाह बिना किसी ट्रीटमेंट में सीधे गंगा में किया जाता है। जिसके प्रवाह क्षेत्र के अन्तर्गत भदैनी घाट स्थित इन्टेक स्ट्रक्चर भी आता है। अत: स्पष्ट है भदैनी स्थित इन्टेक स्ट्रक्चर से अत्यंत प्रदूषित जल नगर क्षेत्र में सप्लाई हेतु भेलूपुर स्थित जल संस्थान में शुद्धिकरण हेतु भेजा जा रहा है। परंतु यहाँ जल संस्थान मे जल के शुद्धिकरण का स्तर अत्यंत निम्न होता है और उसे शहर में सप्लाई कर दिया जाता है। स्वयं जल संस्थान के महाप्रबन्धक ने भी सार्वजनिक रूप से इस तथ्य को स्वीकार किया है कि जल को पूर्ण रुप से शुद्ध करना काफी खर्चीला होता है जो वर्तमान परिस्थितियों में अभी तक सम्भव नहीं हो पाया है। इस कारण से वाराणसी में जल जनित बिमारियों के कारण रोगियों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। शहर के अस्पतालों में डायरिया के रोगियों में व्यापक वृद्धि देखी जा सकती है।

वाराणसी स्थित पंचगंगा फाउण्डेशन जो कि गंगाजल का बैक्टीरियल एनालिसिस कर रहा है, के निदेशक डॉ. हेमन्त गुप्त के अनुसार गंगा बेसिन में कैंसर गालब्लेडर की समस्या में वृद्धि हो रही है, जो भारत के अन्य भागों में आमतौर पर कम दिखाई देती है। डायरिया तो आम बिमारी हो गई जिसके रोगी शहर के विभिन्न अस्पतालों में इतनी अधिक संख्या में भर्ती होते हैं कि सभी को इलाज हेतु बेड तक देना मुश्किल हो जाता है। बहुतों का इलाज तो जमीन पर लेटा कर किया जाता है। जबकि कैंसर गालब्लेडर एवं डायरिया जैसी बिमारी अमेरिका एवं यूरोप के देशों में जल्दी देखने को नहीं मिलतीं। इस समस्या का मूल कारण दूषित जल सेवन ही है। अत: स्पष्ट है गंगा किनारे के क्षेत्रों में पेयजल (सतही जल एवं भूमिगत जल दोनो) अत्यधिक प्रदूषित हो चुका है, जो अत्यंत चिंताजनक है।

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