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‘हिन्दी दिवस’, 14 सितम्बर के अवसर पर यह आशा की जा सकती है कि हमारे देश में पुनः हिन्दी का सम्मान बढ़ेगा। दिन विशेष पर आशान्वित होने का कारण यह है, कि अन्य दिवसों के समान ‘हिन्दी दिवस’ को भी मात्र कोरम पूरा करने हेतु एक समारोह के रूप में देखा जाता है, एवम् कुछ लोगों, संस्थाओं तथा सरकारी कार्यालयों द्वारा हिन्दी को इस दिन सम्मान देकर यह दर्शाने का प्रयास किया जाता है की इस देश में अभी हिन्दी के कुछ चाहने वाले हैं। अपितु भाषा के शुद्धता के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। बोलचाल एवम् लिखने में हम हिंग्लिश अर्थात हिन्दी एवम् अंग्रेजी के मिश्रण का बहुतायत प्रयोग करने लगे हैं। यदि हिंग्लिश का प्रयोग इसी प्रकार बढ़ता रहा तो भविष्य में शुद्ध हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या वर्तमान में संस्कृतभाषियों के सामान हो जायेगी। हिन्दी भाषा की यह अशुद्धी पिछले दो दशकों में बढ़ी है, जो एस एम एस की भाषा के रूप में विकसित होकर हमारी हिन्दी के लिए संकट का कारण बन रही है। पिछले दो दशकों के दौरान शिक्षक बने नवयुवकों ने अपने विद्यार्थियों को भी हिंग्लिश में ही शिक्षा प्रसारित की, जिससे भाषागत अशुद्धता बढ़ती गयी। इस हालात से निकलने एवं भारत तथा हिन्दी को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए शुद्ध हिन्दी में वार्तालाप को बढ़ावा देने के साथ साथ उच्च एवम् विशेषज्ञता वाले शिक्षा पाठ्यक्रमों को हिन्दी भाषा में उपलब्ध कराने की विशेष आवश्यकता है। नहीं तो आईआईटी रुड़की में 73 छात्रों के फेल होने जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होगी, जिसके मूल में हिन्दीभाषी होना एवं अंग्रेजी का कम ज्ञान होना भी था। जो इस देश के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
कृपया विचार कीजिये!
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