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आए दिन दुष्कर्म की घटनाओं से रूबरू होता हूं, कभी २ साल की बच्ची तो कभी ४ साल की बच्ची और कभी किशोरी तो कभी प्रौढ़ महिला के साथ दुष्कर्म, लेकिन हम हमेशा कुछ बड़ा होने का इंतज़ार करते हैं और तब जा कर हमारी नींद खुलती है। फिर देश में कुछ दिनों के लिए ऐसी बड़ी घटनाएं चर्चा का विषय बनती है। उसके बाद फिर भूली बिसरी बात बन कर इतिहास के पन्नों में दफन हो जाती हैं।
हम फिर उन घटनाओं का जिक्र किसी घटना की क्रूरता की तीव्रता दर्शाने के लिए करते हैं, लेकिन मेरा सवाल ये है कि आखिर कब तक हम इस तरह की घटनाओं केवल चर्चा का विषय बानाकर न्यूज चैनलों में डिबेट कर समाप्त कर देंगे। कब तक हम पीड़िताओं के लिए मोमबत्ती जलते रहेंगे। आखिर कब तक? क्या कभी देश इस तरह की घटनाओं के प्रति उतना सशक्त नहीं हो पाएगा की दुष्कर्मियों को ऐसी सजा मिले कि भविष्य में ऐसे खयाल मात्र आने से भी वैसे लोगों के मन में एक डर समा जाए।
लेकिन शायद हमारे देश में ऐसा संभव होना बहुत ही मुश्किल है, क्यूंकि जिस देश में अलग अलग उम्र की महिलाओं के साथ दुष्कर्म पर अलग सजा निर्धारित हो वहां कभी भी इस तरह की घटनाओं पर काबू पाना मुश्किल होगा। निर्भया के साथ हुई घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था और उस समय ऐसा लगा कि दुष्कर्मियों के खिलाफ ऐसा कानून बनाया जाएगा, जिससे आगे ऐसे घटनाओं पार शायद कुछ विराम लग सके,लेकिन देश ने एक ऐसा कानून बनाया की 14 साल से कम उम्र की किशोरियों के साथ अगर दुष्कर्म होता है तो उसके लिए अलग सजा का प्रावधान होगा,और उससे ऊपर की उम्र वालों के साथ ऐसा होने पर अलग सजा का प्रावधान होगा।
सवाल ये है कि अगर किशोरी की उम्र 14 साल एक महीने रही तो क्या उसके साथ हुई घटना की तीव्रता कम हो जाएगी, क्या 25 साल की महिला के साथ दुष्कर्म करने वालों के साथ हम 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वालों की तुलना में थोड़ी नम्रता से पेश आयेंगे। कोई बताएगा की क्या अलग अलग उम्र की महिलाओं पर दुष्कर्म का अलग अलग प्रभाव पड़ता है।
जब तक ऐसी व्यवस्था हमारे कानून में रहेंगी,तब तक चाहे वो निर्भया हो या फिर प्रियंका रेड्डी कोई सुरक्षित नहीं होगा। ऐसे में हम बस इतना कर सकते कि हम ढेर सारी मोमबत्तियां खरीद कर घर में रख लें और अगर हम वास्तव में ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाना चाहते हैं तो हमें दुष्कर्म को हत्या से भी बड़ा गुनाह मान कर चाहे पीड़िता का उम्र कुछ भी हो। आरोप सिद्ध होने पर मृत्युदंड से भी कड़े सजा का प्रावधान लागू करना चाहिए।
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं, इससे संस्थान का कोई लेना-देना नहीं है।
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