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इम्तियाज अली की फिल्म रॉकस्टार पिछले साल की कामयाब और प्रशंसित फिल्म है। इसमें रणबीर कपूर की अदाकारी की ऊंचाई दिखी। हर फिल्म की तरह इसके निर्माण की भी कई कहानियां हैं। खासकर हीरोइन नरगिस फाखरी को लेकर कई सवाल उठे, लेकिन इम्तियाज के पास अपने तर्क और कारण हैं। बताते हैं वह-
नई अभिनेत्री पर सवाल
नरगिस यूनिट के हर सदस्य को विचित्र लग रही थीं। ऐक्टिंग, बातचीत, लहज्ो में अलग थीं। यहां तक कि तीसरे शेड्यूल में आए यूनिट के नए सदस्यों को भी वह विचित्र लगीं। उन्होंने नरगिस को स्वीकारने में समय लिया। मेरे अनुसार उन्हें आसानी से स्वीकार किया भी नहींजा सकता, लेकिन उन्होंने मेरे निर्देशों का पालन किया और अपने किरदार को आत्मसात किया। उनके अभिनय में नकलीपन नहीं है। नरगिस मुमताज और वहीदा रहमान की श्रेणी की अभिनेत्री हैं। इन अभिनेत्रियों को भी पहले नकारा गया था। हमें सिर्फ नरगिस के संवाद डब करने पडे।
नरगिस पहली ही मुलाकात में मुझे पसंद आ गई थीं। उनका लुक कश्मीरी है। वह हर तरह से मेरी हीरोइन की तरह दिखती थीं। रणबीर के साथ उनकी जोडी जम रही थी। नरगिस मुझे रणबीर की टक्कर की लगीं। मैं ध्यान रखता हूं कि किरदार के दिल से कलाकार का दिल मिल जाए। वह तालमेल हो जाए तो एक्सप्रेशन आसान हो जाता है।
फिल्म के नैरेटिव फॉर्म से कुछ दर्शकों को दिक्कत हुई थी। मैं चाहता था कि जनार्दन (रणबीर) के कॉलेज से लेकर कश्मीर जाने तक के प्रसंग से दर्शक जुडें। इसके लिए जरूरी था कि उसके प्रति दर्शकों के मन में सहानुभूति हो। बाद में जनार्दन सभी से कट जाता है। तभी दर्शकों के मन में कौतूहल पैदा होता है। मुझे नैरेटिव में जाना ही था, जहां वह अलग हो जाए और दर्शक उसे खोजें। इसके बाद ही जॉर्डन (जनार्दन) में लोगों की रुचि घनी होती है। वे जानना चाहते हैं कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है?
अलग ढंग की एडिटिंग
फिल्म की एडिटिंग पर समीक्षकों ने आपत्ति की। कोई भी एडिटर स्क्रिप्ट का ही पालन करता है। वह अपनी कहानी नहीं कहता। स्क्रिप्ट ही ऐसी थी कि इंटरकट और जंप नज्ार आते हैं। मैं हीरोइन की पहचान पर ज्यादा समय खर्च नहीं करना चाहता था। सीधे तरीके से हीर के बारे में बताता तो क्या दर्शक बोर नहीं होते? लिखते समय इंटरवल के बाद का शुरुआती हिस्सा मैंने लीनियर तरीके से लिखा, लेकिन वह मुझे उबाऊ लगा। इस फिल्म में सीन तेजी से बदलते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक से फिल्म के सीन को अर्थ मिलते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि जो सीन म्यूजिक के बिना अच्छे लगते हैं, वे म्यूज्शियन के बाद निरर्थक हो जाते हैं। फिल्म का स्ट्रक्चर म्यूज्शियन के दिमाग की तरह है। वे लीनियर नहीं सोचते। आप देश-दुनिया के किसी भी संगीतकार की जिंदगी देखें। फिल्म के स्ट्रक्चर की यह बडी खूबी है।
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संगीतकार की कहानी
चूंकि फिल्म का ज्यादातर लेखन जॉर्डन के दिमाग्ा से हुआ है। इसलिए यही स्ट्रक्चर रखा गया। वह दिमाग्ा एक संगीतकार का था, जो बहुत मुखर नहीं है। वह समझा नहीं पाता कि क्यों ऐसा कर रहा है। जॉर्डन को सभी ने रिजेक्ट किया। उसे लगता है कि जो उसके हिसाब से सही है, बाकी दुनिया के लिए ग्ालत कैसे है। समाज चाहता है कि उसके ढर्रे पर चले, जबकि जॉर्डन का दिमाग सीधी लाइन में नहीं सोच पाता। लोग उसे ठोकरें मारते हैं, किनारे करते हैं, फिर उसी से कहते हैं कि वह ग्ालत है। उसकी सारी फीलिंग्स साड्डा हक गाने में आती है।
रॉकस्टार की प्रेरणा हीर-रांझा की लीजेंड से मिली थी। रांझा के जाने के बाद हीर बीमार हो जाती है। उन दिनों मनोचिकित्सक तो होते नहीं थे। रांझा सूफी संत के रूप में लौटता है। हीर को पता चलता है तो वह ठीक होने लगती है। आखिरकार रांझा हीर को लेकर भाग जाता है। नरगिस की बीमारी हमने हीर रांझा से ली। लेकिन आज के दर्शकों को लगता है कि जनार्दन से मिल कर हीर कैसे ठीक होने लगती है? वास्तव में यह प्रेम और मिलन का असर है।
मैं चाहता तो हीर को जनार्दन से मिलवा सकता था, लेकिन उसकी ज्ारूरत महसूस नहीं हुई। जिंदगी में सब कुछ ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होता। हीर को अपने पति से प्रेम नहीं है, लेकिन उसने खुद को एडजस्ट कर लिया है। वह बीमार है, उसका ब्लड काउंट गिरता जा रहा है। प्राग में जॉर्डन से मिलने के बाद उसकी तबीयत में सुधार होता है। पति के साथ समस्या नहीं है। समस्या है उसका अपना अंतद्र्वद्व। जब उसके पति को जॉर्डन से उसके संबंधों के बारे में पता चलता है तो वह कोई फैसला नहीं लादता। वह नरगिस पर ही निर्णय छोडता है। नरगिस अपने घर इंडिया आती है। यहां फिर उसकी मुलाकात जॉर्डन से होती है। अपने अनुभवों से मैं कह सकता हूं कि तमाम पीडाओं के बावजूद लोग कई बार शादियों में बंधे रहते हैं। फिल्म में हीर दिमागी तौर पर कमजोर है। मनोचिकित्सक की मदद ले रही है। तभी उसकी जिंदगी में कोई ऐसा आता है जिसने उसे प्यार किया था। वह खुश हो जाती है।
प्रेम एक एहसास है
फिल्मों में प्रेम के चित्रण में जो कमियां दिखती हैं, वह सब मेरी हैं। मेरा कन्फ्यूज्ान अभी तक दूर नहीं हुआ है। युवा था तो मैं अलग-अलग लडकियों के लिए अलग-अलग ढंग से फील करता था। उस एहसास को प्यार की श्रेणी में डाला जा सकता है, लेकिन वह एहसास वास्तव में प्यार से अलग है। अपनी फिल्मों में मैं आइ लव यू शब्द इस्तेमाल नहीं करता था। मैं कुछ समझ नहीं पाता हूं तो स्पष्ट तरीके से उसे नहीं लिख सकता। फिर भी मेरी फिल्मों में प्रेम का चित्रण खूबसूरत होता है। वह इसलिए कि मैं लगाव, आकर्षण और किसी के साथ जुडने की चाहत को समझता हूं। मैं प्रेम करता हूं।
इस फिल्म का एक गीत है, जो भी मैं कहना चाहूं, बर्बाद करें अल्फाज मेरे. , फिल्मों के साथ भी वही बात है। यहां दूसरी तरह की सीमाएं हैं और आपकी अभिव्यक्ति कहीं छूट जाती है। इस फिल्म में समझ नहीं आता कि लडकी मर गई है या जिंदा है? कहानी स्लो होती है तब भी मुझे बताना ज्ारूरी नहीं लगा कि लडकी मर गई है। मरने के बाद उसकी आत्मा आती है। जॉर्डन क्या देख रहा है? हमने देखा है कि वह स्टेज पर खडा होकर ब्लैंक आउट हो जाता है। मेरे लिए तो वे दोनों अपनी अंतरात्मा में जुडे हुए थे और मेरे लिए वही अंत है। मुझे जरूरी नहीं लगा कि उसकी मौत दिखाऊं।
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