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यादों की दुनिया कभी तो सपनीली होती है लेकिन कई बार यादों के शूल मन में इस कदर चुभ जाते हैं कि जिंदगी खत्म सी लगने लगती है। समय थम जाता है और आगे बढने के रास्ते नजर आने बंद हो जाते हैं। किसी के साथ कोई खास घटना घट जाती है, जिसकी यादों में जिंदगी फंस कर रह जाती है तो कुछ लोग आदतन यादों के भंवर में उलझे रह जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों से बातचीत के आधार पर कहें तो लगभग 80 फीसदी लोगों की पर्सनैलिटी पर अतीत की छाप दिखती है। पर यह स्थिति किसी भी सूरत में इंसान के लिए अच्छी नहीं है।
हरिवंश राय बच्चन ने अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद जो बीत गई सो बात गई नामक रचना लिखी। शायद यह उनकी ओर से अतीत से निकलने का एक प्रयास था। अतीत से निकलना भले ही कितना मुश्किल क्यों न लगता हो लेकिन हर नजरिये से यही उचित माना जाता है। व्यावहारिकता की दृष्टि से देखें तो समय किसी के लिए नहीं रुकता, भले ही आप अतीत की यादों में कितने ही क्यों न जकडे हों। इसके नुकसान भी आपको झेलने पड सकते हैं। पहला नुकसान तो यह है कि जब तक आप पिछला छोड नहीं देते, आगे बढना और भी मुश्किल हो जाता है। दूसरा यह कि आप अतीत के साथ रहकर खुद को और पिछडा बना लेते हैं।
नई दिल्ली स्थित मूलचंद एंड मेडिसिटी हॉस्पिटल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कौर कहती हैं, साइकोलॉजी के अनुसार अकसर वे लोग बीते समय की घटनाओं को नहीं भुला पाते जिनका ईगो सिस्टम कमजोर होता है। देखा जाता है कि ऐसे लोग अपने बारे में और अपने बैकग्राउंड के बारे में हीन भावना से ग्रस्त होते हैं। उनमें वास्तविकता को कु बूल करने की हिम्मत नहीं होती। अतीत को भुला न पाना दरअसल दूसरे शब्दों में वास्तविकता से दूर भागने जैसा ही है। डॉ. गगनदीप कहती हैं, यादों को भुलाने में इंसान के कोपिंग मकैनिज्म का अहम रोल होता है। कोपिंग मकैनिज्म में दुख सहने की शक्ति के साथ उससे उबरने के तरीके, सभी कुछ शामिल हैं। कोपिंग मकैनिज्म एक लंबे समय में विकसित की जाने वाली भावना है। डॉ. गगनदीप के अनुसार अकसर वे लोग यादों के दुष्प्रभावों का शिकार होते हैं जिन्हें बचपन से ओवरप्रोटेक्शन मिलती है। वह कहती हैं, बच्चे की परवरिश के दौरान माता-पिता कई बार इतने प्रोटेक्टिव हो जाते हैं कि उन्हें जिंदगी की असलियतों से दूर करने की कोशिश करते रहते हैं।
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एक उम्र तक तो अभिभावक बच्चों को बचा सकते हैं, लेकिन उसके बाद उनका सुरक्षा कवच हटते ही जब बच्चे को दुनिया के थपेडे पडते हैं तो वह संभल नहीं पाता। भले ही तब तक वह बडा ही क्यों न हो चुका हो। गौरतलब है कि कुछ स्पेशल केसेज में ये कॉन्सेप्ट लागू नहीं होता। किसी के साथ कोई बडी अनहोनी हो जाए तो जाहिर है कि उसका उस घटना से उबरना मुश्किल ही होगा। डॉ. गगनदीप कहती हैं, मान लीजिए, किसी की अकेली संतान की मृत्यु उसकी शादी के दिन हो जाए तो ये एक अपवादस्वरूप बात हो गई। ऐसे केस में यादों से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है और इंसान को बहुत समय भी लग जाता है।
अतीत भुलाने का मतलब
1. अतीत भुलाने का मतलब है उन स्थितियों को कुबूल कर लेना जिन्होंने आपको आहत किया हो। यह मान लेना कि आपने उन स्थितियों में वह किया जो आप कर सकते थे और कुबूल कर लेना कि अब उसमें कोई सुधार नहीं किया जा सकता।
2. अतीत को भुलाने का मतलब खुद को बीते वक्त में की हुई गलतियों के लिए माफ कर देना है। उस उधेडबुन से बाहर निकलना कि आप क्या कर सकते थे या क्या नहीं करना चाहिए था। अगर आप अपनी गलतियों से डील कर रहे हैं या कोई हताशा का दौर देख रहे हैं तो आगे बढने के लिए खुद को माफ करना जरूरी हो जाता है।
2. अतीत को भूलने का मतलब यह भी है कि आपका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण है और आप खुद को बीते हुए दुखद समय से बाहर निकालने के लिए वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। किसी दुखद रिश्ते या घटना के गम से बाहर निकलकर जीवन को आगे बढाना चाहते हैं।
4. अतीत भुलाने का मतलब है कि आप समय के चक्के की रफ्तार को कुबूल करते हैं।
5. अतीत भुलाने का मतलब है कि आप नए कनेक्शंस बना रहे हैं। हालांकि इसके लिए जरूरी नहीं कि आप नए लोगों से संपर्क में आएं बल्कि जरूरी यह है कि आप नए ढंग से रिश्तों को डील करें। अपने दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाना शुरू करें या अपने पडोसियों के साथ सोशलाइज करें।
6.अतीत भूलने का मतलब है कि आप दुनिया को नए नजरिये से देखने को तैयार हैं।
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निकलें अतीत के शिकंजे से
1.जीवन के नए लक्ष्य तलाशें- जीवन में नए फोकल पॉइंट्स ढूंढें, तभी आप अतीत के चक्रव्यूह से निकल कर नई दिशा में अपनी सोच को केंद्रित कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक समीर पारेख कहते हैं, फर्ज कीजिए किसी स्त्री ने अपने बच्चे को खो दिया हो और उस ट्रॉमा से निकलने के लिए वह कोई क्रेश या बच्चों से संबंधित एनजीओ खोल ले। इस तरह से वह स्त्री खुद को व्यस्त रखते हुए अपने जीवन में नए रास्ते तलाश सकती है।
2. कुबूल करना सीखें- आमतौर पर हम अतीत से इसलिए चिपके रह जाते हैं क्योंकि हम उसे कुबूल नहीं कर पाते। यदि आपके मन पर कोई बात लग गई हो तो उसके बारे में गहराई से सोचें और कुबूल करें कि वाक्या गुजर चुका है। अब आप कुछ नहीं कर सकते और आगे बढ जाएं।
3. जूझना छोड दें- कोई बुरी घटना होने के साथ ही मन में उधेडबुन सी शुरू हो जाती है। अतीत से निकलना है तो उस उधेडबुन को छोड दें।
4. हादसों से सीखें- मानना सीखें कि जीवन की सभी घटनाएं शिक्षाप्रद होती हैं और उनसे शिक्षा लेना सीखें।
कहावत है, बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले। यानी अतीत भुला कर भविष्य की ओर ध्यान केंद्रित करें। जिंदगी का बहाव किसी के लिए नहीं रुकता। इसमें बहना ही प्रकृति है। जितनी जल्दी यह मान लिया जाए, उतना ही खुद के लिए, अपने आसपास वालों के लिए और अपने माहौल के लिए अच्छा है।
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