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हर सीरियल कुछ कहता है

Jagran Sakhi
Jagran Sakhi
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comedyआजकल शादी ब्याह करना हो या कोई तीज त्योहार निपटाना हो, रस्में जाननी हों या लेटेस्ट फैशन.. सीरियल से बढिया विकल्प हो ही नहीं सकता। खाना-खजाना से लेकर सास-बहू की किचकिच तक सीरियलमय है। घर में लडाई-झगडे के मुद्दे क्या हों और आज खाना क्या बनेगा, यह सीरियल तय करता है। आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि हर सीरियल कुछ कहता है, बस आपको सुनना आना चाहिए। जैसे कि स्वयंवर वाला सीरियल कहता है कि हमारी प्रथाएं आज भी नहीं बदली हैं और लडकियों को अपना मनपसंद वर चुनने की आजादी है। मतलब समझे? पुरुषवादी मानसिकता के शिकार जो लोग इतरा रहे हों, उन्हें अपनी स्थिति समझकर सावधान हो जाना चाहिए।


सीरियल ने सिद्घ कर दिया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता। इसे अक्षरश: न समझ कर भावनात्मक रूप में समझें। यहां कहने का भाव यह है कि जहां नारी का वर्चस्व रहता है वहां सुख-शांति और सफलता निवास करती है। सीरियल इसी भाव की पुष्टि करता है। किसी भी सीरियल को देखिए, आप पाएंगे कि पुरुष की उपस्थिति नाममात्र को है। आप समझ सकते हैं कि सीरियल में वर्चस्व किसका है। आज फिल्म का बाजार सीरियल के आगे फीका पड गया है। वजह यह कि सीरियल के आंसू, उसकी हंसी और भावनात्मक मारक क्षमता कहीं आगे निकल गई है। तीन घंटे की फिल्म वह सस्पेंस नहीं पैदा कर पाती जो आधे घंटे का सीरियल पैदा कर देता है, वही हाल हॉरर, लव और रोमांस का है। वैसे आजकल जिसे कुछ समझ में नहीं आता, वह लट्ठ लेकर सीरियल के पीछे पड जाता है। बिना जाने-समझे कि किसी सीरियल का उद्देश्य क्या है?


आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि बुद्धू बक्सा मात्र बकवास नहीं है। आंखें खोलिए या बिस्तर पर जाइए सीरियल के विचार के बिना न तो सो सकते हैं और न ही जाग सकते हैं। अरे अच्छे सीरियल दर्शक तो बाकायदा डायरी मेंटेन कर सीरियल इवेंट और सीक्वेंस याद रखते हैं। मैं अपने मित्र सुधाकर के घर चाय पी रहा था। भाई साहब आवभगत में लगे थे और भाभी जी सीरियल रस ले रही थीं कि अचानक समस्या आ खडी हुई। उन्हें खटका हुआ कि कहीं कुछ छूट रहा है। आप समझ सकते हैं कि कहीं यह अहसास सालने लगे कि कुछ छूट रहा है तो कितनी तकलीफ होती है। भाभी जी को भयंकर टेंशन ने घेर लिया। लगा चक्कर आ जाएगा। सुधाकर जी अपने बैग में सिरदर्द की दवा ढूंढने लगे कि तभी उन्हें कुछ याद आया। वे बोले, सुनो तुमने डायरी में नोट कराया था कि जेटीवी के कंगन सीरियल के साथ केटीवी पर नया सीरियल मंगन शुरू हो रहा है। तुमने मुझे याद दिलाने को कहा था कि कहीं पहला एपीसोड निकल न जाए।


बस इतना सुनना था कि टी वी पर छाई कंगन की खनक मंगन के नए एपीसोड में ढल गई। भाभी जी का चेहरा खुशी से चमक उठा। सिरदर्द तो मानो छू मंतर हो गया और उन्होंने सुधाकर को प्रशंसा भरी नजरों से देखा।


जैसा कि मैं कह रहा था, हर सीरियल कुछ कहता है। बस उसे सुनने-समझने की तमीज होनी चाहिए। आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि सीरियल बस सास-बहू की कहानी नहीं है। यह पूरी-पूरी एक जीवनशैली है। यहां तक कि सीरियल ही समाज का आईना है। किसी जमाने में साहित्य रहा होगा समाज का आईना, आज तो सीरियल ही है।


तो जो सीरियल की आवाज सुन लेते हैं वे समाज के साथ चलते हैं और जो इसकी भाषा नहीं समझ पाते

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