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तनाव की वजहें बहुत, निदान सिर्फ एक.. और वह है ध्यान। हालांकि कई आध्यात्मिक संगठनों ने ध्यान को लेकर इतना काम किया है कि भारत से लेकर यूरोप तक अब किसी को यह बताने का मतलब नहीं रह गया है कि ध्यान है क्या और कैसे करें। इसका महत्व अब लगभग सभी को पता है और इसकी सैकडों विधियां भी अलग-अलग समुदायों की ओर से बताई जा चुकी हैं। फिर भी मुश्किल है। सबसे बडी मुश्किल यह है कि करें कैसे? समय तो किसी के पास है नहीं! रोजमर्रा के कामकाज में ही इतना वक्त निकल जाता है कि चुप होकर आधे घंटे बैठना भी संभव नहीं रह गया। लेकिन वास्तव में समय निकालना इतना मुश्किल है नहीं। वो कहते हैं न, जहां चाह वहां राह!
गर्मियों की सुबह
अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं तो तैयार हो जाएं। अब आपके लिए बिलकुल सही समय आ गया है। सखी आपके लिए लाई है एक ऐसी विधा जिसके लिए न तो आपको अलग से समय निकालने की जरूरत होगी और न ही कोई मुश्किल। बस एक बार ठान लेने की जरूरत है। गर्मियों का यह समय इस प्रयोग के लिए सबसे मुफीद है। इन दिनों दिन तो बडा होता ही है, सुबह उठने में कोई मुश्किल भी नहीं होती। जैसा कि ठंड के दिनों में आलस के कारण होता है।
यूं तो इस विधा की खूबी यही है कि यह प्रयोग आप जब, जहां और जैसे भी हैं, उसी अवस्था में कर सकते हैं। इसके लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है। ओशो ने इसे नाम दिया है विपस्सना। असल में ध्यान का अर्थ कुछ और नहीं, सिर्फ होश है। आप जो कुछ भी करें सब कुछ करते हुए अपना होश बनाए रखें। अपनी ही आती-जाती सांसों के प्रति, अपने प्रत्येक कार्य के प्रति. चाहे चलना हो या खाना, या फिर व्यावसायिक कामकाज या मनोरंजन ही क्यों न हो, अपनी हर गतिविधि के प्रति होश बनाए रखें। अपने विचारों के प्रति साक्षी भाव बनाए रखें। जो भी आ रहा है या जा रहा है, चाहे वह क्रोध हो या भय या प्रेम या फिर कोई और आवेग या विचार, सबको आते-जाते सिर्फदेखते रहें। उस पर कोई प्रतिक्रिया न करें।
होश बनाए रखें
शुरुआती दौर में निरंतर ध्यान बनाए रखना थोडा मुश्किल हो सकता है। इसके लिए बेहतर होगा कि सुबह-सुबह थोडा समय निकालें। अगर आप मॉर्निग वॉक के लिए निकलते ही हैं तब तो अलग से कुछ करना ही नहीं है। सिर्फइतना करना होगा कि जो आप पहले से कर ही रहे हैं, बस उसी के प्रति होश बना लें। अगर नहीं निकलते तो इन गर्मियों में थोडे दिनों के लिए यह आदत डालें।
गर्मी के दिन इसके लिए इसलिए भी बेहतर हैं कि जाडे की तरह गर्म कपडों का अतिरिक्त बोझ शरीर पर नहीं होगा। शरीर जितना हल्का होता है, ध्यान के लिए उतना ही सुविधाजनक होता है। पार्क में या कहीं भी जब आप मॉर्निग वॉक के लिए निकलें तो बहुत धीमी गति से चलें और चलते हुए अपने चलने के प्रति होश बनाए रखें। यह न सोचें कि आप चल रहे हैं, बल्कि अपने को चलते हुए देखें, ऐसे जैसे कोई और चल रहा हो। इसे बुद्धा वॉकिंग कहते हैं। यह सिर्फ 20 मिनट आपको करना है। फिर धीरे-धीरे यह अपने आप सध जाएगा।
Meditation and Yoga should be a part of life specially in today’s metros and urban more busy and unsystematic life style. We should try to adopt Yoga and Meditation as soon as possible.
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