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कुछ तो गडबड है, सिंगल क्यों है आखिर? कहीं हार्ट ब्रेक का मारा तो नहीं बेचारा..? अब तक मिस राइट नहीं मिली क्या..? कहीं गे तो नहीं..? कोई गंभीर हेल्थ प्रॉब्लम तो नहीं..? सिंगल और वह भी 30-40 पार का, अडोसी-पडोसी सहित पूरा समाज चिंतित होने लगता है। अकेली जिंदगी जीने वाला व्यक्ति ऐसी मनोरंजक किताब की तरह है, जिसे कलीग्स, पडोसियों से लेकर ड्राइवर-मेड-धोबी और कुक तक पढना चाहते हैं और अपनी-अपनी समझ से कहानी के अर्थ निकालते-सुनाते हैं। यह ऐसी किताब होती है जिस पर लेखक के अलावा पूरी दुनिया का कॉपीराइट होता है। तुर्रा यह कि लेखक को रॉयल्टी देना तो दूर, क्रेडिट तक नहीं दिया जाता। दरियादिली-विनम्रता से पेश आएं तो करेक्टर पर सवाल, गुस्सा या खीझ दिखा दें तो फ्रस्टेटेड..।
यह अलग बात है कि दोस्तों, मेहमानों, रिश्तेदारों के लिए इनका घर सराय की तरह सर्वदा सुलभ हो सकता है।
यार, तेरे घर एक पार्टी रख लें आज?
गांव वाले मामा जी के ससुर जी के भाई की बहू के पैर में फ्रैक्चर हो गया है, तुम्हारे यहां रहकर इलाज करा लें?
तुम्हारे तो मजे हैं। कोई जिम्मेदारी नहीं..। जितने मुंह उतनी बातें। लेकिन फायदे भी कम नहीं हैं सिंगलहुड के। सबसे बडा तो यही है कि मार्केट वैल्यू नहींघटती। चालीस क्या-पचास भी पार कर लें, कोई न कोई इंतजार में बैठी ही होती है या कम से कम लोग ऐसा जताते रहते हैं। जरूरत बस यह है कि करियर ठीक हो, बैंक बैलेंस हो, एक अदद घर हो..
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शादीशुदा ज्यादा कमाते हैं?
करियर की बात करें तो करियर बनता भले ही शादी से पहले हो, बढता-संवरता शादी के बाद ही है। शादी से परिवार नामक संस्था में भरोसा जगता है, फिर एक अदद घर बसता है। घर बसते ही उसे संवारने के सामान जुडते हैं। फिर आ जाते हैं नए सदस्य परिवार में। गृहस्थी की इस गाडी में हर स्टेशन पर जिम्मेदारियों के कुछ और डिब्बे जुड जाते हैं।
यह हम ही नहीं मानते, जर्मनी की एक यूनिवर्सिटी का शोध भी यही कहता है। इसके अनुसार शादीशुदा लोग सिंगल्स की तुलना में ज्यादा कमाते हैं। शादी तय होते ही वे आने वाली जिम्मेदारियों के बारे में सोचने लगते हैं और ज्यादा मेहनत करने लगते हैं। शादी के बाद उनकी निजी जिंदगी सुकून भरी हो जाती है और वे बेफिक्र होकर काम पर ध्यान दे पाते हैं। उनकी कार्यक्षमता बढ जाती है। जाहिर है वे अपने काम में बेहतर नतीजों तक पहुंचते हैं। अविवाहितों की तुलना में शादीशुदा लोग अपने वेतन से कम संतुष्ट रहते हैं, इसलिए वे अधिक कमाने की जुगत में रहते हैं। यही असंतुष्टि उन्हें आगे बढने को प्रेरित करती है। शादी उन्हें बेहतर लाइफस्टाइल की ओर खींचती चली जाती है।
शादी के बिना जीना भी जीना है
दार्शनिक-चिंतक प्लेटो का मानना था कि परिवार वह संस्था है जहां औरतों की प्रतिभा चूल्हे-चक्की में व्यर्थ होती है और पुरुष की क्षमताएं पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाने में जाया होती हैं। यह बात स्थान-काल-परिस्थिति के संदर्भ में कही गई थी। लेकिन आज की स्थितियां भिन्न हैं। आर्टिमिस हॉस्पिटल (गुडगांव) की लाइफस्टाइल एक्सपर्ट डॉ. रचना सिंह कहती हैं, आजकल लोग स्वतंत्र ढंग से सोचने वाले हैं। शादी बडा मसला है। शादी के बगैर भी कंपेनियनशिप में रहा जा सकता है। जरूरी नहींकि सिंगल लोग गैर-जिम्मेदार हों या शादी से भागते हों। यह भी जरूरी नहीं कि महज इसलिए शादी कर लें कि शादी करनी है। शादी प्यार के लिए की जाती है और यदि प्यार न मिले तो शादी का कोई मतलब नहीं। घर-परिवार-समाज के लिए तो शादी की नहीं जा सकती। अकेले लोग भी खुश रह सकते हैं। दोस्त बनाएं, सामाजिक जीवन में व्यस्त रहें, अपने शौक पूरे करें।
विदेशों में लोग अपने ढंग से अकेलेपन का आनंद लेते हैं। वे दुनिया भर में घूमते हैं, रचनात्मक कार्य करते हैं, रेस्टरां में अकेले खा सकते हैं। भारत में एक साथी पता नहीं क्यों जरूरी माना गया है। शादी हो तो अच्छा है, लेकिन न हो तो इसमें बुरा कुछ नहीं। सिंगल रहने के बहुत से फायदे भी हैं, उन्हें देखें।
शादी बिना क्या जीना
समाज में एकला चलो रे में यकीन रखने वालों की संख्या बढ रही है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अकेले रहने की भी इच्छा बढ रही है। यू.एस. के जनसंख्या आंकडों के अनुसार वहां 30 से 34 की उम्र के अविवाहित, योग्य सिंगल्स की संख्या बढ रही है। इस आयु-वर्ग के 33 फीसदी लोग ऐसे भी हैं, जो शादी नहीं करना चाहते। लेकिन ज्यादा संख्या लेट मैरिज करने वालों की है। हालांकि 98 फीसदी मानते हैं कि वे लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते चाहते हैं।
आंकडों के मुताबिक ये सभी लोग ऐसे हैं, जो व्यक्तित्व, स्मार्टनेस, सफलता के मापदंडों के मुताबिक मिस्टर राइट हैं। ये गंभीर रिश्ते और करियर के बीच तालमेल बिठा सकते हैं। एक वेबसाइट के सर्वे में कुछ बातें निकलती हैं-
1. 98 प्रतिशत सिंगल्स स्थायी रिश्ते की तलाश में हैं।
2. 94 फीसदी करियर व रिश्तों में तालमेल करने की स्थिति में हैं।
3. अकेले रहने वालों में 79 प्रतिशत चैरिटी कार्र्यो में यकीन रखते हैं।
4. 75 प्रतिशत का मानना है कि उनकी आदर्श काल्पनिक स्त्री ही वास्तव में उनकी बेस्ट फ्रेंड हो सकती है।
5. 58 प्रतिशत ऐसे लोग भी हैं जिन्हें कभी न कभी धोखा मिला।
और भी दुख हैं जमाने में
पिछले महीने मुंबई से दिल्ली पुस्तक मेले में आए ब्लॉगर, कार्टूनिस्ट, लेखक प्रमोद सिंह 46 वर्ष के हैं और अकेले हैं। अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं..इस गीत से प्रभावित प्रमोद जी के दोस्तों की संख्या बहुत है। कहते हैं, कन्फ्यूज रहा मैं। शादी करना नहीं चाहता था या कहूं कि हुई नहीं। मसरूफ रहा और अपनी शर्तो पर जीना चाहा। लिहाजा कभी मैं नहीं समझ सका दूसरे को तो कभी सामने वाला नहीं समझ सका। अकेले रहने की सुविधा यह है कि किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होती। लेकिन यही आजादी असुविधा भी बनती है, क्योंकि अपनी इच्छा से जीने की भी एक सीमा होती है। कवि शमशेर ने लिखा था कि समाज से कटे रहना एक खास ऐंठ वाली तकलीफ देता है। इससे भी परे मोह का तत्व अहम है। आम इंसान स्नेह या प्यार से अलग नहीं जा सकता। लेकिन जिंदगी में और भी बहुत-कुछ है शादी के सिवा..।
दिल्ली के फैशन डिजाइनर रवि बजाज पिछले 10-11 वर्र्षो से अकेले हैं। रवि के घर पर पिछले दो-तीन सालों से कुक तक नहीं है। पूरे घर की व्यवस्था खुद संभालने वाले रवि का कहना है कि उनका घर किसी भी सामान्य घर की तुलना में व्यवस्थित है। प्राइवेसी पसंद करने वाले रवि का घर दोस्तों के लिए हरदम खुला रहता है।
सिंगल रहने पर कोई अफसोस नहीं
संजय लीला भंसाली (फिल्म निर्देशक, मुंबई)
इंसान बचपन में जैसे माहौल में रहता है, भविष्य में वैसा ही बनता है। मेरा बचपन मुंबई में एक मध्यवर्गीय परिवार में बीता। हम चाल में रहते थे। वहां का माहौल लाउड होता है। चेतन-अवचेतन मन में वहां का माहौल, जिंदगी, उनका रहन-सहन व बोलचाल सब मैं महसूस करता था। पांच-सात वर्ष की उम्र से पहले का तो कुछ याद नहीं है, लेकिन बहन बेला और मां लीलाबेन मुझे बताती थीं कि मैं किसी शांत समुंदर जैसा बच्चा था। शैतानी भरी हरकतें मैं नहींकरता था। बच्चों को पालने में मेरी मां का असाधारण योगदान हैं। मैं अपनी बहन और मां से गहराई से जुडा हूं। जिंदगी के हालात ने मुझे तनहा और खुद में खोया हुआ बच्चा बना दिया। पढने का बेहद शौक था। जब भी मौका मिलता, पढता रहता। जेहन में सोच-विचार कर नहीं, लेकिन एक बात तब भी थी कि कुछ अलग करना है, कुछ ऐसा कि मेरी मां और बेला को मुझ पर गर्व हो। इतने विचारों के बीच कभी शादी का खयाल मन में आया ही नहीं। सोचा-समझा फैसला यह नहीं था, बस ऐसा ही होता गया।
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