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चौबीस घंटे सातो दिन का साथ है हमारा

Jagran Sakhi
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Relationshipआज से दो दशक पहले तक स्त्रियां जॉब तो जरूर करती थीं, लेकिन पति के साथ एक ही संस्थान में कार्यरत स्त्रियां बहुत कम देखने को मिलती थीं। मेडिकल साइंस, शिक्षा और कला-संस्कृति के क्षेत्र में तो फिर भी साथ काम करने वाले दंपती देखने को मिल जाते थे, पर अन्य क्षेत्रों में स्त्रियों की उपस्थिति नदारद थी। लेकिन ग्लोबलाइजेशन के बाद रोजगार के अवसर बढने लगे। एमएनसी, आईटी और बीपीओ सेक्टर आने के बाद तो देश में लडकियों के लिए भी करियर के नए और बेहतर विकल्प सामने आने लगे। आज युवाओं के लिए बीबीए, एमबीए, एमसीए, मास कम्युनिकेशन और मल्टी मीडिया के अलावा करियर पर आधारित कई ऐसे प्रोफेशनल कोर्स उपलब्ध हैं, जिन्हें पूरा करते ही उन्हें अच्छी जॉब प्लेसमेंट मिल जाती है। यहां साथ पढाई कर रहे युवाओं के पास अपने लिए करियर के साथ भावी जीवनसाथी चुनने का भी मौका उपलब्ध होता है।


आज की युवा पीढी बहुत व्यावहारिक और भविष्य की योजनाओं को लेकर सजग है। अपने ही कार्यक्षेत्र से जीवनसाथी चुनकर उसे कई सारी सहूलियतें एक साथ मिल जाती हैं। युवाओं की सोच में आ रहे इस बदलाव के बारे में दिल्ली की मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, एक फील्ड के लोगों के सोचने-समझने का तरीका काफी हद तक एक जैसा ही होता है। सबसे बडी बात यह है कि पति-पत्नी जब दोनों एक ही फील्ड में हों तो वे अपनी प्रोफेशनल लाइफ की समस्याओं को आसानी से समझ पाते हैं। यही वजह है कि आज की युवा पीढी अपने ही फील्ड से जीवनसाथी का चुनाव करना पसंद करती है।


आजकल ज्यादातर कंपनियां भी अपने यहां दंपतियों को साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। विप्रो कंपनी ने तो अपने यहां कार्यरत अविवाहित युवाओं के लिए इनहाउस मैट्रिमोनियल वेबसाइट की शुरुआत की है ताकि वहां काम करने वाले युवक-युवतियां कंपनी में ही मनपसंद जीवनसाथी का चुनाव कर सकें। इस संबंध में टाटा स्टील कंपनी की सीनियर एचआर मैनेजर उर्मिला एक्का कहती हैं, हमारी कंपनी भी अपने कर्मचारियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करती है। हमारे यहां जब किसी लडकी की शादी हो जाती है तो कंपनी उसके पति के सामने अपने यहां नौकरी का प्रस्ताव रखती है। जब पति-पत्नी दोनों एक ही संस्थान में काम कर रहे होते हैं तो यह स्थिति कर्मचारियों और कंपनी दोनों के लिए ही फायदेमंद होती है।


टच वुड..ईजी है लाइफ


अगर पति-पत्नी के आने-जाने का समय एक हो, ऑफिस में साथ लंच करने को मिले और छुट्टियां भी साथ मिल जाएं, तो वाकई मजा आ जाए। ऐसी ही सुकून भरी जिंदगी है, दिल्ली स्थित फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की हिंदी अधिकारी राशि सिन्हा की। वह कहती हैं, मेरे पति भी इसी ऑफिस के फाइनेंस एंड एकाउंट्स डिपार्टमेंट में डिप्टी जनरल मैनेजर हैं। सरकारी जॉब होने के कारण हमारे आने-जाने का समय लगभग एक ही होता है। मेरे पति मुझसे सीनियर हैं। इसलिए ऑफिस में मुझे उनके सम्मान का अतिरिक्त रूप से खयाल रखना पडता है। साथ ही मुझे हमेशा अपने आपको बेहतर साबित करना पडता है ताकि कोई यह आरोप न लगाए कि मैं अपने पति के पद का नाजायज फायदा उठा रही हूं। इस संबंध में राशि के पति दीपक सिन्हा कहते हैं, यह सुरक्षा की दृष्टि से भी मुझे बहुत सही लगता है। अगर मेरी पत्नी का ऑफिस कहीं और होता तो मुझे हमेशा उसकी चिंता लगी रहती। इससे समय और पेट्रोल की भी बचत होती है। नुकसान सिर्फ यही है कि अगर ऑफिस में भी पत्नी साथ रहे तो फीमेल कलीग्स के साथ फ्लर्ट करने का स्कोप खत्म हो जाता है।


दिक्कत क्वॉलिटी टाइम की


अकसर लोग यह समझते हैं कि साथ काम करने वाले दंपतियों का जीवन बहुत आसान होता है और उन्हें 24 घंटे साथ रहने का मौका मिलता है। पर वास्तव में ऐसा है नहीं। इस संबंध में दिल्ली स्थित मूलचंद हॉस्पिटल के डॉ. रमेश होतचंदानी कहते हैं, मैं नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट में हूं और मेरी पत्नी मंजू स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। इसलिए साथ काम करते हुए भी हम अपनी कार शेयर नहीं कर पाते। हॉस्पिटल में भी हमारा मिलना नहीं हो पाता। इस संबंध में डॉ. मंजू की सोच कुछ अलग है। वह कहती हैं, एक ही फील्ड में होने के कारण हम दोनों को एक-दूसरे का पूरा भावनात्मक सहयोग मिलता है। हमारी सोशल नेटवर्किग भी बेहतर ढंग से हो पाती है और कहीं न कहीं हमें एक-दूसरे के पद का फायदा तो मिल ही जाता है।


इस संबंध में जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सबीहा हुसैन कहती हैं, हम दोनों एक ही यूनिवर्सिटी में हैं, लेकिन मैं सोशल साइंस डिसिप्लिन में जेंडर एक्सपर्ट हूं और मेरे पति प्रो.मो.एजाज हुसैन सेंटर फॉर फिजियोथेरेपी में डायरेक्टर हैं। इसलिए हमारी टाइमिंग्स अलग-अलग हैं। मेरी क्लासेज शाम चार बजे तक खत्म हो जाती हैं, लेकिन इन्हें अकसर देर तक रुकना पडता है। हां, शाम को घर लौटने के बाद और छुट्टियों में हम एक-दूसरे के लिए, खास तौर से अपनी बेटी के लिए क्वालिटी टाइम निकालने की कोशिश जरूर करते हैं।


इसी क्रम में प्रो. हुसैन कहते हैं, हम दोनों ही एकेडमिक फील्ड से जुडे हैं। इसलिए हमें अपने विचार शेयर करना बहुत अच्छा लगता है। चूंकि हमारी डिसिप्लिन अलग-अलग है, इसलिए प्रोफेशनली हम एक-दूसरे की मदद नहीं कर सकते लेकिन मुश्किल हालात में हम एक-दूसरे की हौसलाआफजाई जरूर करते हैं। साथ काम करने का हमें कभी कोई बुरा अनुभव नहीं हुआ। फिर भी मुझे ऐसा महसूस होता है कि अगर पति-पत्नी साथ काम कर रहे हों तो संस्थान में ज्यादातर लोगों की नजरें उन्हीं पर होती हैं। अगर किसी एक की पोजिशन खराब हो तो इससे दूसरा भी प्रभावित होता है।


जरूरी है संतुलन


पति-पत्नी दोनों का कार्य क्षेत्र एक हो तो इससे उनके आपसी और सामाजिक रिश्ते भी काफी हद तक प्रभावित होते हैं। इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री डॉ. शैलजा मैनन कहती हैं, अगर पति-पत्नी साथ काम कर रहे हों तो इसका फायदा यह होता है कि दोनों एक-दूसरे के प्रोफेशन से जुडी परेशानियों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं। ऐसे लोगों का सोशल सर्कल प्राय: एक ही होता है और इनके कई कॉमन फ्रेंड्स होते हैं। ऐसे में कई बार फ्रेंड्स और कलीग्स की वजह से पति-पत्नी के आपसी रिश्ते में भी तनाव आ जाता है। पति-पत्नी जब एक ही ऑफिस में काम कर रहे होते हैं तो कई बार सहकर्मी उनकी तुलना करते हुए किसी एक की प्रशंसा और दूसरे की आलोचना करने लगते हैं, इससे दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रोफेशनल राइवलरी की भावना पैदा होती है। अनजाने में ही सही, लेकिन इससे व्यक्ति मन ही मन अपने जीवनसाथी से ईर्ष्या करने लगता है। ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचने लिए साथ काम कर रहे दंपतियों को अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में हमेशा संतुलन बनाए रखना चाहिए।

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