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लडकियां मोबाइल का प्रयोग न करें, जींस न पहनें। घर से बाहर निकलते हुए सिर पर पल्लू रखें, बाजार न जाएं..।
लडकियों की शादी कम उम्र में कर देनी चाहिए। इससे बलात्कार की घटनाएं कम होंगी और वे सुरक्षित रहेंगी..।
बलात्कार के 90 फीसदी मामले आपसी सहमति के होते हैं..।
लडकियों को देर रात घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए..।
ये सारे बयान और फरमान देश के ज्िाम्मेदार लोगों द्वारा दिए गए हैं। ऐसे समय में जबकि स्त्रियां हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रही हैं, ऐसे बयान हास्यास्पद हैं। ये स्त्रियों के प्रति संवेदनहीन नज्ारिए का जीवंत उदाहरण हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्राइम कैपिटल में तब्दील हो रही है। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च ने दिल्ली में जनवरी 2009 से जुलाई 2011 के बीच दर्ज मामलों के अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में महिलाएं दिन में भी सुरक्षित नहीं हैं। साथ ही, देश में हर घंटे में 18 स्त्रियां प्रताडना की शिकार होती हैं। बलात्कार के 13 मामले ऐसे थे, जिसमें 10 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप किया गया। 18 मामलों में स्कूल-कॉलेज जाने वाली लडकियों के साथ रेप हुआ। आरोपी 18 से 50 वर्ष तक की आयु के थे।
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भारत पिछडा हुआ देश है, यह मानना है न्यूज्ावीक मैगजीन का। 165 देशों पर हुए इस सर्वे में भारत का स्थान 141वां है। स्त्री पर हमले के नए-नए तरीके रोज्ा ईज्ाद हो रहे हैं, तुर्रा यह कि इसके लिए भी उसी को ज्िाम्मेदार माना जाता है।
संवेदनहीन दृष्टि
असम की राजधानी गुवाहाटी में हुई दर्दनाक घटना लोगों के ज्ोहन से अब तक शायद न उतरी हो। एक लडकी के साथ सडक पर सरेआम दुर्व्यवहार किया जाता रहा और लोग तमाशबीन बने देखते रहे।
दिल्ली में लडकियों से छेडखानी, बलात्कार की घटनाएं आम हैं। सडक, स्कूल-कॉलेज, मॉल्स या पार्क के अलावा वे घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। मुंबई को दिल्ली की अपेक्षा अधिक सुरक्षित माना जाता है, लेकिन वहां भी महिलाओं की सुरक्षा चिंता के घेरे में है। दिल्ली के एक आइएएस अधिकारी की वकील बेटी की मुंबई में उसके किराये के घर में गार्ड ने हत्या कर दी। हत्या बलात्कार में नाकाम रहने के बाद की गई। लडकी की गलती यह थी कि रात में घर की बिजली गुल होने पर उसने गार्ड से मदद मांगी थी। संवेदनहीनता इतनी कि वह चीखती-चिल्लाती रही और पडोसियों के घर कॉलबेल बजाती रही, लेकिन महानगर के शोर में एक अकेली लडकी की च ीख भला किसे सुनाई देती है!
ख्ास चेहरों की पीडा
संवेदनहीनता के भी कई रूप हैं। यह न सिर्फ शारीरिक सुरक्षा के भय से ग्रस्त करती है, बल्कि मानसिक-भावनात्मक तौर पर भी स्त्री को कमज्ाोर करने पर आमादा है। ऐसा भी नहीं है कि आम स्त्रियां ही इस संवेदनहीन नज्ारिए को झेलती हैं। कई बार ख्ास हस्तियों को भी इसका सामना करना पडता है। अभिनेत्री प्रीति ज्िांटा कुछ समय पहले दिल्ली आई तो भीड की ज्यादती से परेशान हुई। पहले भी कई अभिनेत्रियों ने शिकायत की है कि लोग उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और भद्दे कमेंट्स करते हैं। हालांकि पुरुष सलेब्रिटीज्ा के साथ भी ऐसा होता है, लेकिन अगर वह स्त्री है तो भीड हदें भी पार कर देती है। इस घटना से आहत प्रीति ने कहा कि लोग यह नहीं सोचते कि सलेब्रिटीज्ा भी इंसान हैं। उन्हें भी परेशानी होती है।
इन पंक्तियों को लिखे जाने के दौरान दो राजनेताओं के बीच ट्विटर वार चल रहा था, जिसमें पत्नी का नाम लेकर भद्दे कमेंट्स किए जा रहे थे। पुरुषों की लडाई के बीच स्त्री जाने-अनजाने निशाना बन जाती है। देवी बना कर पूजे जाने और गालियों से नवाज्ो जाने के बीच एक इंसान के तौर पर उसे नहीं देखा जाता। यह मध्ययुगीन मानसिकता है कि किसी को नीचा दिखाना हो तो उसके घर की स्त्रियों पर निशाना साधें।
आज्ादी की कीमत
डॉ. गगनदीप कहती हैं, स्त्री के प्रति एक संवेदनशील माहौल बने, इसके लिए तीन स्तरों पर कोशिश करनी होगी। स्त्री ख्ाुद का सम्मान करे, अपनी इच्छाओं व ज्ारूरतों को समझे, पुरुष उसे साथी माने और समाज का नज्ारिया संवेदनशील हो। प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को विरोधी नहीं, पूरक बनाया है, ताकि दोनों टीम की तरह काम करें। पुरुष शारीरिक तौर पर ताकतवर है तो स्त्री भावनात्मक तौर पर संतुलित है। टीम भावना से काम करने पर ही सभ्य-सुसंस्कृत समाज का निर्माण हो सकेगा और स्त्री सम्मानजनक जीवन जी सकेगी।
Read:फासले भी हैं जरूरी
Tags:girls freedom, women empowerment, women freedom, women and indian society
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