sakhiwithfeelings
- 5 Posts
- 5 Comments
कहने को ये आधा समाज है
ये ध्रुपद है ये खमाज है,
फिर भी है ये रुदन क्यों
है इसकी आंखे नम क्यों !
कन्या होने पर धिक्कार है,
घर में ही तिरस्कार है ,
हे पुरुष ! तुम क्या चाहते हो ?
ये घर की छत है क्यों ढहाते हो ?
औरत घर की नीव घर कि शान है ,
ये बच्चे का जिंदगी है ,
जीवन का ये ही तो प्राण है ,
ये प्रकृति है ये जीवन गान है,
एक औरत के कारण ही तो
हर जगह तेरा सम्मान है.
जहर का घूंट न इसे पीने दो,
हो निर्भय इसे अब जीने दो.
खुद कष्ट सह सबके गम हर लेती है,
ये बच्चो को आँचल से अमृत देती है,
अब तुम इसको घर में सम्मान दो ,
जी ली गुमनामी में बहुत औरत ,
अब इसे इसकी सही पहचान दो
अब इसे इसकी सही पहचान दो .
Read Comments