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तेरे ख़्वाब लेके मैं आँखों में

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तेरे ख़्वाब लेके मैं आंखों में
तमाम रात जागता रहता हूँ
एक तिलिस्म है तेरी बातों में
जिसके पीछे भागता रहता हूँ
जरूर बुझेगी प्यास निगाहों की
खुद से ही सदा कहता रहता हूँ
क्यूँ छू दिया मुझे इस खुमार में
बारिश में भी दहकता रहता हूँ
तेरे साँसों की धनक जो मिली
दिन रात बस महकता रहता हूँ
ये क्या किया है तुमने बता दो
हर घड़ी तुम्हें सोचता रहता हूँ

सलिल सरोज

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