www.salilpoetry.com/sitename
- 7 Posts
- 1 Comment
कल कोई और शहर जला था
आज ये शहर भी जल जाएगा
जो अब भी नहीं जगे नींदों से
ये शमा खौफ में बदल जाएगा
ज़ुल्म हुआ है तो चीखना सीखो
वर्ना ज़ुबां पत्थरों में ढल जाएगा
ये ज़द्दोज़हद है खुद के होने की
क्या वायदों से सब बदल जाएगा
भूख तमाम रात जगाए रखती है
कौम बातों से कैसे बहल जाएगा
यूँ ही डर से सहते रहे गर तुम सब
तो आज गया है वो कल भी जाएगा
बँध मुट्ठी से कब क्या बदलता है
और तुम समझते हो सब संभल जाएगा
सलिल सरोज
Read Comments