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मैं नर्मदा हूं

Sandeep writes
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मैं नर्मदा नदी हूंं। रेवा और मेकलसूता ऐसे ही मेरे और बहुत सारे नाम हैं जो समय-समय पर मुझे दिए गए हैं। मेरा जन्म मध्यप्रदेश में अनूपपुर जिले के पास अमरकंटक की पहाड़ियों में स्थित नर्मदा कुंड से हुआ है। पुराणों के अनुसार मेरा जन्म भगवान शंकर के पसीने की बूंदों के जमीन पर गिरने से या भगवान ब्रह्मा की आंखों के आंसू के गिरने से हुआ है। इसी प्रकार अन्य बहुत सारी कहानियां मेरे जन्म के संबंध में प्रचलित हैं।

 

 

 

अमरकंटक मैं मैंने अपनी आंखें खोली है चारों तरफ प्रकृति की सुंदरता, घने जंगल, बहुत सुंदर वातावरण ने मेरा मन मोह लिया। अपने पिता पर्वतराज मैकाल की बाहों से निकल कर एक अबोध बच्चे के जैसे मैं दुनिया देखने के लिए निकल पड़ती हूं। कुछ दूर आगे बढ़ने पर मेरा सबसे पहला संघर्ष होता है भेड़ाघाट की संगमरमर वाली चट्टानों से और मैं अपने उन्मुक्त वेग से उन्हें काटती हुई, उन पत्थरों को चीरती हुई उनके बीच से निकल जाती हूं। सफेद संगमरमरी चट्टानों के बीच में मेरा रूप खिल उठता है और धुआंधार जलप्रपात पर मेरा बदन चांदी जैसा चमकने लगता है,जिसे देखने के लिए प्रतिवर्ष हजारों लोग मेरे किनारों पर आते हैं।

 

 

 

भेड़ाघाट और धुआंधार प्रपात के माध्यम से अपने जीवन की खुशियां मनाते हुए बाकी लोगों का भी मनोरंजन करती हूंं। वहां से निकलने के पश्चात में मैदानी भागों में आती हूं अब मेरी चंचलता और अटखेलियांं यौवन के साथ कम होने लगती हैं और मैं थोड़े शांत गति से बहती हूं। यहां मेरे किनारे होशंगाबाद,नेमावर जैसे शहर स्थित है। मैं अपने आसपास के सैकड़ों किलोमीटर के निवासियों की प्यास बुझाने के साथ-साथ उन्हें भरपूर फसल उत्पादन से परिपूर्ण करती हूं। मैं ओमकारेश्वर में भगवान शिव का अभिषेक करती हूं और उन्हें नमन करती हुई वहां से आगे बढ़ जाती हूंं। महेश्वर में पुनः भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मैं अपनी गति मंद करती हूं।

 

 

 

मध्य प्रदेश में विंध्याचल और सतपुड़ा की सुरम्य घाटियों से बहती हुई मैं संपूर्ण भारतवर्ष को लगभग दो बराबर भागों में बांंटती हुई अपनी यात्रा पर आगे महाराष्ट्र के कुछ भागों से होती हुई गुजरात में प्रवेश कर जाती हूं। गुजरात में प्रवेश करते करते मेरी प्रौढ़ावस्था आ जाती है। अब मैं शांत हो चुकी हूंं, मेरा वेग कम हो गया है मेरा शरीर अब थकने लगा है, लेकिन मैं निस्तेज नहीं हूंं। गुजरात में आगे बढ़ते हुए बड़ौदा, नर्मदा जिलों के हजारों,लाखों लोगों की प्यास बुझाती हुई आगे बढ़ती हूंं।

 

 

 

यहीं पर मेरे ऊपर भारत का सबसे बड़ा सरदार सरोवर बांध का निर्माण किया है जहां मैं अपने किनारे पर केवडिया स्थित अपने प्रिय पुत्र लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को अपलक निहारती रहती हूंं और आशीर्वाद देती रहती हूंं कि इसकी कीर्ति चिरस्थाई रहें और हमारे देश को ऐसे ही बहुत सारे सपूत मिलते रहें।  इसी प्रकार आगे बढ़ती हुई भरूच के पास अरब सागर में श्री हरि के चरणों में सागर राज के माध्यम से पहुंचकर अपने जीवन की इतिश्री कर लेती हूं। यह मेरी कहानी है इसमें मेरा बचपन है, यौवन है, प्रौढ़ावस्था है, वृद्धावस्था है और परलोक गमन भी शामिल है। मैं लाखों वर्षों से अनवरत बह रही हूं।

 

 

 

मेरे द्वारा मेरे आस-पास रहने वाले समस्त प्राणियों को धन-धान्य से परिपूर्ण तो किया गया है साथ ही उन्हें हमेशा से स्वच्छ जल और बहुत सुंदर वातावरण भी प्रदान किया गया है। मैं निश्चल भाव से यह कार्य ईश्वर की कृपा से कर रही हूंं। मेरी कुछ व्यथा भी है पूरे मार्ग में मेरे ऊपर जगह-जगह बरगी, बारना जैसे अनेक बड़े छोटे बांध बना दिए गए हैं, जिससे मेरा जल अब निर्मल नहीं बचा है। मेरे किनारे बसने वाले शहरों की पूरी गंदगी नालों के माध्यम से मुझ पर छोड़ दी जाती है। मैं अपने आपको कितना स्वच्छ रखूं। जब मैं स्वयं स्वच्छ नहीं रह पा रही हूं तो मैं बाकी लोगों को कैसे स्वच्छ रखूंगी।

 

 

मुझ में अनेकों विषैले कार्बनिक पदार्थों को छोड़ दिया जाता है। मैं दुखी हूं कि जिन लोगों को स्वच्छ करती हूं, वे ही मुझ में कपड़े धोते हैं, अपने जानवरों को नहलाते हैं, साथ ही अपने घर की पूरी गंदगी भी लाकर डाल देते हैं। मैं हमेशा सभी का हित करती हूं लेकिन वे मेरा अहित कर रहे हैं। मेरे किनारों पर अतिक्रमण कर मेरा घर लुटा जा रहा है ,रेत खनन कर मेरे सीने को छलनी किया जा रहा है, मेरी गति बाधित की जा रही है।अब आप ही बताइए इन विषम परिस्थितियों में कब तक जीवित रहूंगी। मैं भी जीवित रहना चाहती हूं। कुछ लोगों द्वारा अपने स्वार्थ के कारण मेरा लगातार शोषण किया जा रहा है, मैं आप सभी लोगों से निवेदन करती हूं कृपया मुझे बचाइये। यदि मैं बचूंगी तो ही आप लोगों का भी अस्तित्व रहेगा। मैं नहीं रहूंगी तो आप भी मृत प्राय हो जाएंगे। मैं आपकी मां हूं,आपकी बहन हूंं, आपकी बेटी हूं, मैं आपका परिवार हूं मुझे अपने से दूर मत कीजिए, क्योंकि मैं नर्मदा हूं।

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