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हिंदी का हिंगलिश स्वरुप आज इस विषय पर जब कुछ कहने को कहा गया तो बस यू लगा कि—
दोस्तों भारत की भाषा हिंदी ही आज विश्व की एकमात्र भाषा है जिसने न जाने कितने परिवर्तन आत्मसात किये पर और हर काल मे यू लगता है जैसे नए परिवेश मे हिंदी नए रूप मे अपनी ही मस्तानी चाल से सबको दीवाना बनाती हुई चली जा रही |
इसकी उत्पति पर यदि विचार करे तो मूलत: इसका कारण है ” इन्टरनेट कि दुनिया ” | मशीन कि यह दुनिया मुख्यतः: अंग्रेजी भाषा के अधीन थी परन्तु इस दुनिया कि खास बात यह है यह हमे पल भर मे ही सम्पूर्ण विश्व से जोडती है | हिंदी भाषी जो अनेक अन्य भाषाओ के प्रति भी प्रेम और जिज्ञासा रखते थे जब इस दुनिया से रूबरू होने लगे तो उनके मन मे भी यह लालसा जाग्रत होने लगी की अपने विचारो को भी अपनी ही हिंदी भाषा मे इस पटल पर व्यक्त कर सके और अपनी हिंदी भाषा के साहित्य और मिठास को विश्व के कोने कोने तक पंहुचा सके |
मानव के प्रयासों ने हिंदी भाषियों के इस सपने को साकार कर दिया और आज हम और आप इस पटल पर अपने विचारो के आदान प्रदान मे सक्षम हो गए | हर सिक्के के दो पहलू होते है — इसी तरह इस नयी पद्धति के भी दो रूप हमारे सामने आया प्रथम — हमारी भाषा भी आज इस दुनिया के प्रश्ठो पर अपना अधिकार जमा चुकी और दूसरा– हम हिंदी भाषियों ने अपनी भाषा को लिखने के लिए हिंगलिश का स्वरुप सीखा और अपनाया |
यदि विचार किया जाये तो इससे हमारे हिंदी के मूलतः: शब्दकोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता वो व्याकरण ज्ञान वो शब्दों की उत्पति आज भी अपनी सार्वभौमिकता के साथ कायम है | इसकी वही अंदाज़ वही प्रभाव वही सरसता जो मानव को आनंद प्रदान करता है |
इसे हम इस प्रकार समझ सकते है जिस प्रकार संस्कृंत, उर्दू ,अंग्रेजी आदि के शब्द आज हिंदी भाषा के बोलचाल के अंग है परन्तु ये हिंदी भाषा के मूल शब्दों का सहारा ले कर ही हिंदी भाषियों मे विकसित और पल्वित हुए है न की इन्होने हमारी हिंदी को परिवर्तित किया है |
इस बात को नकार नहीं जा सकता की कई इस प्रकार की वेबसाइट है जहा हिंदी फॉण्ट उपलब्ध नहीं है तो वहा उसके विचार हमे हिंगलिश के रूप मे द्रष्टिगत होते है परन्तु आप इस बात पर विचार कीजिये की हिंदी भाषी आज विकास की उन सीढियों पर चढ़ रहा है जहा वह अपनी भाषा के साथ साथ अन्य भाषा मे व्यक्त विचारो को भी पढ़ रहा और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा | क्या कभी आपने विचार किया की किसी जर्मन या चीनी या अंग्रेज ने हमारे हिंदी ब्लॉग पर हिंदी मे या अपनी ही भाषा मे प्रतिक्रिया व्यक्त की शायद नहीं तब मेरा तो यही मत है की हिंदी भाषियों ने भाषा की वर्जनाये लाँघ कर विश्व पटल के हर साहित्य को पढ़ा और समझा लेकिन जब भी प्रतिक्रिया व्यक्त की तो हिंदी मे या हिंदी रुपी हिंगलिश मे सोचिये आखिर क्यों ?? क्यॊकि हिंदी उनकी रग रग मे समायी है वो अपने विचारो अपने आवेगों को व्यक्त अपनी ही भाषा हिंदी मे ही व्यक्त करने मे सहजता महसूस करते है |
हिंदी का हिंगलिश स्वरुप हिंदी को नए पायदान प्रदान करेगा और हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता भी मिलेगी लेकिन हमे इस बात मे सतर्कता और जागरूकता रखनी होगी की हम अपनी बोली तथा कागज पर लेखन कला मे हिंगलिश के इस्तेमाल से खुद को तथा आने वाली पीढ़ी को बचने के लिए बताये और हिंगलिश को सिर्फ मशीनी दुनिया मे अपनी हिंदी को स्थापित करने के लिए एक माध्यम की तरह इस्तेमाल करे |इस प्रकार हिंगलिश का प्रयोग हिंदी के वास्तविक रंग ढंग को कभी नहीं बिगाड़ पायेगा बल्कि इन्टरनेट की मशीनी दुनिया मे विचारो को व्यक्त करने का माध्यम बनेगा और हिंदी को दूर दूर तक पहुचायेगा | हिंदी साहित्य मानव ज्ञान विज्ञानं के संचित कोष को जन जन तथा दूर दराज़ के लोगो तक पहुचायेगा और हिंदी भाषा को व्यापक स्वीकार्यता दिलवाएगा|
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