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कभी दुर्गा पूजा तो कभी गणेश चतुर्थी भारत भूमि त्यूहारो का देश है | मै मानती हु ये हमे खुशिया देते है लेकिन ये हमे और भी कुछ देते है जिस पर सोचना अधिक जरोरी हो गया है —
१- इनमे स्थापित की जाने वाली मुर्तिया जब विसर्जन के बाद नदियु मे प्रवाहित की जाती है उनसे फेलता प्रदुषण
२- इन त्यूहारो के दौरान होने वाला ध्वनि प्रदूषण न जाने कितने बुजुर्गो को सिरदर्द और बचो को पढाई मे बाधा डालता है
मज़े की बात ये है की क़ानूनी रूप से highcourt से इस पर मनाही हो चुकी फिर भी कोई भी पांडाल न दिखा जहा की मूर्तिया ecofriendly रही हो
जब लोगो से बात की गयी तो कहा गया –बिना उसके शोभा नहीं आयेगी और आप ज़माने से हट के बात करेंगे तो जमाना आप को फेक देगा
अब ये सोचने वाली बात है की इन बिन्दुओ पे लोगो को कैसे जागरूक किया जाये
मेरी अपील है लोग संस्थाओ को चंदा दे तो उनसे अपील करे की मूर्तिकारो को बोले मुर्तिया वो बनाये जो वातावरण को नुक्सान न पहुचाये
त्युहार हमे प्रेम का सन्देश देते है —— पर वो आने वाली पीढ़ी को पतन के रस्ते पे ले जाये या वो जल प्रदूषित करे—- ये नयी पीडी के साथ न्याय नहीं होगा|
जय हिन्द
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