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. ‘हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं’ या ‘हिंदी गरीबों, अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गई है’ – इस पर सिर्फ यह कहूँगी की सिर्फ इच्छा की कमी और भ्रान्तिया |
हिंदी की महत्ता इस बात से ही सिद्ध हो जाती है की आज देश और दुनिया को जोड़ने वाली इन्टरनेट की दुनिया मे भी हिंदी भाषा मे लिखने के लिए और हिंदी भाषियों के विचारो को संगृहीत करने हेतु अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी मे अपने विचार व्यक्त करने के लिए सुविधाए है |
वस्तुतः यदि भारतीय इतिहास पर नज़र डाले तो जब जब विदेशियों ने भारत पर आक्रमण किया और भारत भूमि पर अधिकार किया उन्होंने यहाँ अपनी भाषाओ का प्रसार किया | हिन्द वासियों की भांति यहाँ की हिंदी भाषा का भी ह्रदय इतना विशाल था की इसने अपने शब्दकोष मे उन विदेशी भाषाओ के शब्दों को कभी उसी रूप मे तो कभी रूपांतरित रूप मे अपने मे आत्मसात किया |हिंदी भाषा का शब्दकोष इतना विस्तृत है जितना शायद ही किसी अन्य भाषा का होगा हिंदी भाषा की सबसे प्रमुख विशेषता यह है की इसने अन्य भाषाओ के शब्दों को भी रूपांतरित कर अपने शब्द कोष मे समाहित किया है |
हिंदी को ” बाज़ार की भाषा तथा अनपढो की भाषा” कहने वालो से निवेदन करना चाहूंगी —- अधिकतर उच्च साहित्य लेखन की कृतिया हिंदी भाषा मे ही रची गयी है |
हिंदी की विशालता यही सिद्ध होती है की बचो की छोटी छोटी कविताओ , कहानियो से लेकर बड़े बड़े ग्रन्थ के लिए साहित्यकार हिंदी का ही सहारा लेते है |
अन्य भाषा के अनेक ग्रंथो का भी हिंदी भाषा मे अनुवाद किया जा चुका है यह इस बात को इंगित करता है की हिंदी का शब्दकोष कितना विशाल है
आज हिंदी भाषा के सामने निम्न समस्याए दिखाई देती है —
–आज के युवा वर्ग का निम्न हिंदी व्याकरण ज्ञान
—हिंदी के प्रति अभिवावकों की उदासीनता
— शिक्षण संस्थाओ मे अध्यापको द्वारा अपूर्ण शिक्षण
— हिंदी को अन्य भाषाओ के अपेक्षा कम सम्मान
— अंग्रेजी सभ्यता का प्रभाव
मनुष्य धरती पर जब अपनी आंखे खोलता है तो उसकी प्रथम शिक्षिका उसकी माँ होती है एक बच्चे की भाषा पर सबसे अधिक प्रभाव माँ के व्यक्तित्व का ही पड़ता है इस प्रकार अभिवावक जिस भाषा को सम्मान देंगे और आत्मसात करेंगे बालक की उसी भाषा पर सबसे अधिक पकड़ होगी और जीवन के हर काल मे वह बालक सबसे अधिक सहज रूप से अपने विचारो की अभिव्यक्ति करता है | इस प्रकार मै आज के दौर मै हिंदी की स्थिति के लिए अभिवावकों की सोच और मन;स्थिति को सबसे प्रमुख कारण मानती हू |
बाल्य वस्था को पार कर जब बालक स्कूल की चारदीवारी मे प्रविष्ट होता है तब किसी भी भाषा को वह कितना सीखता है यह उसके अध्यापक पर निर्भर करता है परन्तु सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है की हिंदी भाषा का व्याकरण ज्ञान तो दूर की बात आज के अध्यापक पद्यक्रम मे दिए गए अध्यायॊ को भी छात्रों को नहीं पदाते इसका ये फल हुआ की आज एक दशक के बाद हमारी युवा पीढ़ी के विचार हिंगलिश का रूप अख्तियार कर रहे जो की न केवल हिंदी अपितु पुरे देश के लिए एक शर्मनाक तथ्य है | इस प्रकार वो वर्ग जिसके कंधे पर अपनी भाषा को सहेजने और सजोने की जिम्मेदारी है उसे जागरूक करने की आज आवश्यकता है हिंदी अध्यापको ने अपनी जिम्मेदारियों का वहन सुचारू रूप से नहीं कियाहै और ये भी एक कारण है आज हमारी युवा पीढ़ी के पास निम्न व्याकरण ज्ञान है जिससे हम दूसरो के सामने अपमानित होते है —– और कभी कभी इसीलिए हिंदी को लोग अनपढ़ों की भाषा कह कर संबोधित कर देते है मै कहती हू इसके लिए हम खुद जिम्मेदार है नहीं तो हिंदी भाषा के सामान और कोई भाषा नहीं जिसमे मानव अपने विचारो को आसानी से व्यक्त कर सके |
हमारी सरकार को भी कुछ कदम उठाने होंगे जिससे हमारी हिंदी का जो वास्तविक रूप है उसे नयी पीढ़ी आत्मसात करे तथा शुद्ध हिंदी को सीखने की भी चेष्टा करे | हिंदी मे कविता लेखन ,कहानी लेखन आदि आयोजनों को बढ़ावा मिलना चाहिए |
अंततः: समाज का परिवेश इसमे सबसे बड़ा योगदान दे सकता है की जब भी कोई अपने विचारो को प्रकट करे तो उसे प्रेरित करे की को अपने विचारो को किसी एक भाषा मे ही व्यक्त करे या तो वो हिंदी हो या तो अंग्रेजी खिचड़ी भाषा अर्थात हिंगलिश के प्रयॊग को हतोत्साहित करे |
हमारी हिंदी इन समस्याओ से हर दशक मे रूबरू होती है परन्तु इसका प्रवाह इतना सशक्तशाली है की हर काल मे हिंदी भाषा नई तरुनाई के साथ प्रकट होती है बस इस बात को हमे समझना होगा किसी भी देश और काल के निवासियों को यदि अपने वजूद को जिन्दा रखना है तो सबसे पहले अपनी भाषा से प्रेम करना होगा इसे गर्व और सम्मान दीजिये | इस जज्बे को जिन्दा रखिये और आने वाली नस्लों तक पहुचायिए|
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