Poetry
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मै वर्दी हूं…
उस मिट्टी में मिल जाती हूं…
जिस माटी के लिए बनी हूं…
ये धरती भी अपजाएगी अब फसल मेरे नाम की…
मै खुश हूं कि मै आई वतन के काम की…
मै लड़ती हूं सीमा पर…
मै लड़ती हूं देश के अंदर…
मरने से पहले जीती हूं ज़िन्दगी गुमनाम की….
मरने के बाद ही काम आई किसी के पहचान की…
मुझे सब अपना दोस्त बना लो…..
एक अपने कि तरह अपना लो….
क्या मै भ्रष्ट ही रहती हूं हर सोच मे इंसान की….
क्या जान देकर ही समझ आएगी कीमत मेरी जान की….
हा मै वर्दी हूं अलग दिखती हूं….
अच्छाई बुराई सब समझती हूं….
कर्तव्य से पहले गला घोट देती हूं अपने अरमान की…
मरने से पहले कीमत समझो इसके अंदर के इंसान की….
हा मै वर्दी हूं..
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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