संदीप कुमार मिश्र: मेरा बेटा डाक्टर बनेगा….मेरा इंजीनियर…मेरा जज…मेरा… मेरा… मेरा…राजा बेटा,बेटी…ऐसा ही सपना देखती है हर भारतीय मां जब वो बच्चे को स्कूल भेजने के लिए तैयार करती है…और यही प्रार्थना करती है कि दूनिया में उसका बच्चा नाम रौसन करे और उसके सपने को साकार करे…।
लेकिन आज लगता है कि देश की हर मां खौफज़दा है…बेचैन है। उसका दिल कांप जाता है…घबरा जाता है…उस मां की अजीब सी मनोदशा हो जाती है…बेचैनी बढ़ जाती है….उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है तक तक…..जब तक उसके कलेजे का टुकड़ा स्कूल से घर वापस सही सलामत नहीं आ जाता..।
संदीप कुमार मिश्र: मेरा बेटा डाक्टर बनेगा….मेरा इंजीनियर…मेरा जज…मेरा… मेरा… मेरा…राजा बेटा,बेटी…ऐसा ही सपना देखती है हर भारतीय मां जब वो बच्चे को स्कूल भेजने के लिए तैयार करती है…और यही प्रार्थना करती है कि दूनिया में उसका बच्चा नाम रौसन करे और उसके सपने को साकार करे…।
लेकिन आज लगता है कि देश की हर मां खौफज़दा है…बेचैन है। उसका दिल कांप जाता है…घबरा जाता है…उस मां की अजीब सी मनोदशा हो जाती है…बेचैनी बढ़ जाती है….उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है तक तक…..जब तक उसके कलेजे का टुकड़ा स्कूल से घर वापस सही सलामत नहीं आ जाता..।READ MORE…
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