संदीप कुमार मिश्र: भारत में चल रहा सहिष्णुता का राग देखना हो तो चुनाव दर चुनाव राग दरबारी देख लिजिए।लेकिन साब सहिष्णुता का वास्तविक अर्थ तो है कि वह अधिकार जिसे आप अपने लिए पाना चाहते हैं वह दूसरों को भी मिले।आप अर्थ जो लगाएं,स्वतंत्र हैं,लेकिन मेरी नजर में यही है।हमारे देश का हर नागरिक जानता है कि सहिष्णुता का विकास और विस्तार हो,क्योंकि इसकी नितांत आवश्यकता है। हमारी सोच और बल देने की जरुरत इस बात पर है कि सहिष्णुता का विस्तार हो,क्योंकि वो हमारी भावनात्मक शक्ति को बढ़ाती है।जब-जब चुनाव की बारी आती है,तब-तब सहिष्णुता की बात होने लगती है,खासकर अब।सवाल उठता है कि संसद से लेकर राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने वाले राजनेता,सम्मान लौटाने वाले साहित्यकार,साम्प्रदायिकता का माहौल बनाने वाले नेता,लेखक और अन्य जो भी इस श्रेणी में शामिल हैं।उन सभी महापुरुषों से एक ही सवाल करबद्ध हाथ जोड़कर है कि क्या इससे पहले पहले भी कभी देश में सहिष्णुता खतरे में थी क्या…?और थी तो आपका प्रयास किस रुप में और कितना था।
संदीप कुमार मिश्र: भारत में चल रहा सहिष्णुता का राग देखना हो तो चुनाव दर चुनाव राग दरबारी देख लिजिए।लेकिन साब सहिष्णुता का वास्तविक अर्थ तो है कि वह अधिकार जिसे आप अपने लिए पाना चाहते हैं वह दूसरों को भी मिले।आप अर्थ जो लगाएं,स्वतंत्र हैं,लेकिन मेरी नजर में यही है।हमारे देश का हर नागरिक जानता है कि सहिष्णुता का विकास और विस्तार हो,क्योंकि इसकी नितांत आवश्यकता है। हमारी सोच और बल देने की जरुरत इस बात पर है कि सहिष्णुता का विस्तार हो,क्योंकि वो हमारी भावनात्मक शक्ति को बढ़ाती है।जब-जब चुनाव की बारी आती है,तब-तब सहिष्णुता की बात होने लगती है,खासकर अब।सवाल उठता है कि संसद से लेकर राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने वाले राजनेता,सम्मान लौटाने वाले साहित्यकार,साम्प्रदायिकता का माहौल बनाने वाले नेता,लेखक और अन्य जो भी इस श्रेणी में शामिल हैं।उन सभी महापुरुषों से एक ही सवाल करबद्ध हाथ जोड़कर है कि क्या इससे पहले पहले भी कभी देश में सहिष्णुता खतरे में थी क्या…?और थी तो आपका प्रयास किस रुप में और कितना था। READ MORE
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