Menu
blogid : 119 postid : 13

आंतरिक सुरक्षा पर राजनीति

Jagran Juggernaut
Jagran Juggernaut
  • 16 Posts
  • 51 Comments

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के शिविर में माओवादियों के हमले से इस राज्य में केंद्र सरकार की ओर से चलाए जा रहे सुरक्षा अभियान की पोल तो खुल ही गई, नक्सलियों से निपटने की राज्यों के आधे-अधूरे इरादे भी सामने आ गए। इस घटना से यह भी जाहिर हो गया कि नक्सलियों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। इसकी पुष्टि बिहार के जमुई जिले की घटना भी कर रही है जिसमें नक्सलियों ने एक गांव को घेरकर 11 लोगों को मार डाला। ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल, बिहार के साथ-साथ झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में अपनी ताकत बढ़ाते जा रहे नक्सलियों पर केंद्र सरकार का कोई वश नहीं चल रहा। अब यह भी साफ है कि ज्यादातर राज्य सरकारें नक्सल विरोधी अभियान में केंद्र की खुलकर मदद करने को तैयार नहीं। झारखंड सरकार अपने एक अधिकारी को छुड़ाने के लिए जिस तरह नक्सलियों के दबाव में आई उससे शिबू सोरेन सरकार को समर्थन दे रही भाजपा को जवाब देना मुश्किल पड़ रहा है। भाजपा यह कहती रही है कि नक्सलियों से नरमी नहीं बरती जानी चाहिए, लेकिन झारखंड सरकार ने ठीक ऐसा ही किया। उसने अपहृत बीडीओ की रिहाई के लिए कुछ नक्सलियों को छोड़ने का फैसला लिया। भले ही इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लिया गया हो, लेकिन इससे यह तो साबित हो ही गया कि राज्य सरकारें नक्सलियों का डटकर मुकाबला करने में कतरा रही हैं।
पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड की घटनाओं के बाद केंद्र सरकार की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है। मिदनापुर का दौरा करने के बाद गृहमंत्री चिदंबरम ने यह पाया कि राज्य सरकार पूरी तौर पर सतर्क और सचेत नहीं थी। नक्सलियों ने पुलिस कैंप को घेरकर हमला किया और वहां रह रहे जवान एक भी नक्सली को मारने में सफल नहीं हुए। स्पष्ट है कि वे हमले के लिए तैयार नहीं थे। उनका कैंप जिस स्थान पर था और वहां जैसे प्रबंध थे उससे यह भी पता चला कि जवानों की सुरक्षा खतरे में थी। यह आश्चर्यजनक है कि जिन जवानों को नक्सलियों से लोहा लेना था वे पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं थे। रही-सही कसर पुलिस कैंप की संरचना ने पूरी कर दी। अब यह पता चल रहा है कि राज्य में ऐसे अनेक कैंप हैं जहां नक्सली कभी भी आसानी से हमला कर सकते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने यह माना कि सुरक्षा मोर्चे पर कुछ खामियां थीं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि वह नक्सलियों के खिलाफ वैसा कोई अभियान छेड़ने जा रहे हैं जैसा केंद्र सरकार चाहता है। वह अपने राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। ठीक यही काम केंद्रीय मंत्री ममता बनर्जी कर रही हैं। उन्होंने न केवल यह सवाल उछाला कि पुलिस कैंप पर हमला माओवादियों ने किया है या मा‌र्क्सवादियों ने, बल्कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के उस अंश में संशोधन भी करा दिया जिसमें नक्सलियों के खिलाफ कठोर भाषा इस्तेमाल की गई थी।
ममता बनर्जी गृहमंत्री पर यह दबाव बनाने में लगी हुई हैं कि पश्चिम बंगाल में नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई में केंद्र सक्रियता न दिखाए। उन्हें भय है कि यदि केंद्र सरकार नक्सलियों से सख्ती से निपटती है तो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों और खासकर नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाकों में उनका वोट बैंक कमजोर होगा। यह वोट बैंक के आगे देशहित को दांव पर लगाने वाली राजनीति है। वोटों के लालच में उन नक्सलियों के प्रति नरमी बरती जा रही है जो आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। ममता बनर्जी की इसी राजनीति को निशाना बनाकर माकपा नेता उन पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह नक्सलियों को संरक्षण दे रही हैं। यह निराशाजनक है कि कहीं नक्सलियों के प्रति नरम रवैया अपना लिया गया है तो कहीं उन्हें राजनीतिक संरक्षण दिया जा रहा है। इसके चलते ही पुलिस वैसे संसाधन और प्रशिक्षण से वंचित है जो गुरिल्ला युद्ध में पारंगत नक्सलियों से निपटने के लिए चाहिए। पुलिस किस तरह ढीले-ढाले ढंग से काम कर रही है, इसका प्रमाण है जमुई की घटना। यहां नक्सलियों ने लिखित धमकी देकर गांव पर धावा बोला, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर सकी- और तो और वह सूचना मिलने के कई घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंची। आखिर इस तरह से नक्सलियों से कैसे पार पाया जा सकता है।
नक्सली संगठन न केवल अपनी ताकत बढ़ाते जा रहे हैं, बल्कि ग्रामीणों और विशेष रूप से आदिवासियों के बीच अपना असर बढ़ाने में भी कामयाब हैं। इसका एक कारण निर्धन ग्रामीणों की उपेक्षा का सिलसिला है। नक्सली विचारधारा को निष्प्रभावी करने के लिए पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों का विकास आवश्यक है। यह एक ऐसा हथियार है जो नक्सलवाद को और फैलने से रोक सकता है। इसके साथ-साथ ग्रामीणों को यह भरोसा दिलाने की भी आवश्यकता है कि माओवादियों का साथ देने से उनका भला होने वाला नहीं। उनमें यह भरोसा तब कायम होगा जब नक्सलियों के इस दुष्प्रचार की काट की जा सकेगी कि सरकार पूंजीपतियों को खनिज संपदा के दोहन का अधिकार देकर आदिवासियों की रोजी-रोटी छीनना चाहती है। आदिवासी इस दुष्प्रचार का शिकार इसलिए बन रहे हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारें उनकी जीवन दशा सुधारने में समर्थ नहीं। आदिवासियों को भय है कि यदि उनकी जमीन छिन गई तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। केंद्र और राज्य सरकारों को यह सोचना होगा कि आखिर आदिवासी उनसे अधिक नक्सलियों पर भरोसा क्यों कर रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें खोखले आश्वासन भर दिए जा रहे हों। जो भी हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि देश के अनेक राज्यों में गृह युद्ध जैसे हालात बन गए हैं।
युद्ध जैसे हालात में एक विचित्र समस्या यह है कि अनेक सामाजिक और मानवाधिकार संगठन नक्सलियों की तरफदारी कर रहे हैं। ये संगठन सरकार को तो तरह-तरह की सलाह देते हैं, लेकिन नक्सलियों की बर्बरता पर चुप्पी साध लेते हैं। ये संगठन, जिनसे अनेक बुद्धिजीवी जुडे़ हैं, यह आरोप लगाते हैं कि सरकार बडे़ उद्यमियों का साथ दे रही है, लेकिन यह देखने से इनकार कर रहे हैं कि नक्सली किस तरह बेकाबू होकर कानून अपने हाथ में ले रहे हैं? ये बुद्धिजीवी ऐसी भी कोई पहल नहीं कर रहे जिससे नक्सली वार्ता की मेज पर आने के लिए तैयार हों। नक्सली संगठन जिस तरह समानांतर व्यवस्था कायम करते जा रहे हैं और विकास योजनाओं के विरोधी बन बैठे हैं उसे देखते हुए उनका मुकाबला करने के अलावा और कोई उपाय नहीं। अब यह स्पष्ट है कि पुलिस और अ‌र्द्धसैनिक बलों को सही ढंग से प्रशिक्षित किए बगैर नक्सलवाद से निपटा संभव नहीं।
वैसे तो केंद्र सरकार ने नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए एक विशेष बल का गठन किया है, लेकिन राज्यों की पुलिस संसाधन एवं प्रशिक्षण के मामले में दयनीय दशा में है। रही-सही कसर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच तालमेल के अभाव ने पूरी कर दी है। बेहतर हो कि केंद्र सरकार पहले इस अभाव को दूर करे। इसके अतिरिक्त यह भी जरूरी है कि नक्सलियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई में अत्यधिक सतर्कता बरती जाए, क्योंकि यदि नक्सलियों के स्थान पर निर्दोष लोग निशाना बनें तो समस्या और गंभीर हो जाएगी।

 


Source: Jagran Yahoo

Tags:      

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh