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बेबस बेटियों की दमदार आवाज थे भिखारी ठाकुर

sanjay
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‘बिदेशिया’ जैसी लोकप्रिय नाटक के रचयिता भिखारी ठाकुर किसी परियच के मोहताज नहीं है।भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर ने कई दशक पहले बाल विवाह और मानव तस्करी के खिलाफ नाटक और लोक संगीत के माध्यम से हमाला बोला था। वो विद्वान आदमी थे। बिहार के छपरा जिला में जन्में भिखारी ठाकुर कवि, नाटककार, नाट्य निर्देशक, संगीतकार और अभिनेता थे। उन्होंने भोजपुरी में लेखन किया। उन्होंने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के गबर घिचोर, बिदेशिया, बेटी बेचवा और गंगा अस्नान (स्नान) जैसे प्रसिद्ध नाटक लिखे जिसके कारण इन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है।भोजपुरी संस्कृति को समृद्ध करने में उनका कोई जोड़ नहीं है। भिखारी ठाकुर के अमर नृत्य-नाटक बिदेशिया पर सन् 1963 में एक फिल्म बनी, जिसका संगीत बहुत हिट हुआ। उन्होंने नारी स्वतंत्रता के लिए कई काम किए। आज हमारे प्रधानमंत्री बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओं और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देहज के खिलाफ कानून बना कर नारी सशक्तिकरण को मजबूत करने में लगे हुए है। इस काम को भिखारी ठाकुर ने दशकों पूर्व किया। तब उन्‍हें इतनी प्रसिद्ध नहीं मिल पायी। बेटी बेचवा नाटक के जरिए उन्होंने तब के समाजिक व्यवस्था पर करारा चोट किया था। तब भी गरीब लोग पैसे लेकर अपनी बेटियों को अमीरों और अधेड़ उम्र के लोगों के साथ बेच देते थे। भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी गीतों के माध्यम से भी बेटी बेचने की प्रथा का कड़ा एतराज जताया है। उनके गीतों को अब गायिका कल्पना आवाज दे रही है। दशाकों बाद भी उनका यह गीत आज भी प्रासांगिक है।

यह गीत भिखारी ठाकुर की लिखी है।

बेटी विलाप
गिरिजा-कुमार!, कर दुखवा हमार पार;
ढर-ढर ढरकत बा लोर मोर हो बाबूजी।
पढल-गुनल भूलि गइल समदल भेंड़ा भइल
सउदा बेसाहे में ठगइल हो बाबूजी।
केइ अइसन जादू कइल, पागल तोहार मति भइल
नेटी काटि के बेटी भसिअवलऽ हो बाबूजी।
रोपेया गिनाई लिहल पगहा धराई दिहल
चेरिया के छेरिया बनवल हो बाबूजी।
साफ क के आंगन-गली, छीपा-लोटा जूठ मलिके;
बनि के रहलीं माई के टहलनी हो बाबूजी।
गोबर-करसी कइला से, पियहा-छुतिहर घइला से;
कवना करनियां में चुकली हों बाबूजी।
बर खोजे चलि गइल, माल लेके घर में धइल
दादा लेखा खोजल दुलहवा हो बाबूजी।
अइसन देखवल दुख, सपना भइल सुख
सोनवां में डलल सोहागावा हो बाबूजी।
बुढऊ से सादी भइल, सुख वो सोहाग गइल
घर पर हर चलववल हो बाबूजी।
अबहूं से कर चेत, देखि के पुरान सेत डोला
काढ़, मोलवा मोलइह मत हो बाबूजी।
घूठी पर धोती, तोर, आस कइल नास मोर
पगली पर बगली भरवल हो बाबूजी।
हंसत बा लोग गॅइयां के, सूरत देखि के संइयाँ के
खाइके जहर मरि जाइब हम हो बाबूजी।
खुसी से होता बिदाई, पथल छाती कइलस माई
दूधवा पिआई बिसराई देली हो बाबूजी।
लाज सभ छोडि़ कर, दूनो हाथ जोड़ि कर
चित में के गीत हम गावत बानीं हो बाबूजी।
प्राणनाथ धइलन हाथ, कइसे के निबही अब साथ
इहे गुनि-गुनि सिर धूनत बानी हो बाबूजी।
बुद्ध बाड़न पति मोर, चढ़ल बा जवानी जोर
जरिया के अरिया से कटल हो बाबूजी।
अगुआ अभागा मुंहलागा अगुआन होके;
पूड़ी खाके छूड़ी पेसि दिहलसि हो बाबूजी।
रोबत बानी सिर धुनि, इहे छछनल सुनि;
बेटी मति बेंचक दीह केहू के हो बाबूजी।
आपन होखे तेकरो के, पूछे आवे सेकरों के
दीह मति पति दुलहिन जोग हो बाबूजी।fl24_thakur_jpg_2885003g

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