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कोसी की बढ़ती चुनौतियां

sanjay
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बिहार में कोसी का क्षेत्र चौमुखी विकास के दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ क्षेत्र माना जाता है लेकिन आजादी काल से ही राजनैतिक दृष्टिकोण से उर्वरा क्षेत्र रहा है। वर्तमान परिवेस में कोसी क्षेत्र की कई चुनौतीयां सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है।

़कोसी क्षेत्र का भुगौल- कोसी क्षेत्र में मुख्यत: आठ जिले आते हैं जिसमें खगडिय़ा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज जिले के क्षेत्र हैं। प्रत्येक वर्ष कोसी की विभीषिका इन क्षेत्रों में आती है तथा जान-माल, यातायात व्यवस्था, कृषि, भारतीय रेल से लेकर चौतरफा नुकसान होता है।

शिक्षा का व्यवस्था : कोसी प्रभावित अधिकांश जिलों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक बुरा हाल है। कोसी विभिषिका के चलते प्रभावित विद्यालयों में लगभग तीन महीने विद्यालय बंद ही रहते हैं। साथ ही कोसी का दुर्गम क्षेत्र होने के चलते शिक्षक भी अपने मातहत पदाधिकारीयों से मुंह मिलान कर अपने विद्यालय नहीं आते हैं, जो शिक्षक आते भी हैं तो वे पढ़ाने के बजाय विद्यालय के राशन व किरासन में ही व्यस्त रहते हैं। कोसी क्षेत्र में मात्र एक विश्वविद्यालय मधेपुरा में अवस्थित है जिसके उपर सात जिलों के बच्चों का दारोमदार है। वैसे इस विश्वविद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आभाव है तथा आज के दौर के तकनीकी शिक्षा का घोर आभाव है। ज्ञातव्य हो कि राज्य सरकार ने हाल ही में पूर्णियॉ में विश्वविद्यालय बनाने का घोषणा किया है जिससे पूर्णिया से लेकर किशनगंज तक के छात्रों को लाभ मिलेगा।

स्वास्थय व्यवस्था : स्वास्थय के दृष्टिकोण से कोसी का अधिकांश इलाके की स्थिति दयनीय है। खासकर सहरसा, मधेपुरा एवं सुपौल में जो स्थिति बदतर है। अगर इन जिलों के लोगों का आकस्मिक इलाज के लिए पटना जाने की जरूरत होती है तो अधिकांश रोगी रास्ते में ही काल के गाल में समा जाते हैं। वैसे वर्तमान परिवेश में राज्य सरकार ने मधेुपरा में जननायक कर्पुरी ठाकुर के नाम से आधुनिक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल एवं राजकीय बीपी मंडल इंजीनियरिंग कॉलेज अंतिम चरण में है। इन जिलों के तुलना में पूर्णिया, कटिहार एवं किशनगंज का इलाका स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से समृद्ध है। उस इलाके में कटिहार मेडिकल कॉलेज एवं माता गुजरी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पीटल, किशनगंज है जहां आम रोगियों को इलाज की सुविधा प्राप्त हो जाती है साथ ही पूर्णिया में मैक्स जैसे आधुनिक सुविधाओं से लैस हास्पीटल है जहां सभी प्रकार के रोगों के इलाज हो रहे हैं।

यातायात की व्यवस्था : यातायात के मामलों में कोसी का इलाका आज के दौर में भी पिछड़ा माना जाता है। कोसी का जीवन रेखा माने जाने वाला बीपी मंडल सेतु या डुमरी पुल आज भी अपने बेबसी पर रो रहा है। विगत चार-पांच वर्षों से यह टुटा पड़ा है जो पटना या खगडिय़ा से आप सहरसा, मधेपुरा या सुपौल सीधे नहीं जा सकते हैं। वैसे विगत तीन वर्षों से पुल को चालू करने का काम लगा हुआ है। वैसे सहरसा, मधेपुरा एवं सुपौल से सीधे फोर लेन का हाईवे पकड़कर पटना या देश के अन्य जगहों पर जाया जा सकता है। सहरसा से पूर्णिया पथ भी जर्जर अवस्था में है। एनएच-106 एवं 107 जो बीरपुर से विहपुर एवं महेशखूंट से पूर्णिया जाती है उसकी भी हालत जर्जर बनी हुई है। खगडिय़ा, मानसी होते हुए भारतीय रेल सहरसा, मधेपुरा एवं पूर्णियां की ओर जाती है लेकिन कोसी में प्रति वर्ष आने वाली बाढ़ से भी रेल आवागमन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रोजगार का क्षेत्र : रोजगार के मामलों में भी कोसी का क्षेत्र पिछड़ा है। रोजगार के लिए कोसी के लाखों मजदूर प्रति वर्ष पंजाब, दिल्ली या अन्य राज्यों की ओर रूख करते हैं। सहरसा में राज्य सरकार ने नब्बे के दशक में करोड़ों पूंजी लगाकर पेपर मील तो स्थापित कर दिया लेकिन उसे अद्यतन चालू नहीं किया जा सका है। उसी प्रकार पूर्णिया जिलान्तर्गत बनमनखी चीनी मील भी विगत दो दशकों से बंद पड़ा हुआ है। वैसे मधेपुरा में भारत सरकार ने रेल इंजन कारखाना स्थापित किया है जो चालू हो चुका है। उम्मीद है कि इस कारखाना से हजारों मजजदूर एवं प्रोफेशनल्स का रोजी रोटी मिलेेगा।

कोसी का भविष्य : आने वाले दिनों में कोसी का भविष्य स्वर्णिम इतिहास लिखने को बेताव है। एनएच 106 एवं 107, सहरसा का पेपर मील, मधेपुरा का रेल इंजन कारखाना, मेडिकल कॉलेज, राजकीय बीपी मंडल इंजीनियरिंग कॉलेज, सहरसा से फारविसगंज बड़ी रेल लाइन, पूर्णिया में बनने वाले विश्वविद्यालय आदि बन जाने के बाद कोसी की तकदीर एवं तद्वीर दोनों बदलना अवश्यसंभावी है।

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