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अररिया शब्द की उत्पत्ति के संदर्भ में इतिहासकारों और विद्वानों का मत है कि संपूर्ण क्षेत्र अरण्य (जंगल)से आच्छादित रहने के कारण अरण्या कहलाया जो कालांतर में अररिया बना। अररिया का सांस्कृतिक परिदृश्य बड़ा ही उच्च,उन्नत और सुविख्यात है। हिंदी कथा जगत में आंचलिकता के प्रवर्तक के रूप में विख्यात अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की यह जन्मस्थली भी है। अररिया जिले के ही औराही हिंगना गांव में चार मार्च 1923 में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने मैला आंचल जैसी कालजयी कृति की रचना के साथ -साथ कई पुस्तकें लिखी। उनकी कहानी मारे गए गुलफाम पर गीतकार शैलेंद्र ने तीसरी कसम फिल्म का निर्माण किया। रेणु जी को साहित्य की सेवा के लिए पद्म श्री सम्मान से नवाजा गया। लेकिन इमरजेंसी के विरोध में उन्होंने इस सम्मान का परित्याग कर दिया। शायद रेणु देश के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इमरजेंसी के विरोध में पद्म श्री जैसे सम्मान को लौटा दिया था। अररिया जिले में अररिया आर.एस का छिन्नमस्तिका मंदिर,मदनपुर का शिव मंदिर,सुन्दरी मठ का बाबा सुन्दरनाथ,बसैटी का मठ शिव मंदिर, पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। शहबाजपुर का चामुण्डा स्थान अत्यन्त पुराना और प्रमुख शक्ति पीठ है। मां खड्गेश्वरी काली मंदिर की ख्याति दूर -दूर तक फैली है। ऐसे और भी कई मठ एवं धार्मिक स्थल हैं,जिस पर अररिया को गर्व है। यहां के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी व साहित्यकार पं. रामदेनी तिवारी द्विजदेनी के सौजन्य से महात्मा गांधी,नेता जी सुभाष चंद्र बोस,राममनोहर लोहिया,जयप्रकाश नारायण,विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला,गिरजा प्रसाद कोइराला आदि महानुभावों का आगमन इस इलाके में हो चुका है।
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