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दूसरी कड़ी …
क्या पता था राजू और अनामिका की दुनियां पलक झपकते ही उजड़ जाएगी। दोनों छाया विहीन हो जाएंगे। बड़ी ही उमंग और उत्साह के साथ चली थी दोनों दीना और अचला। रेल दुर्घटना में दोनों कालकवलित हो गए। पीछे सिसकते रह गए दोनों बच्चे। काफी रोने धोने के बाद दोनों बच्चों को उनके दादा-दादी की छत्रछाया मिल गई। उम्मीद और आशाएं पलने लगी। किसी चीज की कमी नहीं थी। समय बीतता गया। बच्चे भी बड़े होने लगे। बड़े होते बच्चों को देखकर दादा-दादी का व्यवहार भी बदलने लगा। पोते राजू को अपने खानदान का बारिश मानकर उस पर तो अपनी जान छिड़कते, लेकिन पोती अनामिका उपेक्षा का शिकार होनी लगी। उसे न तो समय पर खाना मिलता न ही घरेलू कामों से फुर्सत। पहनने के वस्त्र भी साफ नहीं होते। उसकी बालें चिडिय़ां के घोसले जैसी बन गई थी। उपर से मां-बाप के खा जाने का ताना अलग से। उसे कभी तो राक्षसनी तो कभी डायन की खिताब से भी नवाजा जाने लगा। धीरे-धीरे वह अपनी जिंदगी को बोझ मानने लगी। जब भी अकेले में मौका मिलता अपने आंखों से आंसूओं की दो बूंदे टपका लेती। कुछ दिनों के बाद बच्चों का हाल जानने नाना-नानी आए। वह दिल भरकर रोई। नाना ने नानी से पूछा कुछ दिनों के लिए अनामिका को अपने साथ ले चलें। मन बहल जाएगा तो फिर लौट आएगी। नानी ने नाना की बातों में हामी भर दी। इधर नाना -नानी की बातों को सुनकर अनामिका के दादा-दादी के मन में लड्डू फूटने लगे। दोनों मन ही मन सोच रहे थे कि भले ही मेरे माथे की बला टली। अनामिका अपने नाना-नानी के साथ हो चली। पता नहीं अनामिका के दादा-दादी उसे माथे का बोझ क्यों समझ रहे थे। कहीं इसके पीछे दहेज तो कारण नहीं। आज बेचारी नाना-नानी के घर उपेक्षित जिंदगी जी रही है। यदि अनामिका भी अपने खानदान की बारिश होती तो शायद दादा-दादी उसे उपेक्षित नजरों ने नहीं देखते। यह कहानी सिर्फ अनामिका या राजू की नहीं है। सैकड़ों बच्चे इस दंश को झेल रहे है। इस मानसिकता को बदलने का यदि ईमानदार प्रयास किया जाए तभी स्थिति बदल सकती है।
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लावारिश बच्चों को ले रिश्तेदारों की भूमिका कोसी और सीमांचल के दस पंचायतों के सर्वेक्षण से जो आंकड़े मिले है,वह हैरान करने वाली है। कुल 265 बच्चे अनाथ मिले। इनमें लड़कों की संख्या 153 और लड़कियों की संख्या 125 है। इन बच्चों के नाथ इनके रिश्तेदार बने है।
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नाना- नानी : (38लड़का)(40 लड़की)
दादा- दादी : (57लड़का)(36 लड़की)
नाना- नानी : (38लड़का)(40 लड़की)
चाचा- चाची : (24लड़का)(23लड़की)
मामा- मामी : (07 लड़का)(08लड़की)
जीजा – जीजी : (10 लड़का)(05लड़की)
सौतेली मां : (09 लड़का)(05लड़की)
मौसा-मौसी : (04 लड़का)(03लड़की)
अन्य : (05लड़का)(01लड़की)
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जातिगत विश्लेषण
शेड्यूल कास्ट :16.16
शेड्यूल ट्राइब : 36.98
ओबीसी : 28.30
मुस्लिम : 16.98
अन्य :1.13
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