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चारा घोटाले में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को सजा के बाद कोसी-सीमांचल और पूर्व बिहार की विपक्षी एकता कमजोर पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। विपक्ष की निगाहें अब शरद यादव पर टिकी हैं। वह भाजपा के विरोधी खेमे को मजबूत करने के प्रयास में जुटे हैं।
पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल में राजद के 15 विधायकों का कब्जा है। पूर्व बिहार के ही बांका और भागलपुर से इसके तीन सांसद थे। अररिया सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद दो ही सांसद बचे। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा को सबसे अधिक राजनीतिक नुकसान पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल में ही उठाना पड़ा है। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की गोलबंदी का लाभ राजद को ही मिला था। कोसी और सीमांचल में माई (मुस्लिम-यादव) गठजोड़ का असर देखने को मिला। इन दोनों इलाकों से भाजपा का एक भी उम्मीदवार लोकसभा नहीं पहुंच पाया। कोसी-सीमांचल इलाका राजद के लिए हमेशा से मजबूत माना जाता है। इन इलाकों पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की खास पकड़ रही है। मधेपुरा से लालू प्रसाद ने लोकसभा चुनाव भी जीता है। जदयू के लिए शरद यादव एक बड़े नेता रहे थे। महागठबंधन टूटने के बाद शरद यादव ने नीतीश कुमार से किनारा कर विपक्षी एकता को बल देना शुरू किया। बावजूद, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिस तरह जातीय समीकरणों पर लालू प्रसाद की पकड़ है, वैसी पकड़ शरद यादव की नहीं है। एक सप्ताह पूर्व शरद यादव ने राज्य के कई प्रमुख नेताओं के साथ सीमांचल में जगह-जगह बैठक कर अपनी भड़ास नीतीश कुमार के खिलाफ निकाली। उधर, भाजपा ने भी किशनगंज में इसी सप्ताह अपनी प्रदेश स्तरीय बैठक आयोजित की। इससे पूर्व भी भाजपा यहां बड़े कार्यक्रम कर चुकी है। तमाम राजनीतिक दल यह मानते हैं कि राजनीतिक माहौल बनने और बिगडऩे का सिलसिला इसी वर्ष चलेगा, क्योंकि अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। अभी लालू प्रसाद की विरासत तेजस्वी यादव भले ही संभाल रहे हैं, लेकिन उनका कितना प्रभाव इस इलाके पर है, यह आने वाला समय ही बताएगा। लालू प्रसाद जमीन से जुड़े नेता रहे हैं। तेजस्वी यादव का नेताओं से तो परिचय है, लेकिन लालू की वास्तविक ताकत कार्यकर्ताओं से है। इस कारण लालू की विरासत संभालने के लिए उन्हें कार्यकर्ताओं के बीच अपनी पैठ बढ़ानी होगी। मधेपुरा सांसद पप्पू यादव भी गाहे-बगाहे लालू प्रसाद पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते रहे हैं। पप्पू ने राजद से चुनाव जीता, लेकिन बाद में अपनी अलग पार्टी जाप बना ली। अब पप्पू यादव भी अपने दल के विस्तार में लगे हुए हैं। ऐसी स्थिति में यदि लालू 2018 तक राजनीतिक परिदृश्य से ओझल रहते हैं तो विपक्षी एकता कमजोर पड़ेगी। शरद यादव के लिए भी यह साल चुनौतीपूर्ण है। देखना है कि वह विपक्षी एकता को किस कदर मजबूत कर पाते हैं। अररिया में तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद होनेवाला लोकसभा उपचुनाव विपक्ष के लिए लिटमस टेस्ट साबित होगा।
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