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अनिल यादव तो एक छोटी सी कड़ी है इस भृष्ट तंत्र की । अनिल यादव जैसे छोटे-छोटे सूत्रों को पकड़ करके असली सूत्रधार तक पहुँचने की जरूरत है। आज इन सूत्रधारों की कृपा से ही भृष्टाचार पनपता और फलता-फूलता है। इनके आपसी गठजोड़ को उद्घाटित करने की जरूरत है। नेताओं और अधिकारियों की दुरभिसंधि को पहचानकर जनता के सामने उनको बेनकाब करना होगा । आज सही काम करने या करवाने के लिए इतनी औपचारिकताएँ पूरी करनी पड़ती हैं कि व्यक्ति उन औपचारिकताओं से ही घबड़ाकर आगे बढ़ने का हौसला खो देता है। पर आश्चर्य है कि लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद के चुनाव में किसी भी स्थापित परंपरा और प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और लोक सेवा आयोग ही क्यों माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड तथा उच्चतर शिक्षा आयोग के अध्यक्षों और सदस्यों के चुनाव में भी घोर अनियमितता के प्रमाण मिले हैं । इसे महज संयोग कहकर नहीं नकारा जा सकता । ये सुनियोजित षड्यंत्र के नतीजे हैं । मा0शि0से0चयन बोर्ड की पूर्व अध्यक्षा की नियुक्ति को अवैधानिक मानते हुए जब कोर्ट द्वारा उनकी नियुक्ति रद्द कर दी गई तो उसके बाद क्या सरकार को अगले अध्यक्ष की नियुक्ति में मानकों पर विशेष ध्यान नहीं देना चाहिए था । उल्लेखनीय है कि अगले अध्यक्ष सनिल कुमार की नियुक्ति में भी मनमानी की गई । क्या यह महज संयोग ही है। उच्चतर शिक्षा आयोग के अध्यक्ष लाल बिहारी पांडे और सदस्यों की नियुक्ति भी मानकों के विपरीत की गई थी जिसे कोर्ट के द्वारा दुरुस्त किया गया । लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव के आवेदन-पत्र को सपा कार्यालय में रिसीव कराया गया , आखिर सपा कार्यालय आयोगों का आयोग जो ठहरा। गुंडा-ऐक्ट ,जिला बदर जैसी उनकी योग्यताएँ अन्य प्रतियोगियों की योग्यताओं पर भारी पड़ी। लोकायुक्त अपने मन का हो, आयोगों में अध्यक्षों व सदस्यों की नियुक्तियां अपने मन की हो तो फिर कानून में आस्था का दिखावा क्यों? जब संवैधानिक निकायों के प्रमुखों, सदस्यों की नियुक्तियाँ विशुद्ध राजनैतिक दृष्टिकोण से की जाएगी तो फिर उनके राजनैतिक निहितार्थ न निकाले जाएँ, यह कैसे संभव है…….
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sanjeevshuklaatul.blogspot.in/2015/10/blog-post_22.html
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