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स्कूली बच्चों में शराब और नशे की बढ़ती प्रवïृत्ति गम्भीर चिन्ता का विषय है। लाखों बच्चों नशे के शिकार हो रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार लगभग २८.६ फीसदी लड़के और पांच फीसदी लड़कियां किसी न किसी नशे की गिरफ्त में हैं। शराब के अलावा सिगरेट,गुटखा तथ तम्बाकू अदि जैसे मादक पदार्थों का स्कूली छात्र खुले आम सेवन कर रहे हैं। यहीं नहीं कुछ छात्र ड्रग्स के भी शिकार हैं। बच्चों में बढ़ती नशे की लत पर चिन्ता जताते हुए अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को इससे बचाने के लिए सरकार को चार महीने के भीतर समग्र राष्टï्रीय योजना तैयार करने के निर्देश दिये हैं। साथ ही कितने बच्चे नशे की चपेट में हैं का पता लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को छ: माह के भीतर सर्वे करने को भी कहा है। ये निर्देश मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर , न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने बच्चो के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आन्दोलन की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जारी किये। कोर्ट ने स्कूली बच्चों में पनपती नशे की आदत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब वे नशे के आदी हो जाते हैं तो उन्हें नशीले कारोबार में जाने के लिए उकसाया जाता है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए इसे स्कूली पाठï्यक्रम में शामिल किया जाए। साथ ही स्कूलों में नशीले पदार्थों का कारोबार रोकने के लिए स्टेन्र्डड आपरेटिंग प्रोसीजर अपनाया जाए। जो भी हो,इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय की चिन्ता राष्ट्र की चिन्ता है क्योंकि स्कूली बच्चों में नशे की बढ़ती आदत से एक पीढ़ी बरबादी की राह पर चल रही है। मादक पदार्थों का कारोबार करने वाले माफिया इसमें काफी सक्रिय हैं। बच्चों में नशे की लत विकसित करने के लिए दांव पेंच अपनाते हैं। यहां यह कहना गलत न होगा कि ऐसे माफियाओं को पुलिस का संरक्षण प्राप्त होता है। इसलिए इस तन्त्र को कुचलने की आवश्यकता है। इसके अलावा स्कूलों के आस-पास शराब एवं अन्य मादक वस्तुएं बेचने वाली दूकानें नहीं होनी चाहिएं। हालांकि यह निर्देश आए वर्षों हो चुके हैं लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर अमल करने की कोशिश नहीं की। आज भी स्कूलों के मुख्य दरवाजों के सामने ऐसी दूकानें आसानी से देखने को मिल जाती हैं। कोर्ट एवं सरकार के अलावा नशे की प्रवृत्ति से बच्चों को बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी माता-पिता तथा शिक्षकों की है। अत:माता-पिता तथा शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों के सामने मादक पदार्थों का सेवन न करें। क्योंकि बच्चे इन्हें अपना आदर्श मानते हुए उनका अनुसरण करने की कोशिश करते हैं। देखने में आया है कि कई शिक्षक स्कूलों में बच्चों से धूम्रपान की वस्तुएं दूकानों से लाने का कहते हैं और उनका सेवन बच्चों के सामने करते हैं। यदि हम-सब वास्तव में बच्चों को नशे की प्रवृत्ति से मुक्त करना चाहते हैं तो उनके हित में स्वयं नशे की आदत से तिलांजलि देनी होगी।
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