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खाली होता धरती का खजाना

socailesue
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पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह जानते हुए भी हम उसकी फिजूलखर्ची कर रहे हैं। औद्योगिक विकास,खेतों की सिंचाई तथा पीने के लिए भूगर्भ जल का दोहन आवश्यक है। लेकिन साथ ही इस बहुमूल्य संसाधन की बचत करना भी तो समय की मांग है। सिंचाई और उद्योगों मेें अंधाधुंध दोहन के चलते भूमिगत जल नीचे उतरते हुए खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। स्थिति की गम्भीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश,पश्चिम बंगाल और केरल आदि पहाड़ी और समुद्र के आस-पास वाले राज्य भी इसकी चपेट में आ गये हैं। पंजाब,राजस्थान,उत्तरप्रदेश,दिल्ली,बिहार,झारखंड और चंडीगढ़ में भूजल की स्थिति और भी ज्यादा खराब है। सरकार की माने तो केन्द्रीय भूमि जलबोर्ड की निगरानी वाले 55 फीसदी से अधिक कुंओं का पानी तेजी से नीचे उतर रहा है। आन्ध्र्रप्रदेश,चंडीगढ़,बिहार,दिल्ली,पंजाब आदि में पिछले पांच वर्षों के दौरान अधिकांश कुंओं केजलस्तर में भारी कमी हुई है। इसमें आन्ध्र प्रदेश के कुंओं में 74 फीसदी,दिल्ली में 85 फीसदी,हरियाणा में 54 फीसदी,उत्तर प्रदेश में 55 फीसदी और उत्तराखंड में 54 फीसदी कुंओं में जलस्तर तेजीे से नीचे उतर रहा है। गिरते भूजल का मुख्य कारण सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए किया जाने वाला जलदोहन है। हालांकि भूजल में गिरावट को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने व्यापक योजना तैयार की है। इसके तहत केन्द्रीय भूमि जलबोर्ड ने भूजल को कृत्रिम रूप से दोबारा से भरने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है। साथ ही जल संसाधन के संरक्षण के लिए त्वरित सिंचाई लाभकार्यक्रम,कमान क्षेत्रविकास एवं जलप्रबन्धन,जलनिकायों की मरम्मत आदि जैसी योजनाओं के अन्तर्गत राज्यों और संघशासिक राज्यों को तकनीकी व वित्तीय मदद भी दी जा रही है। गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए सरकारी प्रयास अपनी जगह सही हैं लेकिन इस विकराल समस्या से सरकार अकेले नहीं निबट सकती है। इसके लिए हमें अपने स्तर से भी प्रयास करने होंगे। सबसे पहले अपने घरों में हमें पानी का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। हमें अपने भीतर पर्यावरण संरक्षण की समझ पैदा करनी होगी। अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। इसके अलावा हमें अपने भोजन में भी ऐसी चीजें को शामिल करना चाहिए,जो पानी बचत करने में सहायक हों। इसके लिए चावल और गन्ने का उपयोग कम किया जा सकता है,क्योकि इनकी उपज के लिए पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है। हमें शीतल पेय पदार्थों का बहिष्कार करना चाहिए क्योंकि इनको बनाने वाली कम्पनियां जमीन से ज्यादा पानी खींचती है। साथ ही अपने स्तर पर हमें वर्षा का जलसंचय करना चाहिए। अभी तो नियत समय पर वर्षा हो रही है। जब यह नहीं होगी तब का चिन्तन अभी से करना चाहिए।

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