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अभी हाल ही में दिल्ली के एक दंत चिकित्सक की नाबालिग बच्चों के एक समूह ने ईट-पत्थर तथा क्रिकेट बैट आदि से पीटकर हत्या कर दी। चिकित्सक का कसूर सिर्फ इतना भर था कि उसने एक नाबालिग को गली में तेज रफ्तार से बाइक चलाने से रोकने की कोशिश की थी। उस वक्त वह नाबालिग घटनास्थल से चला गया,लेकिन कुछ समय बाद अपने साथियों की टोली के साथ वहां पहुंचकर हत्याकांड को अंजाम दे डाला। इससे पूर्व भी किशोर वय के बच्चों ने पिछले दिनों दिल्ली में मजिस्ट्रेट की अदालत में जमकर खूनी खेल-खेला था। उधर कुछ दिन पूर्व उ०प्र०के गाजीपुर जिले में कक्षा आठ के एक छात्र ने खेल-खेल में हुए विवाद में अपने सहपाठी को गोली मार दी थी। यह घटनाएं यही इशारा कर रही हैं कि कम उम्र के बच्चे दिन-प्रतिदिन कितने उग्र होते चले जा रहे हैं। वे इतने दुस्साहसी हो चले हैं कि लूटपाट करने से लेेकर किसी की हत्या करने में भी उनके हाथ नहीं कांपते। उन्हें कानून का कोई भय नहीं रहा। सरकार ने बाल अपराधों पर अंकु श लगाने के लिए किशोरों का वय नये सिरे से निर्धारण किया और इसकी सीमा १८ वर्ष से घटाकर १६ वर्ष कर दी। लेकिन बाल अपराधियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। बारह,तेरह वर्ष के छोटे बच्चे बड़े-बड़े अपराध कर रहे हैं। कम उम्र के बच्चों का इतना अधिक उग्र हो जाना वाकई चिन्ता का विषय है। अब यहांं बड़ा सवाल यह है कि आखिर नाबालिग बच्चे छोटी-मोटी घटनाओं पर बड़े से बड़े अपराध करने से क्यों नहीं हिचकते? इसका यही जबाब हो सकता है कि मानवीय मूल्यों के पराभव और कुसंस्कारों के बढ़ते प्रभाव से समाज में विकृतियां पैदा हो गई हैं। जिसके चलते कि शोर वय के बच्चे अपराध कर रहे हैं। इसके अलावा स्कूली शिक्षा केवल नौकरी दिलाने तक सीमित रह गई। नैतिक मूल्यों और आदर्श से उसका कोई लेना-देना नहीं रह गया। जो भी हो यहां सवाल यह है कि किशोर वय के बच्चों को हम कैसे कुसंस्कारों से मुक्त कर संस्कारवान बनायें? इसके लिए माता-पिता,परिजनों तथा शिक्षकों एवं समाज को आगे आना होगा। सभी को बच्चों में संस्कार विकसित करने होंगे। साथ ही उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए यह समझाना होगा कि छोटी-मोटी बातों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए। इसके अलावा अभिभावको को बच्चों की गलतियों पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति त्यागनी होगी। जब हमारे बच्चे संस्कारित होंगे तभी भविष्य का समाज सुसंस्कृत और सभ्य बन पायेगा।
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