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जाएं तो जाएं कहाँ?

socailesue
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हर सुबह दुष्कर्म और छेडख़ानी से भरे अखबार हमारे लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर तमाचा मारते हैं और सवाल करते हैं कि आखिर कि ये कौन सी व्यवस्था है,जहॅंा अपराधी एक पल भी ठिठकता नहीं है। देश भर में तेजी के साथ बढ़ती दुष्कर्म की ये घटनाएं वाकई चिन्ता का विषय हैं। अभी हाल ही में आये राष्टï्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिदिन ९२ महिलाएं दुष्कर्म की शिकार होती हैं। वर्ष २०१३ में देश भर में दुष्कर्म के ३३,७०७ मामले सामने आये जबकि वर्ष २०१२ में यह आंकड़ा २४९२३ का था। आंकड़ों के अनुसार दुष्कर्म की सर्वाधिक घटनाएं दिल्ली में होती हैं। वैसे ही इन आंकड़ों पर आसानी से विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि कई मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही दर्ज नहीं करती है। खैर जो भी हो दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं से यही लगता है कि महिलाएं न घर के भीतर सुरक्षित हैं और न ही बाहर। दरअसल,समय के साथ पुराने सामाजिक मूल्य समाप्त होते जा रहे हैं। जिससे ऐसे हादसों की संख्या बढ़ती जा रही है। दुष्कर्मी किसी जाति विशेष या समुदाय के नहीं होते हैं। यह हमारे अपने बीच में रहने वाले ही होते हैं। देखने में आया है कि बलात्कार के कुछ मामलों को अंजाम देने वाले शख्स प्रभावशाली और दबंग किस्म के होते हैं जो अपने से कमजोर को शिकार बनाते हैं। वहीं कुछ मामलों को समाज के वे तत्व अंजाम देते हैं जो कुंठा से भरे हुए होते हैं। इनके अलावा बलात्कार के अनेक मामले परिवार में ही सामने आ रहे हैं। कई मामलों में पिता ही बलात्कारी साबित होता है। हालांकि सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कड़े कानून बनाये हैं। लेकिन फिर भी दुष्कर्म की घटनाओं में कमी नहीं आ रही है। क्यों कि पुलिस लगभग हर दुष्कर्म की घटना को दबाने का प्रयास करती है। कभी-कभी तो वह बर्बरता पर उतर आती है। यही नहीं पुलिस को पूरा ध्यान अपराधियों को सजा दिलाने की अपेक्षा मामले की लीपापोती में लगा रहता है। वैसे ऐसा भी नहीं कि हर घटना के लिए कानून व्यवस्था को दोषी ठहराया जाए। चलती बस में हुए बलात्कार के लिए तो कानून व्यवस्था को दोषी माना जा सकता है,लेकिन घर के अंदर परिवार के ही सदस्य यदि ऐसी घिनौनी हरकत करें,तो इसमें सरकार क्या कर सकती है? इसीलिए हमें यह सोचना होगा कि सब कुछ सरकार या पुलिस के ऊपर डाल देने से भी कुछ नहीं बदलने वाला। खैर जो भी हो यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर दुष्कर्म की इन घटनाओं पर अंकुश कैसे लगे? पुलिस के लिए सबसे पहले पुलिस की जिम्मेदारी या जबाबदेही तय करनी होगी साथ ही पुलिस को अपना रवैया और दृष्टिïकोण भी बदलना होगा। दूसरे समाज को नारी के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। तीसरे पीडि़ता के साथ खड़ा होना,अपराध का निस्तारण और घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के क्रम में हमें अपनी भूमिका तय करनी होगी। साथ ही समाज को लोगोंा की चेतना विकसित करने की जिम्मेदारी उठानी होगी। इसके अलावा देश के सभी राज्यों को महिलाओं से सम्बन्धित मामलों के त्वरित निस्तारण के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने पर भी विचार करने की जरूरत है। फास्ट ट्रैक कोर्ट के अलावा अन्य राज्य उत्तर प्रदेश सरकार की तरह पीडि़त महिलाओं को राहत देने के लिए प्रत्येक जिले में खोले जा रहे निर्भया केन्द्र खोलने पर भी विचार कर सकते हैं। बहुत सम्भव है कि इन उपायों से रूक सकें दुष्कर्म और छेडख़ानी की घटनाएं।

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