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प्रेमचन्द की कहानियों के पात्र ग्रामीण अंचलों में आज भी हैं जीवित

socailesue
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उपन्यास सम्राट एवं कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई,1880 को वाराणसी जिले के लमही गांव में एक निर्धन कायस्थ परिवार में हुआ था। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास,रूढ़िवादी विचारधारा,निर्धन किसान एवं दलितों का शोषण करने वाले जमींदारांे एवं साहूकारों की जो यथार्थ तस्वीर अपने साहित्य मंे सृजन की है,वह आज भी भारतीय गांवों में चरितार्थ है क्योंकि आज भी किसान और मजदूरों का साहूकारों आदि द्वारा शोषण किया जा रहा है। प्रेमचन्द की पंच परमेश्वर एवं सवा सेर गेहूं आदि यर्थाथवादी कहानियां हैं जो निर्धन ग्रामीण अंचल मंे रहने वाले ग्रामीणों के लिए प्रेरणा की स्रोत है। उनके गोदान,गवन एवं सेवा सदन आदि ऐसे उपन्यास हैं जो हृदय को विदीर्ण कर देते हैं। उन्होंने अपने उपन्यास कर्मभूमि में जातिसूचक शब्द का प्रयोग किया है जिसको लेकर आज भी कुछ राजनीतिज्ञ एवं दलित वर्ग उनके साहित्य का विरोध कर रहे हैं। लेकिन विरोधियों ने उनके साहित्य का ठीक से अध्ययन नहीं किया । यदि ऐसा किया होता तो वे उनके सच को समझ सकते थे। साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य,काल और समाज एवं राष्ट्र की परिस्थितियों के अनुसार सृजित किया जाता है। साहित्यकार की भावनाएं,विचार और संदेश सभी सामाजिक परिवेश की देन हुआ करती हैं। आजादी से पहले हमारे देश की ऐसी ही परिस्थितियां थीं। दलितों के लिए जातिसूचक शब्द ही प्रयोग किया जाता था। महात्मागांधी ने इस शब्द को बदलकर हरिजन की संज्ञा दी,जो आज तक प्रचलन में है। देखा जाए तो प्रेमचन्द का इरादा दलितों को अपमानित करने का नहीं था। उन्होंने तो गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए रचनात्मक कार्य किया। प्रेमचन्द का साहित्य पूरे समाज तथा सभी जातियों का प्रतिनिधित्व करता है। आज आधुनिक लेखकों में प्रेमचन्द का कोई विकल्प नहीं है। प्रेमचन्द भारतीय जनता के आइना हैं,जिसमें हिन्दू ,मुसलमान,हरिजन,किसान,जमींदार तथा सर्वहारा अपने प्रमाणिक रूप मेें नजर आते हैं। मानवीय जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठित करने वाले उनके कालजयी साहित्य पर वहीं प्रहार कर सकता है,जिसे इन मूल्यों के स्थान पर उन मूल्यों केा स्थापित करना है,जो धार्मिक उन्माद और विद्वेष को भारतीय राष्ट्रवाद के चरित्र निर्धारक तत्व बनाना चाहता है। खैर,जो भी हो प्रेमचन्द ने आजादी के आन्दोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। गांधी जी से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी नौकरियां भी छोड़ दीं। उनकी कहानियों के पीछे गांधीजी का असहयोग आन्दोलन,सामाजिक क्रान्ति और स्वतन्त्रता संघर्ष में प्रतिभागी बलिदानों की गतिविधियां थीं। पाठकों ने अपना सुख-दुःख उनकी कहानियों और उपन्यासों मंे तलाशा और अपनाया। वास्तव में प्रेमचन्द ने निम्न एवं मध्यम वर्ग की सच्ची तस्वीर कथा साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत की। अपने उपन्यासों से उन्होंने देश की राजनीति चेतना को झकझोरा तथा अपने साहित्य के माध्यम से उन्होंने आम जन की पीड़ा को वाणी दी।

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