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ऐसा लगता है कि भादरतीय संसद देश की समस्याओं तथा लोगों की परेशानियों पर चर्चा करने एवं कानून बनाने से ज्यादा हंगामे का मंच बन गई है। विपक्ष ऐसे मुद्दों की तलाश में रहता है जिसके आधार पर संसद की कार्यवाही ठप हो सके । अब धर्मान्तरण के मुद्दे को ही लीजिए जिसको लेकर विपक्षी दल कई दिनों से राज्य सभा की कार्यवाही नहीं चलने दे रहे हैं। इससे पूर्व केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन के विवादास्पद बयान को लेकर संसद का कामकाज कई दिनों तक ठप रहा था। वैसे यह ठीक है कि लोकतन्त्र में संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए सत्ता पक्ष जिम्मेदार है लेकिन विपक्ष भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता । राजनीतिक दलों को याद रखना चाहिए कि किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष एक गाड़ी केदो पहियों के समान होते हैं। लोकतंत्र की जीत के लिए यह पहली शर्त है कि इसके दोनों पहिये स्वस्थ ढंग से यात्रा करें। लोकतंत्र की सफलता दोनों पक्षों की सकारात्मक सक्रियता पर निर्भर करती है। यदि एक भी पहिया अपनी राह से भटक जाए तो देश में राजनीतिक शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और फिर लोकतंत्र अपने वास्तविक उदï्देश्य की प्राप्ति मेें कभी सफल नहीं हो सके गा। लेकिन आजादी के छ: दशक बाद भी आज संसद में जो कुछ देखने को मिल रहा है,वह लोकतंत्र की परिपक्वता और विश्वसनीयता पर उंगली उठाने के लिए काफी है। कभी-कभी हमारे राजनेता आवेश में आकर कुछ ऐसा कर जाते हैं या बोल जाते हैं कि हमारे लिए अन्र्तराष्टï्रीय स्तर पर शर्मसार होने की नौबत आ जाती है। दरअसल कई दशकों से भारतीय लोकतंत्र में एक गलत परम्परा की शुरूआत हुई है कि यहंा केन्द्रीय और राज्य स्तर पर सत्ता पक्ष में बैठे लोग कितनी ही अच्छी नीतियां देश हित में बना लेें,लेकिन विपक्ष विरोध में हो-हल्ला करेगा ही! गलत नीतियों,विचारों पर विरोध जरूरी है लेकिन हितकारी नीतियों पर जबरदस्ती विरोध कर संसद के कीमती समय को व्यर्थ करना समझ से परे है। भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य छोटे दल आज सभी का रूख ऐसा ही दिखता है। जनप्रतिनिधियों का सत्र के समय सीट छोड़कर उठना,शोर मचाना और वेल की तरफ बढऩे की तत्परता से लगता है कि मानो वे सत्ता सुख न भोग पाने की भड़ास निकाल रहे हों। दुनियां के अनेक देशों में संसदीय लोकतंत्र है लेकिन जैस दृश्य भारत में दिखता है,वैसा अन्यत्र कम ही नजर आता हैै। लोकतन्त्र में विपक्ष संजीवनी के समान है। यह सत्ता पक्ष को उचित दिशा में कार्य करने का माध्यम है। साथ ही लोकतंत्र तानाशाही का रूप न ले ले,इसकी भी गांरटी लेता है। लेकिन ध्यान रहे कि बहस और आलोचनाएं केवल सकारात्मक दिशा में हों। राजनीति का अधिकार हर किसी को है। लेकिन देश और समाज के निर्माण में सदन की रचनात्मक भूमिका बाधित नहीं होनी चाहिए।
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