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वैचारिक मतभेद

socailesue
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दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे लगाये जाने के आरोप में जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी को लेकर देश का महौल गर्म है। उसकी गिरफ्तारी को लेकर राजनीतिक दलों के बीच संग्राम सा छिडा हुआ है। कांग्रेस व वामपंथी दल कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं। वहीं भाजपा उसके खिलाफ की गई कार्यवाही को उचित ठहरा रही है। विभिन्न छात्र संगठन भी उसकी गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि इस समय देश में एक आग सी भड़की हुई है जिसे भड़कना नहीं चाहिए था। लेकिन यह आग वे वजह नहीं भड़की है। इसके पीछे ठोस कारण हैं। यह वामपंथ और भाजपा के बीच लम्बा वैचारिक मतभेद और संघर्ष है,ेेेजो आज अपनी सारी सीमा तोड़कर पाकिस्तान जिन्दाबाद की नारेबाजी तक पहुंच गया। वामपंथी खेमा भाजपाईयों को कट्टरवादी खूंटे से बंधा पुरातनपंथी मानता है,जबकि भाजपाई उसे गैर राष्ट्रीय और असंस्कृतिवादी विचारों का पोषक मानते हैं। कांग्रेस के शासन में रहते कुछ बातों में समान विचारधारा के चलते वामपंथियों को फलने-फूलने का पर्याप्त अवसर मिला। उन्होंने राजनीति के साथ ही साहित्य,संस्कृति और कला की अपनी अलग अवधारणा विकसित कर ली। उन्होंने असहमति को हथियार बनाकर पेश किया। कांग्रेस को वामपंथियों का साथ चाहिए था,सो लिया। मगर भाजपा जब शासन में आयी,तो उसने वामपंथियों के पर कतरे। भाजपा के प्रचण्ड बहुमत के कारण इस बार वामपंथी बड़े खतरे से आशंकित हैं। अब यह उनके अस्तित्व की लड़ाई है। वामपंथियों को भाजपा बड़ा दुश्मन इसलिए मानती है क्योंकि उन्हें बुद्धिजीवियों का साथ मिला हुआ है। खैर,जो भी हो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इस प्रकार की गतिविधियों को हतोत्साहित करने की जरूरत है।

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