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फिर से…

Maa
Maa
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& फिर से वही रास्ता …
चारो ओर वही गालिया वही चौबारे …
कैसे भूलू उन पलो को …
जिसने बचपन के झरोखे को रुशवा कर…
मुझे जवानी के बेड़ियो से बांध दिया ..

& फिर से वही मंजिल …
चारो ओर वही फशाने वही अजनबी हमसफ़र…
कैसे भूलू उन फरेबियों को …
जिन्होंने सफलता के रास्ते में आकर..
मुझे हर वक़्त एक नयी चुनौतियों से सामना करवाया …

& फिर से वही उम्मीद …
चारो ओर वही निगाहे वही सफर …
कैसे भूलू उनके साथ को …
जिनके एक सहारे ने …
मुझे गिरकर उठना सिखाया …
& फिर से वही लोग ..
चारो ओर वही विश्वास वही धोखा ..
कैसे भूलू उनके चंचल मान को ..
जिनके एक भरोसे ने ..
मुझे परिंदो की तरह उड़ान सिखाया .

& फिर से वही किस्मत ….
चारो ओर वही लोग वही मैं..
कैसे भूलू उस ख़ुशी ओर दुःख के पल को ..
जिनके पहलु ने आज भी परिंदो की तरह उड़ते उड़ते ..
मुझे इंसान होने का अहसास कराया …

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