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“मैं,तुम और हम” एक ऐसे शब्दों का सम्मलेन जिसकी वजह से लोग अपना अस्तित्व्य बनाते हैं,
“मैं” एक ऐसा शब्द जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति समाज में खुद की एक नयी पहचान बनाना चाहता है ..और
उनमे से ही “तुम” एक ऐसा शब्द हैं, जो दो व्यक्ति के मिलन की शुरुआत स्थापित करता है जिससे की वे लोग समाज में अपनी पहचान और परचम लहराने की कोशिश की जंग में लगे रहते है..
अंत में बचा “हम” एक शब्द जो दो लोगो के सम्पूर्ण मिलन को संकेत करता है जिसकी वजह से लोग समाज में अपना अस्तित्व्य स्थापित करते है ….
जिस प्रकार हर परिवार एक सुयोजित और सुनिश्चित तौर पर रहता है वैसे ही ये कहानी है एक लड़की की जिसका नाम “चांदनी” था..उसके परिवार में सिर्फ उसकी माता जी ,पिता जी, और एक बड़ा भाई था जिसका नाम “सोहन” था …माँ, पिता जी ने अपने परिवार को सुयोग्य बनाने के लिए शुरू से ही जद्दो- दहत अपनी पूरी जान लगा दी थी ..”एक मिडिल क्लास फैमिली ” के कारण वो लोग हर छोटी सी छोटी खरीदारी का भी लेखा-जोखा रखते थे …
चांदनी इस परिवार की सबसे छोटी और चंचल बच्ची थी ..वैसे तो चांदनी के परिवार में सिर्फ 4 सदस्य थे लेकिन आज कल की नयी परंपरा के कारण हाल फ़िलहाल में ही चांदनी के परिवार वाले और उनके सगे सम्बन्धी (एकल परिवार) के साथ अपना हँसता खुशहाल भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे जिसमे उसके चाचा जी -चाची जी और उनके बच्चे शामिल थे …
नयी परंपरा को अपनाते हुए चांदनी के सगे सम्बन्धी अपने में ही (सेपरेट) रहना ज्यादा पसंद करते थे इधर उसके घर में सिर्फ उसके पिता जी सरकारी कर्मचारी थे उसके पिता जी को वहाँ के लोग “महतो” जी के नाम से जानते थे माता जी घरेलु काम में अपना जीवन-यापन कर रही थी
बचा उसका भाई वो एक नामी कॉलेज से अपने ग्रेजुएशन कम्पलीट होने की तयारी में लगा हुआ था …और चांदनी एक असमंजस भरी परिस्थिति में जन्म होने के कारण अपने भाई से करीब 10 साल की छोटी बच्ची वो सिर्फ तीसरी कक्षा में थी..
सब कुछ बहुत ही अच्छे से बीत रहा था लेकिन प्रकृति ने लिया एक खेल एक सड़क हादसा में चांदनी के पिता जी की मौत हो गई ….अब सब कुछ तितर-बितर हो गया …माता जी बिलकुल मदहोश और सदमे में चली गई सारा पारिवारिक भार उसके बड़े भाई पर चला आया …
माता जी को , पुरे परिवार को सँभालते हुए उसने .. अपने घर का कमान शम्भाल ली ..और खुद को एक नौजवन, हौसला से पूर्ण वयक्ति के तरह उसने अपनी पढाई के साथ एक प्राइवेट नौकरी जॉइंट की ..
नौकरी के बाद जितना भी समय मिल पता वो अपनी माँ और छोटी बहन के लिए निकलता और उन्हें इधर- उधर घुमाने ले जाते ताकि माता जी का मन लगा रहे ..और चांदनी वो छोटी सी बच्ची उसे अब तक नहीं बताया गया की अब उसके पिता जी इस दुनिया में नहीं रहे… देखते -देखते करीब एक से दो,दो से तीन साल बीत गए इस हादसा को हुए.
समय बीतता जा रहा था और चांदनी बड़ी होते जा रही थी…धीरे धीरे परिवार की हालत सुधरने लगी थी..वहीं माता जी परिवार को शम्भालने में
और बचे समय में खुद को अनाथ आश्रम के बच्चों के साथ जीवन यापन कर रही थी..और ‘सोहन’ ने सरकारी नौकरी के साथ धीरे-धीरे अपनी ऊनी कपड़े बनाने की एक नई कारोबार शुरू कर दी..
अब तो सोहन के पडोसी भी अपने बच्चो को “सोहन” का उदहारण देने लगे की देखो ‘महतो जी’ के ना होते हुए भी इसने अपने परिवार को उजड़ने से बचा लिया..
‘बेटा हो तो ऐसा’ संस्कार से पूर्ण…हर किसी का आदर करने वाला…हर किसी के दुःख को हर लेने वाला…
हर किसी के मुँह से भाई की तारीफ सुनते हुए चांदनी फुले नहीं समाती थी..और माँ को हमेशा भाई की तारीफ की बाते बताते हुए बोलती ‘माँ मुझे भी भाई जैसा बनना है…माँ मैं ऐसी क्यों नहीं हुँ…बस अगर गलती से भी भाई इस बीच आ जाता तो झट से बातों को पलटते हुए बोलती माँ भाई आ गए..आप खाना दे दो भाई को…मैं कब तक इनकी ख्वाइस पूरी करती रहूंगी..”चांदनी आज तू मेरे लिए पनीर के कोफ्ते बना दे..अच्छा छोड़ पराठे बना दे..अच्छा नहीं तो…..” माँ
मैं तो अब भाभी चाहती हुँ जो इस घर को और मेरे फरमाइशी भाई को ज़िन्दगी भर के लिए शम्भाल ले..
चांदनी के इस बात पर बस सोहन बोला” ..बच्ची तू अभी बहुत छोटी है दुनिया की जिम्मेदारी तुझे समझ नहीं आएगी….कहते हुए बोला वैसे कितना भी तू अच्छी बन जा है तो झल्ली”…छेड़ते हुए कहा..
कितनी भी इनकी नोक -झोक होती दोनों भाई बहन एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे…माँ भी बीच- बीच में इनके सैतानी में कभी सोहन की तरफ तो कभी चांदनी की तरफ हो जाती…
ना जाने क्या सोहन को परेशान कर रखा था…जो अक्सर माँ को कहता “माँ चांदनी बड़ी हो गई है अब तो इसकी पढाई भी ख़त्म होने वाली है..अच्छे से लड़के देखकर शादी कर देते है..माँ उसकी इस परेशान भरी नजर को समझती और बोलती हाँ लेकिन एक बार उससे तो पूछ ले की वो क्या चाहती है..
एक दिन अचानक से सोहन ने एक लड़के की जानकारी प्राप्त करते ही माँ को कहा माँ लड़का डॉक्टर है…अच्छे घर से है..बस इतना ही कहा था की..
माँ ने कहा सोहन बेटा माँ हुँ मैं तेरी मुझे बता क्यों परेशान है इतना, वैसे भी चांदनी तो अभी बस १८ की हुई है १-२ साल रुक सकते है…
माँ की बातों पर सोहन ने कहा माँ मैं चाहता हुँ की मेरी शादी से पहले चांदनी की शादी हो जाये..मैं नहीं चाहता की उससे किसी भी तरह की कोई कमी महसूस हो…आप तो जानती है ना की पिता जी के जाने के बाद मैं चादनी को लेकर बहुत ज्यादा परेशान रहता हुँ…उसकी हर छोटी सी छोटी ख्वाइस बड़ी सी बड़ी ख्वाइस पूरी की है मैंने…उसकी हर आहत से मेरा वाश्ता है..वो कहाँ है , क्या कर है, क्या उसके मान में है, सब पता चल जाता है मुझे..
इन सब बातों से ज्यादा बस मैं चाहता हुँ की वो हमेशा खुश रहे…
माँ तो माँ ही होती हैं ना अपने किसी भी बच्चो में अंतर नहीं रखती सब उनके लिए एक बराबर…सोहन के इन बातों को लेकर माँ ने उससे बहुत प्यार से समझया…कहा..
सोहन बेटा तेरे पिता जी कहते थे की…
समय और पैसा किसी भी इन्सान को कहाँ से कहाँ पहुँचा सकता है…गरीब को अमीर और अमीर को गरीब…
आज जब तेरे पास पैसे है तो लोग तेरा नाम लेते है वहीं जब तेरे पिता जी चल बसे थे तो गरीबी के दौर में किसी ने साथ ना दिया था…
हर किसी काम का एक सही समय होता है…हम कोई भी काम जबर्दस्ती तो कर सकते हैं लेकिन हो सकता है कुछ समय बाद उसमे खटाश आ जाये…
हमे हर रिश्ते हो बहुत ही संजो कर सवार कर… धीरे-धीरे प्यार के रिश्ते से बांधना चाहिए नाकि जल्दबाज़ी से …
तुझे लगता है.. की तेरी शादी के बाद तेरे में कोई बदलाव ना आ जाये या तेरी पत्नी तुझे तेरी बहन से और उसके प्यार से अलग ना कर दे…तो ऐसा तो तभी ना होता है सोहन जब इंसान का दुसरो से ज्यादा खुद पर से भरोसा उठ जाता है..
देख मैं भी तो बिलकुल अकेली पड़ गई थी जब तेरे पिता जी नहीं थे फिर भी सब की बातों को सुनते हुए…मैंने हर परिस्थिति में तुम दोनों का ही उतना ख्याल रखा जितना की पहले रखती थी…
सोहन हमेशा मेरी बातों को याद रखना…परिस्थिति चाहे कैसी भी हो…उच्च-नीच आते रहेंगे ..बहुत सारे बहरूपिये आएंगे हर मोड़ पर लेकिन अपने प्यार से बांधे हुए धागे को मजबूती से शम्भाले रहना इससे टूटने ना देना…और वो चांदनी वो तो एक कच्ची सी नाजुक पेड़ की तना है जिससे जिधर घुमाओ घूम जाये…
बस तुझे उससे एक मजबूत पेड़ बनाना है….जो वो अपने आगे आने वाले समय में बहुत अच्छे से बन सकती है…
तो बेटा उससे ये समय मत छीन जिसमे वो सही और गलत की पहचान समझ सके…
और जहाँ तक तू अपनी पत्नी के बारे में सोचता है वो तो खुद एक दूसरे घर से आई नई-नवेली दुल्हन..जिससे खुद में ही झिजक होगी…”उससे भी तेरी और तेरे प्यार की जरूरत होगी ना की तेरी दुरी”
और अगर वो इस प्यार के बंधन को ना समझ पाये..जोकि तेरा चांदनी से है और मुझसे,यहाँ के लोगो से और हमारे सगे- सम्बन्धी से है…
तो बेटा कहते है ना की इतना प्यार दो उस इंसान को की जब तुम उसके सामने रहो या ना रहो लेकिन जब तुम उसे छोड़ कर जाओ तो वो भी सोचने पर मजबूर हो जाये इसके जैसा तो कोई प्यार कर ही नहीं सकता…इससे धोखा देना भी धोखा का अपमान करने जैसा है…
तब माँ की इन बातों पर सोहन ने कहाँ-
“मैं,तुम और हम जब साथ हैं ना तो इस घर की नींब कोई नहीं हिला सकता हैं माँ”
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