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गुमनाम रिश्ता..

Maa
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हमेशा की तरह आज भी भागे-भागे घर जल्दी पहुचने के चक्कर में गलती से मैं गलत ट्रैन पर चढ़ गई,,,बस घर पहुचने में सिर्फ और सिर्फ १० से १५ मिनट लगते थे हमारा घर जो स्टेशन के पास ही था….
अरे -अरे उस दिन तो मैं हैरान थी की भाई आज इस ट्रैन को क्या हो गया जहाँ मुझे आराम से सीट मिल जाती थी आज मुझे किसी से बहस करनी पड़ी वो भी शीट के लिए..और झगड़ू भी क्यों ना आखिर वो लेडीज शीट थी और कितनी मुस्कक्त से मैंने दो ऑन्टी के पहुँचने से पहले उस शीट के पास जाकर धम्म से खड़ी हो गई…और ये महासय हैं की मुझसे झगड़ा कर रहे है क्योकि उन्होंने अपनी बैग बाहर खिड़की से ही उस शीट पर किसी के द्वारा रखवाया था..
मुझे समझ नहीं आ रहा था की आखिर वो लड़का मुझसे झगड़ क्यों रहा हैं…मैं तो सही हुँ और सही जगह पर खड़ी भी हुँ..ओहहोहोूहोो…तो अब समझ आया की वो मुझे इशारा कर रहा है और वो भी वहाँ जहाँ लेडीज शीट लिखा होता है…और जब मैंने देखा तो वहाँ तो कुछ भी नहीं था..हाँ बस वो ६ वर्ड्स चुप चाप हलके हलके नजर से झाकने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वो भी नाकाम थे..बस अगर कोई गौर फरमाये तो समझ आये की ओह्ह अच्छा तो ये लेडीज शीट हैं..लेकिन आजकल के लोग कहाँ इतने तमीज़दार होते है…और वैसा ही हुआ..मैं भी बस हठी की तरह उसका बैग उठकर उसे दिया और बैठ गई वहाँ…और उस दिन तो ट्रैन भी मुझपर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी जो आज ट्रैन १० मिनट में घर पहुँचा देती वो आज २० मिनट लेट हो गई …..
लेट तो लेट और वो लड़का मुझे घूरे जा रहा हैं…जैसे मुझे निगल ही जायेगा..और १ से दो..बार बोल भी दिया आज कल की लडकिया कितनी अकड़ू होती हैं..
जैसे समझती हैं हर जगह उनका ही नाम लिखा हैं जहाँ हाथ रख दिया वो उनका हो गया…उसकी बातो को नजरअंदाज करते हुए घर आने का इंतज़ार करने लगी तभी किसी के बोलने की आवाज आई भैया चलो अगला स्टेशन तो हमारा है आ गया बस हमारा “बख़्तयारपुर”….और जब मैंने सुना की ये कोई और स्टेशन है मेरे तो होश ही उड़ गए..सारी अकड़ मेरी धरे की धरे रह गई….अब किससे क्या कहुँ..की मैं सिर्फ अपने कॉलेज से लेकर घर का ही राश्ता जानती हूँ..कहने का मतलब ये की पटना स्टेशन जो मेरे कॉलेज से काफी पास था और पटना शाहिब जहाँ से मुझे घर जाने में सिर्फ और सिर्फ २ मिनट लगते थे …
घबराहट से मुझे पशीने छूटने लगे थे..समझ नहीं आ रहा था की किससे पूछूँ की “बख़्तयारपुर” से “पटना शाहिब” जाने के लिए कौन सी ट्रैन पकङु जिससे की मैं जल्दी घर पहुँच जाऊँ…
घर जल्दी पहुँचने से ज्यादा मुझे घर वालो की फ़िक्र हो रही थी की वो क्या सोच रहे होंगे कहाँ गई ये लड़की..कितना समय लग रहा है इसे…घर आने का ये कोई समय होता है..क्लास तो कब के खत्म हो गए होंगे..तरह तरह के सवालो से घिरी हुई थी मैं..की ट्रैन की हॉर्न की आवाज आई और जितने देर में मैं वह से उतर पाती ट्रैन खुल गई थी..
हड़बड़ी में मैंने ट्रैन से उतरने की कोशिश के समय अपनी पर्स ही उसी सीट पर भूल आई थी जिस के लिए मैंने झगड़ा किया था…और जब नाकामी के बाद वापस उसी शीट पर जाने के लिए मुड़ी तो अपने पीछे उसी लड़के को पाया जिसने मुझे झगड़ा करने बाद खडुस कहा था…चुप-चाप खामोश खड़ा वो मुझे मेरा पर्स लौटने आया था… फिर भी मैं तो मैं थी ना..झट से पर्स लिया..बिना किसी धन्यवाद के पहुँच गई उसी जगह जहाँ मेरी शीट थी.. जो अब फुल हो चुकी थी और वहाँ कोई बुजुर्ग अंकल बैठे थे…होना क्या था बस चुप – चाप डरे सहमे उसी शीट के पास कड़ी थी मैं..तभी मुझे किसी ने पीछे से आवज लगाई हेलो मैडम-आप सुन रही है..आप इस शीट पर बैठ सकती हैं…मैंने बिना dekhe उस व्यक्ति को कहा.नहीं नहीं कोई बात नहीं आप बैठो बस मेरी स्टेशन आने वाली है..
टेंशन से मैं मरी जा रही थी..करीब १० मिनट और बीत गए थे..और मैं पुरे १ घंटे लेट थी…किसी ने मुझे बाजु से ही पानी बॉटल दिए..पलट कर देखा तो वही लड़का था..जिसने मुझे खडुस कहा था…बिना कुछ बोले मैंने बॉटल लेकर अपनी प्यास से ज्यादा अपनी घबराहट मिटने की कोशिश की….
शायद वो लड़का समझ गया था की मैं परेशान हुँ इसलिए शायद वो इस बार शराफत के साथ मुझे शीट देने को तैयार हो गया था…वो भी एक नयी शीट जिसके लिए उसने मुस्कक्त की वो भी मुझसे नहीं किसी और से..
मैं भी सराफत के साथ wahan बैठ गई..मेरे बैठते ही उसने कहा..आपको भुख लगी है..आप कुछ खाओगी..मेरे पास बहुत सारे बिस्किट्स,,नमकीन है..अच्छा तो छोड़ो घर का खाना खाओगी..माँ ने बना कर दिया है…उसने नॉन-स्टॉप आइटम्स पेस कर दी…जैसे मैं कोई रेस्टुरेंट में हुँ..
मैंने कहा नहीं मुझे भूख नहीं लगी..नो थैंक्स..
अच्छा फिर आप ही बता दो की बात क्या है…मैं समझ नहीं पाई की वो क्या बोल रहा है अचानक से…फिर उसने कहा ऐसा है मिस मैंने देखा की किस तरह आप अपने घर जने के लिए बेचैन थी मतलब है और स्टेशन पर उतरने वक़्त आप कौन से सदमे में चली गई की आपने अपना पर्स छोड़ दिया वो मेरे शीट पर मैंने देखा…मैंने कहा जी नहीं वो मेरी शीट थी..अरे बाबा ठीक है..आपकी शीट…अब खुश..
और उस वक़्त भी मुझे शीट की पड़ी थी..और उसकी इस शराफत भरी बातो पर मुझे हँसी सी आ गई..शायद मैं उस ट्रैन में बैठने के बाद पहली बार हँसी थी.
हिम्मत करते हुए मैंने उस अजनबी लड़के को धीरे से कहा–मुझे पटना शाहिब जाना है..बीएस इतना ही कहा था मैंने की उसने जोर से बोला क्या??????
तो आप यहाँ मतलब इस ट्रैन में क्यों है…मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या बोलूँ..और कैसे मैं अपनी बेवकूफी उसके सामने बयान करूँ…मुझे लगा वो मेरी मजाक उड़ा देगा तो मैंने बातो को पलटने की कोशिश की लेकिन वो कोशिश नाकाम रही..
धीरे से वो मेरे काफी करीब आकर बोला ऐसा है मिस आप बहुत ही तेज़ और बहादुर लड़की है..आप बेवकूफ तो हो ही नहीं सकती ..
अब इस पर तो मेरी हँसी रुकी ही नहीं..हस्ते-हस्ते मुझे रोना आ गया…और मैंने रोते रोते अपनी सारी बेवकूफी बयान कर दी…
उस अजनबी लड़के ने मुझे कहा मिस आप परेशान ना अगले स्टेशन से आपको प्लेटफार्म नंबर-०३ से ट्रैन नंबर-२४५६३ मिलेगी आप आपने घर आशानी से पहुंच जाओगे..ये एक सुपर फ़ास्ट ट्रैन है…और मिस मैं आपको ये भी बता दू की आप जिस ट्रैन में अभी मेरे साथ पुरे २ घंटे से है…वो लोकल नहीं बल्कि सुपरफस्त ट्रैन है..और मुझे लगता है की आप इतने सारे पब्लिक को देखकर इस ट्रैन को लोकल समझ गए…होता हैं इसमे आपकी कोई गलती नहीं है ‘ This mistake is due to the railway board  that they can’t provide the other special train on the occasion of marriage season” और आपने इस ट्रैन को लोकल समझ लिया…
बातो को यही खत्म करते हुए उसने कहा मैडम स्टेशन…और मैं अपने पर्स के साथ उतर गई उस अनजान से स्टेशन पर…देखने की कोशिश ही कर रही थी की की मैं कौन से स्टेशन पर हुँ…तब तक वो ट्रैन भी खुल गई जिसने मुझे मेरी आखिरी मंजिल तक पहुंचाई…
शायद यहाँ से मेरी एक नयी और दूसरी मजिल शुरू होने वाली थी…फिर भी ना जाने कुछ तो था जिसकी कमी महसूस हो रही थी वही प्लेटफार्म नंबर-०३ पर बैठे बैठे अपनी ट्रैन का इंतज़ार कर रही थी..जिसके बारे में उस लड़के ने बताया था..इतना तो मैंने भी उसे जान लिया था की वो एक समझदार और तमीज़दार लड़का है..फिर भी दिल की तसल्ली के लिए मैंने वही सामने इन्क्वारी रूम से कन्फर्म की तो पता चला मैं सही जगह और सही प्लेटफार्म पर हुँ..
बस कुछ ही मिनट बाद मेरी ट्रैन जिसका नंबर २४५६३ था मेरे सामने खड़ी थी ..
बहुत ही आसानी से मुझे पहले की तरह शीट भी मिल गई….जहां कोई चिक -चिक , झिक-झिक करने वाला नहीं था….
न जाने क्यों दिल चाह रहा था फिर से एक बार झगड़ा हो वो भी किसी और से नहीं उस अजनबी लड़के से और मन इसकी गवाही नहीं दे रहा था ..फिर ख्याल आया चल अब तो खुश हो जा ..तुझे शीट भी मिल गई वो भी बिना किसी झगड़े का और घर भी बीएस आधे घंटे में पहुंच जाउंगी ..बहुत ही सुकून मिल रहा था मुझे ..बस सुकून के साथ मैंने एक लम्बी सी सासे ली ..तब ही मेरे बाजु से ही किसी की आवाज आई एक्सक्यूज़ मी मिस ये शीट मेरी है …और ये रहा मेरा टिकट ..क्या इस बत्तमीज लड़के को इस शीट पर एडजस्ट करोगी . .. और फिर से मैंने बस मुश्कुरा दिया ..

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