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भय यानि जबदस्त दुर्गुण क्योकि भयग्रस्त मनस्तिथि कुछ भी अच्छा नहीं कर सकती हे। जीवन में सभी इससे ग्रसित हे। इसी के कारण मन में द्वन्द रहता हे कि यदि ऐसा करुगा तो यह हो जायगा वैसा करूँगा तो वह प्रितिक्रिया होगी ओर इसी भय से ग्रसित हो कर कुछ नहीं कर पाता हे। बहुत सी असफलातायो का ,बहुत से दुखों का कारण सिर्फ ओर सिर्फ भय ही कारण होता हे। कहा भी गया हे की डर के आगे जीत हे। जो इस डर पर विजय पा लेते हे ,सफलता पाते हे। विभिन्न क्षेत्रो में जो सफल व्यक्ति दिखाई देते हे उन्होंने निश्चित रूप से भय पर सफलता पायी हुई होती हे। भय पर विजय पाने के लिय विचारो को परिष्कृत करना होगा। इसके लिए ऐसा साहित्य पड़ना होगा ,ऐसे व्यक्तियों का साथ करना होगा जो विचारो को अपनी विचारधारा पर मजबूती प्रदान करते हो। व्यक्ति से ज्यादा प्रभाव शाली विचार होते हे। विचार ही हमें क्रियाशील करते हे की क्या किया जाना चाहिय ओर क्या नहीं किया जाना चाहिय। अतः हमें अपने विचारों को परिष्कृत ,द्रढ़ ,संकल्पित करने वाले विचारों से निरंतर ओतप्रोत रखना चाहिय। फिर देखिये कैसे परिस्तिथिया बदलना शुरू होती हे। ओर फिर वह सब कुछ होता चला जायगा जो चाहा जाएगा।
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