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अकेलापन ऐसी स्तिथि है जिससें सभी बचना चाहते हे। जबकि बास्तविकता यह है कि जीवन में आना जाना दोनो अकेले ही होता है। अकेलापन दो तरह का होता है , बाहरी और आंतरिक। इसमें आंतरिक अकेलापन का मतलब एक ही विचार, भाव का उठना। यह अवस्था अच्छी होती है क्योकि इस स्तिथि मे यदि अन्य विचार पैदा हो तो उन पर नियंत्रण किया जा सकता है। यदि आंतरिक अकेलापन न हो तो मन मे उठने बाले विचारोँ पर नियंत्रण नहीं होता ओर तनाव उत्पन्न हो जाता है। यदि आंतरिक अकेलेपन की स्तिथी का समुचित लाभ उठाया जाय तो यह एंटीबायोटिक की तरह कार्य करता है जिसके उचित सेवन से एक शानदार व्यक्तित्व का निर्माण करना सम्भव हो सकता है। यहाँ सतर्कता की आवश्यकता है ,एकदम दुनियाँ से कट कर नहीं वल्कि उसके साथ साथ चलते हुये आन्तरिक अकेलेपन का प्रयोग करना चाहिये। अकेलापन घबड़ाने के लिए नही ,डरने के लिये नहीं बल्कि जीवन का हिस्सा बनाने के लिये है। इस स्तिथि में यदि आत्मावलोकन किया जाय तो अनगिनत गुत्थियां सुलझ सकती है ,हमे उन कारणोँ क पता चलता है ,ओर हमारे सबालो का जबाब मिलता है। इसका लाभ लेने के लिए परिवार, समाज या घर से दूर जाने की जरुरत नहीं है। कुछ समय स्वयं को दो,बस इंतजार करो , शान्त ,अचल रह्ने का प्रयास करो। यह दुनिया स्वयं को तुम्हारे सामने उजागर करेगी। इसकी सत्यता का आभास स्वयं के जीवन में होने बाले परिवर्तनों को आश्चर्य जनक रुप से घटित होते हुये देख कर किया जा सकता है।
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