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VICHAR
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यदि बिपरीत परिस्तिथियों में सत्य का सामना करने की शक्ति पैदा कर ली जाय तो बड़े से बड़े दुखो , मुसीबतो से बाहर निकला जा सकता है। क्योकि सुख की अवस्था में व्यक्ति स्वयं से दूर उपलब्ध सुख सुबिधाओं में ब्यस्त रहता है। जबकि दुःख की अवस्था में व्यक्ति स्वयं के ज्यादा करीब होता है। इस अवस्था में उसके साथ केवल सत्य होता है। और यदि इसका सामना नहीं किया गया तो स्तिथि और भी जटिल होती चली जायेगी। और समाधान दूर होता चला जाएगा। यदि सत्य को स्वीकार कर लिया गया तो इस दुःख के क्षणों में वह प्राप्त किया जा सकता है जो की बहुमूल्य होता है। इन पीड़ा और दुःख के क्षणों में जीवन के लिए वह कीमती अनुभव एकत्रित किया जा सकता है जो की सुख के समय किसी भी तरह प्राप्त नहीं हो सकता। दुःख की स्तिथि में बहुत कुछ खोने के बाद जीवन के प्रति जागृति आती है। इससे प्राप्त अनुभव से जीवन में आमूलचूक परिवर्तन करने की क्षमता पैदा हो जाती है। दुःख,पीड़ा व् कष्ट के क्षण भी सुख के क्षणों की तरह बेशकीमती होते है। ये उसी तरह सफाई का माध्यम है जैसे वस्त्रो के लिए साबुन। जिस तरह लोहे व् सोने को पिघलाने से उसको कोई भी आकार दिया जा सकता है उसी तरह दुःख,कष्ट व् पीड़ा के क्षणों में प्राप्त अनुभव व् सच्चाई से जीवन को जैसा भी चाहो वैसी दिशा देकर तदनुसार व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है।

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