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जिसे कोई भी नही चाहता। हर शून्य यानि वह बस्तु कोई शून्य नही उससे आगे जाना चाहता है। पाना चाहता है। जीवन की सारी गतिविधिया इसी के इर्दगिर्द चलती है। विद्यार्थी के लिए शून्य बहुत ही बुरा स्वप्न के समान होता है। कोई भी इस अंक को नही पाना चाहेगा। इसके बाद व्यक्ति जिस किसी भी क्षेत्र में काम करता है उसमे वह शून्य नही रहना चाहेगा। क्यों? इसलिए क्योकि वह जानता है कि जितना ज्यादा पैसा , पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा उतना ज्यादा सुख मिलेगा। यानी यदि जीवन में शून्य नहीं है तो सुख ही सुख है। शून्य है तो दुःख। क्या यही सत्य है ? जीवन नही है तो क्या है सिर्फ शून्य है। जीवन की उत्पत्ति ही शून्य से होती है अतः शून्य को पाना ही सुख को पाना है। इसका मतलब यह हुआ की किसी को कोई भी दुःख कभी हो ही नही सकता क्योकि शून्य की स्तिथि तो हर कोई प्राप्त कर सकता है। पर वास्तविकता में यह न तो परीक्षा में पाया जाने बाला शून्य है और नही जीवन के किसी क्षेत्र में शून्य रहना है। यह तो वह शून्य है जो मानसिक अवस्था में पाया जाता है। मनस्तिथि को चौबीस घंटे में कुछ पल के लिए एक बार शून्य की स्तिथि में लाना है। ऐसा किया जाना संभव है। इसके लिए मौन और एकांत से मित्रता करने की आवश्यकता है। उक्त दोनों मौन और एकांत से जैसे जैसे मित्रता प्रगाढ़ होती जायेगी वैसे ही शून्य के करीब पहुंच ते जायेगे। जब शून्य जीवन में प्रवेश करेगा तो सारी गुत्थियां ,सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेगी। शेष रहेगा सिर्फ और सिर्फ आनंद————–परमानंद !
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