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21जून को अंतररास्ट्रीय योग दिवस मनाये जाने को लेकर सम्पूर्ण विश्व में एक नया उत्साह है , वहीं भारत में कुछ कट्टरपंथियों को यह सही नहीं लग रहा है। शायद उनकी राजनीतिक जमीं खिंच रही है। खैर योग का बिरोध या समर्थन तब उचित है जब उसका मतलब समझ लिया जाय। योग यानि एक का दूसरे से मिलन मतलब जोड़। सम्पूर्ण जगत में रह रहे सभी प्राणियों की उत्पत्ति प्रकृति से हुई है। तब यह अकाट्य सत्य है कि प्राणी का मिलन सिर्फ और सिर्फ प्रकृति से हो सकता है। इसी प्रकृति को मनुष्यो ने ईश्वर , खुदा , गॉड आदि न जाने क्या क्या नाम अपने अपने भूगौलिक , सामाजिक , व् पारवारिक मान्यताओं के अनुसार दिए गए है। अतः नाम और उसे याद करने के तरीको से क्या अंतर पड़ता है। मनुष्य का मूल स्वाभाव प्रकृति से मिलन ही है। इस मिलान को वास्तविक बनाने की क्रिया को योग कहा जाता है। सम्पूर्ण रूप से योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम भर नहीं है वल्कि जीवन जीने की एक कला है जिसमें सम्पूर्ण जीवन इसके निरंतर प्रयोग के साथ जिया जाता है। परिणाम स्वरुप स्वस्थ शरीर ,सुन्दर मन एवं सभ्य समाज का निर्माण होता है। ऋषियों द्वारा वताई गयी आठ क्रियाओं में यम ,नियम ,आसन ,प्राणायाम ,प्रत्याहार का दैनिक जीवन में अनिवार्य रूप से प्रयोग सभी को अपनी अपनी सुबिधा के अनुसार करना चाहिय। यदि इन क्रियाओं का निरंतर पालन किया जाता है तो योग की अंतिम तीन क्रियाएँ धारणा , ध्यान ,समाधि स्वतः स्पस्ट होती चली जाती है। और स्थूल का सूक्ष्म से मिलन साकार हो जाता है। यानी योग सम्पूर्ण।
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