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कहा गया है कि यदि शक्ति होगी पास तो जमाना देगा साथ। मतलब आपको शक्तिशाली होना पड़ेगा। शक्तिशाली बनने के लिए यह जानना जरुरी है कि शक्ति है क्या ? धन एक शक्ति है क्योकि धन से आप सब कुछ जो पाना चाहते है हासिल कर सकते है। धन यानि लक्ष्मी देवी एक शक्ति है।
ज्ञान भी एक शक्ति है। ज्ञान से आप बह मुकाम हासिल कर सकते है जिसे आप पाना चाहते है। ज्ञान यानि सरस्वती देवी एक और शक्ति है। सकारात्मक चिंतन से एक ऐसा व्यक्तित्व पैदा कर सकते है जिससे ज्ञान और धन दोनों को हस्तगत किया जा सकता है। मन से नकारात्मकता को समाप्त करना भी एक शक्ति द्वारा संभव है जिसे कालीदेवी कहा जाता है।
तीनो शक्तिया लक्ष्मी , काली , सरस्वती एक दूसरे की पूरक है एक के बिना दूसरा सम्पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता क्योकि तीनो ही प्रकृति का रूप है। प्रकृति का पहला रूप पर्यावरण के रूप में उपलब्ध है। यदि हम उसे पोषित करे तो श्री , समृद्धि का ठिकाना नहीं है, लकिन यदि इसे शोषित करेंगे तो असंख्य आपदाए दरिद्रता की बृद्धि होने लगेगी ,इसी को लक्ष्मी देवी कहा गया है। प्रकृति का साकार रूप नारी है जो पत्नी के रूप में लक्ष्मी है। जिसके पोषण से श्री समृद्धि तथा शोषण से दरिद्रता ,आपदाए मिलेगी।
प्रकृति का दूसरा रूप परिस्तिथि व् परिवेश के रूप में उपस्तिथ होता है जिसके साथ सम्बन्ध सकारात्मक हो तो जीवन सद्गुणों से भर जाता है। यदि सम्बन्ध नकारात्मक हो तो परिस्तिथियाँ जीवन को ध्वंष कर देती है। नारी भी बेटी के रूप में पिता के भावो में नारी के प्रति प्यार , सम्मान पवित्रता पैदा कर सकारत्मक चिंतन उत्पन्न कर नकारात्मकता का अंत कर देती है। यही कार्य काली देवी द्वारा किया जाता है।
प्रकृति का तीसरा रूप वातावरण रूप में उपस्तिथ रहता है। प्रकृति का स्थूल रूप पर्यावरण है ,सूक्ष्म रूप परिस्तिथि है तथा अतिसूक्ष्म रूप वातावरण है। अति सूक्ष्म होने की वजह से वातावरण व्यक्ति, एवं समूहों को प्रभावित करने में सक्षम है। प्रकृति का यही कार्य माँ के रूप में नारी करती है। जो बालक को सदभाव एवं सद्विचारों से पोषित कर सद्चिन्तन प्रदान करती है। यही देवी सरस्वती है।
यदि हमें शक्ति की साधना करनी हे तो प्रकृति और नारी दोनों के साथ सम्बन्धो को देवी लक्ष्मी ,देवी काली ,देवी सरस्वती की विशेषताओं के रूप में करनी होगी। इससे ऐसा व्यक्तित्व पैदा होगा जो शक्तिशाली होगा। ऐसा व्यक्तित्व कभी प्रकृति तथा नारी के साथ असम्मान व्यक्त नहीं कर सकता। इसीलिए कहा गया हे जहा नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते है।
नभ ,थल ,पर्वत ,नदिया ,हर तरफ पेड़ और वनस्पति ,
पर्यावरण के रूप में प्रकृति दे रही उपस्तिथि ,
प्रकृति का वरदान है ,दिव्य यह शक्ति।
पोषण कर इसका , पाये सुख , समृद्धि , उन्नति ,
शोषण इसका देता हे , दुःख , तनाव , विपत्ति ,
परिस्तिथि व् परिवेश के रूप में इसकी ही उपस्तिथि ,
प्रकृति का वरदान हे , दिव्य यह शक्ति।
नभ में उमड़ती घुमड़ती दिव्य विचार शक्ति ,
सदा देती हे वातावरण के रूप में उपस्तिथि ,
प्रकृति का वरदान हे , दिव्य यह शक्ति।
विकास के नाम पर हो रहे खिलबाड़ से सन्निकट हे विपत्ति ,
बाढ़ ,भूस्खलन ,भूकम्प से ये दे रही उपस्तिथि ,
साबधान सजग हो , कर साधना शक्ति,
प्रकृति का वरदान हे , दिव्य यह शक्ति।
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