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मूरख पंचायत ,…..दूसरी सीढ़ी -1

हमार देश
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गतांक से आगे …..

आधे घंटे में ज्यादातर मूरख वापस आ गए !…..विराम के दौरान पंचों और सूत्रधार में वार्ता हुई !…सूत्रधार कुछ लिखते भी रहे !………पंचायत के जुटते ही सूत्रधार ने एलान किया ,……. “…खुरपेंची सवाल जबाब कुछ देर नहीं होंगे !…….कान लगाकर केवल सुनो समझो फिर बोलने का नंबर लगेगा !…”……

पंचायत ने उत्सुकता से मौन सहमति प्रकट की तो सूत्रधार शुरू हुए ……… “….

……. “…पंचों ने अबतक पक्के निकले विचार लिखवाया है !…….सब सुन लो !…..अब सब बात सीसा की तरह साफ़ लगती है !…सतरंगी सर्वसम्पन्न दुनिया बनाने पालने मिटाने वाले परमेश्वर एक हैं !….उनका विस्तार अनंत है असंख्य है !……देखे अनदेखे पहचाने अनजाने समझे नासमझे सब रूप नाम उनके ही हैं !……..हम जिस रूप में उनका ध्यान करेंगे वही रूप में मिलेंगे !…….भगवान की दुनिया में इंसान उनका सबसे करीबी है !….उनका बीजरूप हर इंसान में है !……दुनिया में हर जगह हर कण में मौजूद रहने वाले परमपिता हमारे शुद्ध होने तक अदृश्य रहते हैं !…….हम जितना शुद्ध होंगे ऊ उतना करीब होंगे !…….अगली बात !……उनके सुविधामय न्यायतंत्र में इंसान सबकुछ करने खातिर आजाद है !……..मानवता उत्थान पतन का रास्ता मानवचेतना है !……..सब खेल उनका है नियम धर्म उनका है ….लेकिन खिलाड़ी हम हैं !…...खेल जब बहुत तकलीफ देता है ,….तो खुद योगमाया में प्रकट होते हैं ,..जगाते हैं ,..अन्याय मिटाते हैं …फिर चले जाते हैं !……….जीवन खेल उनके माफिक खेले तो उनको सुख होगा ,….उनके प्रिय बनेंगे हमको सुख होगा !……ऊ सद्कर्म मांगते हैं !…….सुख सद्कर्मों का मीठा फल है !….जिससे तन मन इन्द्रियों समेत आत्मा भी तृप्त होती है !…बाकी ..अकर्मी पिछला प्रारब्ध भोगने के सिवा कुछ नहीं करता !………कुकर्म से कुछ भी पाने वाले बहुत दुखी होते हैं !.…..काहे से कि नकली सुख दूसरों को दुःख देकर मिलता है !…कुकर्मी फैलाव में अर्ध सद्कर्मी को भी दुःख मिलता है ,…कुकर्म सद्कर्मी चेतना को भटकाते है !..गिराते हैं !……आंशिक सद्कर्म मजबूरी में कुकर्म को मान्यता बढ़ावा देता है !…..कुकर्म मानवता गिराते हैं ,……सद्कर्म ही उत्थान का रास्ता है !…पाप कुकर्मों के नाश से पूर्ण सद्कर्मी समाज उठेगा !…… अब बात उठती है … हम सद्कर्म कैसे करें !……. हम आत्मज्योति चेतना से जुडकर सद्कर्म कर सकते हैं !……. पापी मन के रहते शुद्ध चेतना कैसे मिलेगी ?…..हमारा अहंकारी मन हमको नचाता है …फंसाता है …..भटकाता है !…….कहते हैं मन को मारो !…..काहे कैसे !…… आखिर हम कौन हैं !……….बाहरी चेतना से हम शरीर इन्द्रियों मन के गुलाम हैं !……गहन चेतना में हम परमेश्वर के अंश हैं …..खुद ईश्वर ही हैं !……फिर ईश्वर मन नाम की बला का गुलाम कैसे हो सकता है !….उनके रहते हम काहे कैसे गलत काम करते हैं !…….क्योंकि हम बीज का पोषण नहीं करते !….यह अखंड अक्षुण्ण बीज साक्षी भाव से जनम जन्मांतर तक हमारे कर्मों को देखता है !…रोकर इन्तजार करता है !…..हमको अपना इन्तजार मिटाना चाहिए !……मन बुद्धि पारदर्शी आत्मा का खोल ही है !..पहले खोल भी आत्मा जैसी साफ़ निर्मल पारदर्शी होता है !…….फिर पापी झूठी दुनिया की जहरीली आबोहवा इसपर कीचड़ डालती है !……खोल काले भूरे पीले नीले रंगों से भयानक काला हो जाता है !…आत्मा का बाहरी अंग बीमार हो जाता है !…….सद्कर्म का साधन कुकर्म का वाहन बन जाता है !…..साधन बहुत गिरा हो तो मिटाना चाहिए !…..उसे खोल सकते हैं ,…. साफ़ कर सकते हैं ..फिर सधा काम ले सकते हैं !…………..खोल खुला तो आत्मचेतना जागी !…लेकिन …….परमपिता की अद्भुत रचना में कटाई छंटाई बहुत कठिन है ….गलत भी होगा !…. हमने कुछ देर खातिर मन बुद्धि का पर्दा किनारे हटा भी दिया तो वो फिर चढ़ जायेगा !…….अगर हमने खोल को फिर पारदर्शी बना लिया तो हम आत्मप्रकाश से भर जायेंगे !…….मन बुद्धि सब आत्मा जैसे हो जायेंगे !.आत्मा में मिल जायेंगे !..”

“..ई तो बहुत उल्टी बात है !…कटाई छंटाई नहीं कर सकते फिर पारदर्शी कैसे बनायेंगे !…”……….आखिरकार एक मूरख का सब्र टूट ही गया ,..सूत्रधार ने उसपर गहरी नजर डाली ….सब हँसने को हुए ..लेकिन हंसा कोई नहीं !

सूत्रधार आगे बोले ……. “ हम जानते थे तुम उचकोगे भैय्या जी !….अंदर से सवाल पूछो हम कौन हैं ?….परमात्मा पुत्र आत्मा या पापी मन के गुलाम !……….हम जो चाहेंगे वही बनेंगे !…….मन बुद्धि ईश्वर को सौंपकर हम ईशदर्शी सद्कर्मी बन सकते हैं !……. हमको बीमारी पहचाननी होगी !…. मन बुद्धि आत्मा के बाहरी औजार हैं !…शरीर इंद्री मन के हथियार हैं !……काला पर्दा सम्बन्ध जोड़ने की जगह तोड़ देता है !..फिर बाहरी दुनिया में रम जाते हैं !…..रमना गलत नहीं है ,….लेकिन गलत में रमना गलत है !….हमको अच्छाई में रमना होगा !…सबको अच्छा बनना होगा !….सब बीमारी मिटाकर दिव्यत्व में रमना चाहिए !……. सब बीमारी मिटाने दिव्यत्व लाने खातिर योग ठोस माकूल उपाय है !…सुन्दर स्वस्थ शरीर में निर्मल मन बुद्धि आत्मा का प्रकाश फैलाएगा !…”

“….अरे भाई जो पहले बोला वही पर जमे रहो !….धर्म बताओ आगे बढ़ो !….”…………….एक बाबा व्याकुल हुए तो एक पंच ने समझाया

“..बिना आत्मचेतना के धरम नहीं समझ सकते भैय्या !…..फिर अधर्म की तरफ लुढ़क सकते हैं !…….आत्मचेतना जागी तो समझाने की जरूरत नहीं !….बिना कहे धर्मपथ ही पकड़ेंगे !…… हमने योगधर्म अपनाया तो राष्ट्रधर्म मानवधर्म खुद पूरा होगा !…”

“..योग से सब बीमारी कीटाणु मिटेंगे !….स्वस्थ जागृत दुनिया में रामराज्य ही होगा !…”………..एक मूरख ने भी शेखी फैलाई तो सूत्रधार फिर बोले ….

“…आत्मचेतना इतनी ही है ,….. हम सब एक हैं !….हमारे स्वामी परमपिता एक हैं …. हम अनंत शक्तिशाली दयालु पिता की औलाद हैं ,……..हमको महान युगपुरुषों के पीछे चलकर अपने अंदर बाहर स्वामीपिता की सुखमय सत्ता बनानी है !……हमारा काम अँधेरे में मानवता खाती राक्षसी ताकतों का नाश करना है ,…..मानवता का उत्थान दिव्यता में करना है !…..आत्मचेतना को अनुभव व्यवहार में लाना है !……..सब खंड ..सब दीवारें मिटाकर मानव समाज को एक सूत में आना है !……मानवी एकजुटता से साजिशी लुटेरे राक्षस राक्षसी अंधेरराज नहीं कर सकते !….न हम पर .. न हमारे देश समाज दुनिया पर !……..हमारे अंदर राम जागे तो राम ही हमारे राजा होंगे ….रामराज्य ही होगा !…सब सद्कर्मी होंगे ….पूरे सुखी होंगे !….”

“..भैय्या तुम्हारी सब बकबक ठीक है !…….लेकिन ई बताओ ..हम राम को जगाएं कैसे !….कैसन आत्मचेतना से जुड़ें !……लाखों ज्ञानी विद्वान जोर लगाते होंगे !….हम बीमार लाचार मूरख कौन खेत का मूली है !……तुम कोई सरल ठोसमठोस उपाय बताओ !……बार बार सरकारी लुटेरों की तरह छत्तिसी आंकड़ा न घुमाओ !…”………..बाबा फिर भड़के तो युवा बोला

“..ऐसा है दादाजी !…..तुमको जल्दी है तो चल बसो !…..राम निष्पाप ज्ञानी शक्तिवान ऊर्जावान धर्मवान दयावान हैं !……सदियों से सोये राम को जगाना प्रेम से खैनी मलना नही है !……..”…………. व्यंग्य पर बाबा जरा गुस्से में बोले !

“..हमहू का जल्दी नहीं है !…..चैतन्य भारत भूमि पर हम राम देखकर ही मरेंगे !….रामराज में ही प्राण छूटेगा !…स्वामीजी करोड़ों जिंदगियों को योग महाज्ञान से मालामाल किये हैं !…लाखों के लाइलाज मर्ज ठीक हुए हैं !……सैकड़ों हजारों लाखों करोड़ों राम निकलेंगे !……पूरी दुनिया में राम बसे हैं !…सब जागेंगे !…. सब बीमारी मिटायेंगे!…”………..

पंच ने समझाया .. “…..तो चैन से राम में रमे रहो भैय्या !……जागना सोना उनकी इच्छा है !..जब चाहेंगे सबमें जागेंगे !…….अंदर बाहर योग फैलाते हुए सबसे राम की तरह मिलेंगे !…. मित्रों के गले मिलेंगे !…..अच्छे मित्र की अच्छाई का पालन करेंगे !….हम भी राम जैसा बनेंगे !..”

एक महिला की व्यग्रता छलकी ……………“… जल्दी करना चाहिए !……..पैंसठ साल से सोने की चिड़िया नोचता विदेशी कुनबा अब हमको खाने को उतावला है !……. राक्षस सेना फिर हमको मूरख बना गयी तो हमारी औलादें गुलामी करेंगी !……….झूठी आजादी का छलावा भयानक गुलामी का जुगाड़ है !….शैतान लुटेरे सबकुछ खा मिटा देंगे !…….”……………………..क्रमशः

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